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Last Modified: शनिवार, 18 अप्रैल 2020 (11:20 IST)

माता सीता ने अग्निपरीक्षा दी थी या नहीं दी थी, जानिए रहस्य

Seeta Agni Pariksha | माता सीता ने अग्निपरीक्षा दी थी या नहीं दी थी, जानिए रहस्य
सीता की अग्निपरीक्षा और गृहत्याग एक विवादित प्रसंग है। सीता ने अग्निपरीक्षा दी थी या नहीं दी थी? क्या रावण सीता की छाया ले गया था और असली सीता का श्रीराम ने अग्निदेव को सौंप दिया था? यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है। आओ जानते हैं कि सही क्या है।
 
 
1. यह कहते हैं कि अयोध्या जाने के बाद माता सीता को समाज की बुराइयों से बचने के लिए अग्नि परीक्षा देना पड़ी थी। यह घटना अयोध्या में घटी थी।
 
 
2. यह भी कहा जाता है कि प्रभु राम ने रावण हरण के पूर्व ही सीता को अग्नि को सौंप दिया था। रावण जिस सीता का हरण करके ले गया था वह सीता माता की छाया थी। लंका विजय के बाद राम ने अग्नि से अपनी असली सीता मांग ली थी। यह घटना लंका में घटित हुई थी।
 
 
राम जब सीता को रावण के पास से छुड़वाकर अयोध्या ले आए तो उनके राज्याभिषेक के कुछ समय बाद मंत्रियों और दुर्मुख नामक एक गुप्तचर के मुंह से राम ने जाना कि प्रजाजन सीता की पवित्रता के विषय में संदिग्ध है अत: सीता और राम को लेकर अनेक मनमानी बातें बनाई जा रही हैं। उस वक्त सीता गर्भवती थीं। राम और अन्य से सीता से कहा कि समाज में बातें बनाई जा रही हैं। सभी कहते हैं कि अग्निपरीक्षा देगा पड़ेगी। माना जाता है कि समाज द्वारा संदेह किए जाने के कारण सीता ने ग्लानि, अपमान और दु:ख से विचलित होकर चिता तैयार करने की आज्ञा दी।
 
 
सीता ने यह कहा- 'यद्यपि मन, वचन और कर्म से मैंने सदैव राम को ही स्मरण किया है तथा रावण जिस शरीर को उठाकर ले गया था, वह अवश था, तब अग्निदेव मेरी रक्षा करें।' और फिर सीता माता ने जलती हुई चिता में प्रवेश किया। अग्निदेव ने प्रत्यक्ष रूप धारण करके सीता को गोद में उठाकर राम के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे हर प्रकार से पवित्र हैं। इस अग्निपरीक्षा के बाद भी जनसमुदाय में तरह-तरह की बातें बनाई जाने लगीं, तब राम के समक्ष फिर से धर्मसंकट उत्पन्न हो गया।
 
 
3. यह भी कहा जाता है कि उन्होंने अग्निपरीक्षा दी थी लेकिन राम ने सीता का त्याग नहीं किया था। जिस सीता के बिना राम एक पल भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा युद्ध लड़ा उसे वे किसी व्यक्ति और समाज के कहने पर क्या छोड़ सकते हैं?
 
 
सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने एक दिन राम से एक बार तपोवन घूमने की इच्‍छा व्यक्त की। किंतु राम ने वंश को कलंक से बचाने के लिए लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं। हालांकि कुछ जगह उल्लेख है कि श्रीराम का सम्मान उनकी प्रजा के बीच बना रहे इसके लिए उन्होंने अयोध्या का महल छोड़ दिया और वन में जाकर वे वाल्मीकि आश्रम में रहने लगीं। वे गर्भवती थीं और इसी अवस्था में उन्होंने अपना घर छोड़ा था। वाल्मीकि आश्रम से सीता ने लव और कुश नामक 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया।
 
 
4. क्या ये सही है?
विपिन किशोर सिन्हा ने एक छोटी शोध पुस्तिका लिखी है जिसका नाम है : 'राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं।' यह किताब संस्कृति शोध एवं प्रकाशन वाराणसी ने प्रकाशित की है। इस किताब में वे सारे तथ्‍य मौजूद हैं, जो यह बताते हैं कि राम ने कभी सीता का परित्याग नहीं किया।

 
जिस सीता के लिए राम एक पल भी रह नहीं सकते और जिसके लिए उन्होंने सबसे बड़ा युद्ध लड़ा उसे वह किसी व्यक्ति और समाज के कहने पर क्या छोड़ सकते हैं? राम को महान आदर्श चरित और भगवान माना जाता है। वे किसी ऐसे समाज के लिए सीता को कभी नहीं छोड़ सकते, जो दकियानूसी सोच में जी रहा हो। इसके लिए उन्हें फिर से राजपाट छोड़कर वन में जाना होता तो वे चले जाते।

 
अब सवाल यह भी उठता है कि रामायण और रामचरित मानस में तो ऐसा ही लिखा है कि राम ने सीता को कलंक से बचने के लिए छोड़ दिया था। दरअसल, शोधकर्ता मानते हैं कि रामायण का उत्तरकांड कभी वाल्मीकिजी ने लिखा ही नहीं जिसमें सीता परित्याग की बात कही गई है।

 
रामकथा पर सबसे प्रामाणिक शोध करने वाले फादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि 'वाल्मीकि रामायण का 'उत्तरकांड' मूल रामायण के बहुत बाद की पूर्णत: प्रक्षिप्त रचना है।' (रामकथा उत्पत्ति विकास- हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग प्रयाग विश्वविद्यालय, प्रथम संस्करण 1950)

 
लेखक के शोधानुसार 'वाल्मीकि रामायण' ही राम पर लिखा गया पहला ग्रंथ है, जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखा गया था। अत: यह समस्त विकृतियों से अछूता था। यह रामायण युद्धकांड के बाद समाप्त हो जाती है। इसमें केवल 6 ही कांड थे, लेकिन बाद में मूल रामायण के साथ बौद्ध काल में छेड़खानी की गई और कई श्लोकों के पाठों में भेद किया गया और बाद में रामायण को नए स्वरूप में उत्तरकांड को जोड़कर प्रस्तुत किया गया।

 
ऐसा भी कहा जाता है कि बौद्ध और जैन धर्म के अभ्युदय काल में नए धर्मों की प्रतिष्ठा और श्रेष्ठता को प्रतिपा‍दित करने के लिए हिन्दुओं के कई धर्मग्रंथों के साथ इसी तरह का हेरफेर किया गया। इसी के चलते रामायण में भी कई विसंगतियां जोड़ दी गईं। बाद में इन विसंगतियों का ही अनुसरण किया गया। कालिदास, भवभूति जैसे कवि सहित अनेक भाषाओं के रचनाकारों सहित 'रामचरित मानस के रचयिता ने भी भ्रमित होकर उत्तरकांड को लव-कुश कांड के नाम से लिखा। इस तरह राम की बदनामी का विस्तार हुआ।

 
ऊपर लिखी गई राम से जुड़ी सारी कथाएं उत्तरकांड में उल्लेखित हैं जिसके सच होने में संदेह है, क्योंकि ऐसे कई प्रमाण मौजूद हैं जिससे यह पता चलता है कि यह कथाएं बौद्धकाल में जोड़ी कई हैं। अंत: में यह कहा जाएगा कि इस पर अभी कोई निर्णय और एकमत नहीं हुआ है। अत: इस पर अभी और शोध किए जाने की जरूरत है। आलेख को सवाल का उत्तर न माना जाए।
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