मंगलवार, 14 जनवरी 2025
  • Webdunia Deals
  1. कुंभ मेला
  2. प्रयागराज कुंभ मेला 2025
  3. प्रयागराज कुंभ मेला न्यूज
  4. prayagraj mahakumbh first amrit snan
Last Updated : मंगलवार, 14 जनवरी 2025 (13:15 IST)

महाकुंभ का पहला अमृत स्नान, हर-हर महादेव के नारों का जयघोष, भक्तिभय हुआ माहौल

कुंभ मेले का यह पर्व करोड़ों श्रद्धालुओं और साधु-संतों के लिए आध्यात्मिक आस्था और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक

mahakumbh
Mahakumbh 2025 : पवित्र संगम तट पर महाकुंभ 2025 का आयोजन अपनी भव्यता और दिव्यता के साथ शुरू हो चुका है। कुंभ मेले का यह पर्व करोड़ों श्रद्धालुओं और साधु-संतों के लिए आध्यात्मिक आस्था और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक है। अमृत स्नान के इस पावन अवसर पर संगम का दृश्य अत्यंत मोहक और अविस्मरणीय था। श्रद्धालुओं ने हर-हर महादेव और हर-हर गंगे के जयकारों से पूरे क्षेत्र को गुंजायमान कर दिया।
 
स्नान के लिए देशभर से आए नागा साधुओं, संतों और महात्माओं ने संगम के जल में डुबकी लगाकर अपनी आध्यात्मिक साधना को पूर्णता प्रदान की। इन साधु-संतों की उपस्थिति से कुंभ का माहौल अद्वितीय और भक्तिमय हो गया।
 
mahakumbh
अमृत स्नान के दौरान गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। हर कोई इस दिव्य स्नान में भाग लेकर अपनी आत्मा को शुद्ध करने और पुण्य अर्जित करने की भावना से प्रेरित था। साधु-संतों का स्वागत फूलों की वर्षा और जयघोष के साथ किया गया, जिससे उनकी उपस्थिति और भी विशेष बन गई।
 
कुंभ मेले में प्रशासन ने भी सुव्यवस्थित प्रबंध किए हैं। सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन के लिए पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी और स्वयंसेवक तैनात किए गए हैं।
 
घाटों पर साफ-सफाई और सुरक्षित स्नान के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। यातायात को सुचारू बनाए रखने के लिए शहर के विभिन्न हिस्सों में मार्गदर्शन और सहायता केंद्र स्थापित किए गए हैं।
 
prayagraj mahakumbh 2025
महाकुंभ का यह पर्व भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की गहराई और व्यापकता का परिचायक है। यहां पहुंचे श्रद्धालुओं ने इसे न केवल आध्यात्मिक अनुभूति का अवसर बताया, बल्कि इसे संस्कृति और परंपरा को संजोने का महत्वपूर्ण माध्यम भी माना।
 
महाकुंभ 2025 का आयोजन धर्म, आस्था और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। अमृत स्नान के इस दिव्य अवसर ने न केवल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक संतोष प्रदान किया, बल्कि भारतीय संस्कृति की महिमा को भी उजागर किया। इस पावन पर्व ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि संगम की भूमि पर आस्था और विश्वास की अद्भुत धारा प्रवाहित होती है।