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वाल्मीकि रामायण में श्रुतकीर्ति कौन थी, जानिए कथा

Shrutakirti In Ramayana | वाल्मीकि रामायण में श्रुतकीर्ति कौन थी, जानिए कथा
वाल्मीकि रामायण में सीता की एक बहन उर्मिला बताई है। मांडवी व श्रुतकीर्ति जनकजी के छोटे भाई कुशध्वज की बेटियां थी। मानस मैं सीता जनकजी की इकलौती बेटी बताई गई है। कुल मिलाकर सीताजी की तीन बहनें थीं। उनके भाई का नाम मंगलदेव है जो धरती माता के पुत्र हैं। आओ जानते हैं श्रुतकीर्ति के बारे में।

 
श्रुतकीर्ति ( Shrutakirti ) :
 
1. श्रुतकीर्ति राजा जनक के छोटे भाई राजा कुशध्वज की पुत्री थी। कुशध्वज मिथिला के राजा निमि के पुत्र और राजा जनक के छोटे भाई थे। श्रुतकीर्ति की माता का नाम रानी चंद्रभागा था।
 
2. श्रुतकीर्ति का विवाह भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न से हुआ था।
 
3. श्रुतकीर्ति के दो पुत्र हुए, शत्रुघति और सुबाहु। 
 
4. शत्रुघ्न, राजा दशरथ के चौथे पुत्र थे, उनकी माता का नाम सुमित्रा था। 
 
5. श्रुतकीर्ति की कथा :
 
कहते हैं कि एक बार श्रुतकीर्ति रात को छत पर टहल रही थी। मात कौ‍शल्या ने उन्हें देखा तो पहरेदार से उन्हें बुलाने का कहा। वह आईं तब माता कौशल्या ने पूछा की तुम अकेले छत पर क्यों टहल रही हो शत्रुघ्न कहां है? यह सुनकर श्रुतकीर्ति ने कहाकि माता उन्हें तो मैंने तेरह वर्षों से नहीं देखा हैं।
 
यह सुनकर माता कौशल्या बहुत दु:खी हुई और माता कौशल्या आधी रात को ही सैनिकों के सात खुद शत्रुघ्न की खोज में निकल पड़ी। सभी जगह पूछा तो पता चला की वे नंदीग्राम में हैं। नंदीग्राम में भरतजी कुटिया बनाकर वहीं से राजकाज का कार्या देखते थे। माता कौशल्या वहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि जहां भरत कुटिया बनाकर तपस्वी भेष में रहते थे। उसी कुटिया के बाहर एक पत्थर की शिला पर अपनी बांह का तकिया बनाकर शत्रुघ्न सोए थे।
 
माता ने जब उनको इस तरह सोए हुए देखा तो इनका हृदय कांप उठा। शत्रुघ्न ने जैसे ही मां की आवाज सुनी तो, वो उठ खड़े हुए और माता को प्रणाम कर बोले, माता! आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया। मुझे ही बुला लिया होता।' माता ने बड़े प्यार से जवाब दिया क्यों, एक मां अपने बेटे से मिलने नहीं आ सकती। मैं भी आज अपने बेटे से ही मिलने आई हूं। लेकिन तुम इस हालत में यहां क्यों सोए हो।' 
 
शत्रुघ्न का गला रुंध गया। वो बोले, मां। बड़े भैया राम पिता की आज्ञा से वन चले गए। भैया लक्ष्मण उनके साथ चले गए। और भैया भरत भी नंदीग्राम में कुटिया बनाकर मुनि भेष धारण कर रह रहे हैं। क्या ये राजमहल, राजसी ठाट-बाट सब विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं?
 
माता कौशल्या इस सवाल का कोई जबाब नहीं दे पाई और वह एकटक शत्रुघ्न को निहारती रही। दरअसल शत्रुघ्न राजसी भेषा में रहकर राजकाज का काम जरूर करते थे। लेकिन उन्होंने भी अपनी पत्नी श्रुतकीर्ति से दूरी बना ली थी। और राजमहल की भोग-विलासिता का भी त्याग कर दिया था।
 
बाद में शत्रुघ्न को मथुरा का राजा बनाकर श्रुतकीर्ति के साथ उन्हें वहां रहने की आज्ञा दी गई थी।
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