अदालत ने पिता को बेटे का संरक्षण देने से किया इनकार, कहा- बच्चे का भला मां के साथ रहने में
नई दिल्ली। बेटे के जन्म के 16 महीने बाद उसे तथा पत्नी को छोड़ देने वाले एक व्यक्ति को दिल्ली उच्च न्यायालय ने बच्चे का संरक्षण देने से इनकार कर दिया और कहा कि बच्चे का भला मां के साथ रहने में है।अदालत ने उल्लेख किया कि महिला ने तलाक के 3 साल बाद दूसरी शादी कर ली और वह अब 9 साल के अपने बेटे तथा दूसरे पति के साथ दुबई में रहती है जो साधन-संपन्न है और वहां बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता है।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति आशा मेनन की पीठ ने कहा कि यह निर्देश देने का कोई कारण नहीं है कि बच्चे का संरक्षण इस फिल्मी बहाने पर अपीलकर्ता (बच्चे का पिता) को दे दिया जाए कि सौतेला बाप बच्चे से दुर्व्यवहार करता होगा और प्रतिवादी (महिला) दूसरी शादी से बच्चे को जन्म देने पर अपने पहले बच्चे पर ध्यान देना बंद कर सकती है।
उच्च न्यायालय ने परिवार अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। परिवार अदालत ने व्यक्ति को बच्चे का संरक्षण देने से इनकार कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी के बीच संबंध खराब होने का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। माता-पिता के बीच वैवाहिक विवाद और उनके संरक्षण के लिए कानूनी लड़ाई की वजह से बच्चे असहाय हो जाते हैं।
पीठ ने कहा कि जब व्यक्ति ने जुलाई 2012 में अपनी पत्नी को तलाक दिया तब उनका बेटा केवल 16 महीने का था और वह अपने नाना-नानी के घर हैदराबाद में अपनी मां के साथ रहता था।
पीठ ने कहा कि महिला ने हैदराबाद में अपने माता-पिता के घर बच्चे को जन्म दिया था और बच्चा तभी से अपनी मां की देखरेख और संरक्षण में है। रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं रखा गया जिससे यह साबित हो कि व्यक्ति ने महिला से संपर्क किया और अपने बच्चे के पास पहुंचा, सिवाय इन कुछ लंबे-चौड़े वायदों के कि उसने बच्चे से मिलने के कई प्रयास किए और बच्चे की देखरेख तथा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वह बेहतर साधन-संपन्न है।
अदालत ने कहा कि बच्चे को उसकी मां के संरक्षण से दूर करने तथा उसका संरक्षण उसके पिता को सौंपने की उसे कोई वजह नजर नहीं आती है। इस मामले से संबंधित पुरुष और महिला की शादी दिल्ली में जून 2009 में हुई थी और फरवरी 2011 में उनके यहां एक पुत्र पैदा हुआ।
महिला का आरोप था कि उसे उसका पति और ससुराल के लोग दहेज के लिए उसे तंग करते हैं। उसने अपने पति और सुसराल के लोगों के खिलाफ कथित उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था। मई 2013 में व्यक्ति ने परिवार अदालत से संपर्क कर बच्चे का संरक्षण मांगा, जिसने उसकी याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद व्यक्ति ने उच्च न्यायालय से संपर्क किया।(भाषा)