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Written By एन. पांडेय
Last Modified: रविवार, 12 फ़रवरी 2023 (16:45 IST)

भगतसिंह कोश्यारी की उत्तराखंड वापसी से BJP के अंदर राजनीतिक भूकंप आने का डर

भगतसिंह कोश्यारी की उत्तराखंड वापसी से BJP के अंदर राजनीतिक भूकंप आने का डर - Bhagat Singh Koshyari Uttarakhand Maharashtra
देहरादून। भगतसिंह कोश्यारी का महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफा मंजूर हो गया है। इसके बाद भाजपा के अंदर विभिन्न गुटों में भी उनकी वापसी को लेकर जबरदस्त हलचल व बेचैनी है। भगतसिंह कोश्यारी की वापसी से भाजपा के अंदर राजनीतिक भूकंप आने का डर तो है ही। कोश्यारी को इस बात का मलाल हमेशा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने उनको मात्र 4 ही महीने तक का कार्यकाल मुख्यमंत्री के रूप में दिया।

2007, 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बावजूद पार्टी हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया। राज्य गठन के समय से ही उत्तराखंड भाजपा के सत्ता संग्राम में कोश्यारी एक बढ़ा चेहरा रहे। 2000 में राज्य बनने के बाद नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया।

उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद ही भगतसिंह कोश्यारी बागी तेवर दिखाकर चर्चाओं में आ गये थे। इसी तेवर के चलते 2001 अक्टूबर में भाजपा हाईकमान ने स्वामी को हटा भगतसिंह कोश्यारी को सीएम बनाया गया, लेकिन अंतरिम सरकार में लगभग 4 महीने बतौर सीएम के राज्य की सेवा का मौका मिलने से उनकी हसरतें पूरी न कर सकीं। इसकी कसक कोश्यारी को आज भी है।
स्वामी जो कि उत्तराखंड मूल के न होने से उनकी ताजपोशी से पूरे उत्तराखंड में यह संदेश गया कि  राज्य के बनने के बावजूद उत्तराखंडियों को अपना मुख्यमंत्री तक भाजपा ने नहीं बनने दिया। इसकी वजह से कोश्यारी की ताजपोशी के बाद भी 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में कम बैक नहीं कर पाई।

इसके बाद हालांकि 2007 में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला, लेकिन फिर पार्टी नेतृत्व ने उनकी बजाय जनरल बीसी खंडूरी के नाम पर मुहर लगा दी। उसके बाद कोश्यारी को राज्यसभा भेजकर राहत देने की कोशिश तो की, लेकिन कोश्यारी की नाराजगी उसके बाद भी कम नहीं हुई।

यह कोश्यारी की नाराजगी का परिणाम था कि खंडूरी को हटाकर निशंक को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। खंडूरी को हटाने की मुहिम में कोश्यारी ने राज्यसभा से इस्तीफा का शोर बुलंद कर भाजपा हाईकमान को ऐसा कदम उठाने को विवश किया। ये सब होने के बाद भी 2009 की गर्मियों में खंडूड़ी को सीएम की कुर्सी से हटाने के बावजूद कोश्यारी को मुख्यमंत्री नहीं बनाकर निशंक को पार्टी  ने सीएम बना दिया। लेकिन राजसत्ता के मुखिया बनते ही निशंक के तेवर दिखाते ही एक बार फिर से कभी विरोधी रहे खंडूरी व कोश्यारी ने हाथ मिलाते हुए निशंक को कुर्सी से हटवा दिया।

इस बदलाव के बाद एक बार फिर बीसी खंडूरी मुख्यमंत्री बन गए। खंडूरी के इस कार्यकाल में कोश्यारी की भूमिका अहम थी। हालांकि साल 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को शिकस्त मिली। लेकिन 2017 में भाजपा विधानसभा चुनाव जीती।

इसके बाद भगतसिंह कोश्यारी सीएम की दौड़ में उम्मीद लगाए थे कि मोदी- शाह ने कोश्यारी के ही करीबी रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को कमान सौंप दी। त्रिवेंद्र व कोश्यारी के रिश्तों में इसके बाद ठंडक ही देखने में मिली। त्रिवेंद्र के मुख्यमंत्रित्व काल में भगत सिंह कोश्यारी ने अजय भट्ट को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया।
 
त्रिवेंद्र को उनके कार्यकाल पूरा किए बिना मार्च 2021 में सीएम की कुर्सी से हटाने के बाद कुछ अरसे भर के लिए तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बने लेकिन उनके उल जलूल बयानों से पार्टी असहज हुई तो पुष्कर सिंह धामी को नया सीएम बनाया गया। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत व मुख्यमंत्री रहते हुए पुष्कर के स्वयं की हार के बावजूद मोदी-शाह ने पुष्कर सिंह धामी को ही फिर से सीएम बनाकर सभी को चौंका दिया।

लेकिन अब जबकि साल 2024 में लोकसभा चुनाव होना है, धामी के खिलाफ राज्यभर में आंदोलन शुरू कर उनके खिलाफ माहौल बनाने की तैयारी शुरू हो गई है।

बेरोजगार युवाओं का आंदोलन, जोशीमठ आपदा, भर्ती घोटाले व अंकिता भंडारी हत्याकांड जैसे ज्वलन्त मुद्दों की उठ रही लपटों के बीच घिरे धामी क्या साल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी को चुनावी वैतरणी पार कराने में सहायक सिद्ध होंगे या उनकी वजह से पिछले प्रदर्शन में कमी आएगी इसको लेकर पार्टी में चिन्तन शुरू है।

ठीक ऐसे मौके पर राज्य में कोश्यारी की एंट्री मायने रखती है। क्या कोश्यारी को राज्य में किसी भूमिका में पार्टी नेतृत्व लाएगा? यह कानाफूसी भी शुरू है जिससे कोश्यारी के चेले रहे मुख्यमंत्री धामी भी खुद सहमे दिख रहे हैं। 
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