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पर्यावरणविद वंदना शिवा ने की शिरकत, सप्ताह भर मना प्रकृति उत्सव

पर्यावरणविद वंदना शिवा ने की शिरकत, सप्ताह भर मना प्रकृति उत्सव - Environment week at jimmy center
कई पर्यावरणविद् हुए शामिल 
 
5 जून को हम सभी विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं लेकिन यह हम सभी जानते हैं कि एक दिन मनाने मात्र से प्रकृति का संरक्षण संभव नहीं है। हम सभी को अपनी प्रतिदिन की जीवन शैली ऐसी बनानी होगी कि प्रकृति का प्यार हम पर भरपूर बरस सके। इंदौर शहर में पर्यावरण को लेकर जागरूकता के उल्लेखनीय कार्यक्रम संपन्न हुए हैं उनमें जिम्मी मगिलीगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलेपमेंट में कई रोचक गतिविधियों के साथ मना 7 दिवसीय प्रकृति महोत्सव पर्यावरण प्रेमी प्रबुद्ध और आम जनमानस द्वारा बेहद पसंद किया गया। प्रति वर्ष की तरह इस बार भी सप्ताह भर सेंटर पर रचनात्मक कार्यशालाएं और पर्यावरण के लिए कुछ कर गुजरने के मजबूत संकल्प के साथ आयोजन हुए। 
 
1 जून से लेकर 6 जून तक चले इस आयोजन की विशेषता यह रही कि सुविख्यात पर्यावरणविद् वंदना शिवा ने समापन समारोह में गरिमामयी उपस्थिति के साथ अपनी बात रखी। यह आयोजन मुख्य रूप से विश्व पर्यावरण दिवस की UNEP  की थीम 'मैं प्रकृति के साथ हूं, क्या आप हैं? पर आधारित रहा। हर दिन विवि‍ध कार्क्रमों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि छोटे-छोटे क्रियाकलापों और कदमों के साथ हम प्रकृति के किस तरह करीब आ सकते हैं और कैसे प्रकृति को अपनी सहचरी बना सकते हैं।


अलग-अलग व्याख्यानों से यह भी बात सामने आई कि प्रकृति के प्रति दायित्व सिर्फ वृक्षारोपण से ही नहीं बल्कि हर उस अंग के प्रति अपना लगाव रखने से पूरा होगा जिनसे मिलकर हमारा समूचा पर्यावरण बना है। इनमें पेड़, पौधे, नदियां, मिट्टी, पशु, पक्षी, वन्य जीवन, औषधियां, वनस्पति, प्राकृतिक संपदा, खनिज, सूर्य, चंद्रमा, तारे, हवा, पानी सब शामिल हैं और हमें इन सबके प्रति संवेदनशील बनना होगा।

हमारा संपूर्ण जगत खनिज,वनस्पति, वन्यजीवन और मानव जीवन जैसे चार वर्गों में बंटा है। तीन वर्ग प्रकृति की व्यवस्था के अंतर्गत चलते हैं। वे जगत से सिर्फ हवा, पानी और धूप लेते हैं जबकि बदले में बहुत कुछ देते हैं। चौथा वर्ग मानव का है जो हवा, पानी और धूप तो लेता है पर बदले में कुछ भी नहीं देता है जबकि उसके पास इन तीन वर्गों से ज्यादा ताकत, बुद्धि, विवेक और आत्मा है। यहां तक कि इसमें शासन करने की क्षमता भी है। जाहिर सी बात है कि जब आप पृथ्वी पर शासन करते हैं तो इसे संभालने की नैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी भी आपकी ही है।

इस 7 दिवसीय महोत्सव से यह भी निकल कर आया कि दुनिया को खूबसूरत बनाना है तो उपदेश, नारे, भाषण और राय देने से यह नहीं होगा बल्कि उदाहरण पेश करने से होगा। यह शुरुआत हमको अपने आप से ही करनी होगी।
 
 
सुविख्यात पर्यावरणविद वंदना शिवा ने इस प्रकृति महोत्सव के समापन अवसर पर कहा कि खेतों की मिट्टी में जहरीला रसायन और उर्वरक का लगातार बढ़ता उपयोग हमें कई घातक बीमारियां दे रहा है। हमारी भारतीय स्वदेशी तकनीक को समाप्त करने की सुनियोजित साजिश रची जा रही है। आज कैंसर, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और दिल की गंभीर बीमारियां मानव जीवन के समक्ष चुनौती बन कर खड़ी हो रही है। हमें जैविक खेती की तरफ लौटने की जरूरत है। दुर्बल सरकारी नीतियों का ही परिणाम है कि आज इतनी बड़ी संख्या में किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, आंदोलन को मजबूर हैं, बढ़ता कर्ज  उनके लिए फांसी का फंदा बन रहा है। हमें प्रकृति के पोषक तत्वों को सहेजना भी है और उन्हें बेहतर भी बनाना है और यह सिर्फ प्राकृतिक जीवन-शैली अपनाने से ही संभव होगा।  
स्मिता भारद्वाज आईएएस, ने जिम्मी मगिलीगन सेंटर के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर जिस तरह से गंभीर समस्याएं हैं उसके मुकाबले पर्यावरण संरक्षण को सीखने के लिए एक सप्ताह तक का समय देना निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस सप्ताह सिर्फ बातें नहीं हुई बल्कि हर प्रयावरण प्रेमी द्वारा संकल्प लिए गए और उसे त्वरित कार्यरूप में परिणित भी किया गया। 
 
ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से उन्हें सोलर कुकर का प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया गया। सेंटर की डायरेक्टर और पर्यावरणविद जनक पलटा ने बताया कि उनके पति जिम्मी कहा करते थे कि धुंआदार रसोई महिलाओं के खिलाफ एक तरह की हिंसा है। रसोई के धुंए  और सिर पर पूरे समय के घूंघट में घुट-घुट कर यह महिलाएं कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाती है। सोलर कुकर उनके लिए वरदान के समान है। सेंटर द्वारा जरूरतमंद महिलाओं को सोलर कुकर पर्याप्त प्रशिक्षण के उपरांत ही सौंपे जाते हैं। 

वंदना शिवा के हाथों 5 जरूरतमंद ग्रामीण महिलाओं शैतान बाई, चंदा, नजु बाई रावत, बीना बाई और राजू बाई को प्रशिक्षण के पश्चात सोलर कुकर सौंपे गए। यह महिलाएं अब तक जलाऊ लकड़ी पर खाना बनाती रही हैं और कई बीमारियों का शिकार हो गई हैं। इनमें से किसी की आंख की रोशनी कम हो चली है तो कोई फेफड़े की बीमारी से परेशान है। 5 जून 2017 को प्रशिक्षक नंदा और राजेंद्र चौहान ने इन महिलाओं को सोलर कुकिंग में प्रशिक्षित किया कि कैसे उनका इस्तेमाल करना है और कैसे रखरखाव करना है। 
 
इस अवसर पर अनुराग शुक्ला ने इस प्रकृति महोत्सव की समस्त गतिविधियों, कार्यशाला, संदेश और सहभागिता सत्र की संक्षिप्त रिपोर्ट साझा की। 
 
सेंटर की डायरेक्टर डॉ. जनक पलटा ने 500 प्रतिभागियों को एक हफ्ता प्रकृति का, प्र‍कृति के लिए, प्रकति के संग और प्राकृतिक संसाधनों द्वारा बिताने के लिए आभार व्यक्त किया। 
 
सप्ताह भर चले इस आयोजन के मुख्य वक्ता :  सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद वंदना शिवा और जनक पलटा के साथ समीर शर्मा, अनुराग शुक्ला, दिलीप चिंचालकर, देव कुमार वासुदेवन, आशीष दुबे, शुभा वैद्य, अनुराधा दुबे, रश्मि जोशी, चिन्मय मिश्रा, अनुराग शुक्ला, राजेंद्र सिंह, दिनेश कोठारी, अरुण डिके, अंबरीश केला, मनीषा पाठक, स्मिता भारद्वाज, डैनियल 
 
सप्ताह भर के विशेष आकर्षक आयोजन यह रहे : 
 
* बरखा, सूर्योदय, सूर्यास्त, पक्षियों के माध्यम से प्रकृति के विविध रंग और रूप को महसूस कर, उनका आनंद लिया गया। ड्राइंग, पेंटिंग, कविता के साथ नेचर वॉक किया गया। 
 
* राजेश शर्मा द्वारा पेड़ों की ऑटोबायोग्राफी की प्रदर्शनी। सभी क लात्मक और रचनात्मक विधाओं में प्रकृति से संबंधित अभिव्यक्ति प्रस्तुत करना जिनमें संगीत, कविता और प्रारम्भिक प्रार्थनाएं शामिल हैं। 
 
* देवगुराडिया और आसपास की पहाडियों को हरी-भरी बनाए रखने के लिए उन पर सीड बॉल यानी बीज गैंद को सुव्यवस्थि‍त रूप में रखा गया और दूरी होने पर उछाल कर बिखेरा गया ताकि मानसून आगमन का भरपूर लाभ मिल सके। 
 
* अपशिष्ट मुक्त जीवनशैली : इस आयोजन में बिना कचरा किए आहार ग्रहण करना सीखा गया। सभी प्रतिभागी अपने घरों से स्वदेशी भोजन बनाकर लाए और यह सुनिश्चित किया गया कि बिना कोई कचरा किए कैसे भोजन ग्रहण किया जा सकता है। सभी ने यह चुनौती स्वीकार कर मनोरंजक पिकनिक के रूप में इसे संपन्न किया। जैविक भोजन बनाने में अक्षय स्रोतों का उपयोग किया गया। 

एक्शन प्लान :  सप्ताह भर के संकल्पों के क्रियान्वयन स्वरूप प्रकृति उत्सव में शामिल समस्त प्रतिभागी 2 जुलाई 2017 को देवगुराडिया पहाड़ी और इंदौर में वृक्षारोपण का हिस्सा बनेंगे।