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Written By भाषा

महंगाई की मार से ‘रावण’ परेशान

रावण पर भी चढ़ा महंगाई का रंग

महंगाई की मार से ‘रावण’ परेशान -
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महंगाई की मार से ‘रावण’ भी परेशान है। देश भर में विजयादशमी के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस बार भी पुतले बनाने के काम में दिल्ली और आसपास के राज्यों से आए कारीगर दिन रात जुटे हुए हैं, लेकिन वे पुतला बनाने में काम आने वाले सामग्री की ऊंची कीमतों से परेशान हैं।

पश्चिमी दिल्ली का तातारपुर क्षेत्र बरसों से रावण के पुतलों के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहां कई दशक पहले एक मुस्लिम व्यक्ति ने पुतले बनाने का काम शुरू किया था। इससे बाद में उनका नाम ही रावण वाला बाबा पड़ गया। आज रावण वाला बाबा के काफी शार्गिद इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

पिछले 20 साल से हरियाणा के करनाल से यहां आकर पुतले बनाने वाले सुभाष ने बताया कि, 'इस बार पुतला निर्माण में काम आने वाली सभी सामग्रियां महंगी हो गई हैं। 20 बांस का एक गमहामेधार पिछले साल 300 रुपए का था, जो इस साल 700 रुपए हो चुका है। इसी तरह लकड़ी बांधने वाले तार जहां पिछले वर्ष 40 रुपए किलो थे, वह आज 80 से 100 रुपए किलो हो चुके है। कागज का दाम भी 50 फीसद से ज्यादा बढ़ चुका है। इसी तरह मजदूरी भी पिछले साल की तुलना में काफी बढ़ चुकी है।

ऐसे में इस बार पुतलों के दाम 50 से 75 फीसद तक बढ़ गए हैं।’ उन्होंने कहा कि इस बार रावण के पुतलों का दाम 300 से 325 रुपए प्रति फुट है, जबकि पिछले साल यह 200 रुपए प्रति फुट था। यानी 50 फुट के पुतले के लिए 15,000 रुपए से अधिक के दाम चुकाने होंगे।

सुभाष कहते हैं कि यहां पुतला बनाने के लिए दिल्ली के आसपास के इलाकों के अलावा हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार और उत्तराखंड से हजारों कारीगर हर साल आते है। इन दो तीन माह में उनकी अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। एक अन्य कारीगर नितिन कहते हैं कि महंगाई की वजह से अब पुतलों का कद घट रहा है।

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पहले जहां आमतौर पर 50 फुट के पुतलों की मांग अधिक रहती थी, वहीं अब 20 से 30 फुट के पुतलों की मांग ज्यादा है। यही नहीं पहले किसी एक स्थान पर रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले भी जलाए जाते थे, जबकि आज लोग सिर्फ एक पुतला यानी रावण ही जलाते हैं। कारीगरों का कहना है कि रावण के पुतलों की तो आज भी मांग आती ही है, लेकिन धीरे-धीरे कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों की पूछ घट रही है।

एक अन्य कारीगर पवन के मुताबिक, तातारपुर में हर साल 2,000 के करीब पुतले बनाए जाते हैं। हालांकि, कभी यहां 4,000 से 5,000 तक पुतले बनते थे। लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या घट रही है।

सुभाष बताते हैं कि तातारपुर से रावण दिल्ली के अलावा हिमाचलप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और उत्तरप्रदेश भेजे जाते हैं। इस बार सबसे ज्यादा आर्डर राजस्थान से आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि कभी तातारपुर का रावण का पुतला ऑस्ट्रेलिया तक जाता था, लेकिन अब विदेशों से आर्डर नहीं मिलते।

पुतला कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि आमतौर पर उनके सभी पुतले बिक जाते हैं। यदि कभी कुछ पुतले बिकने से बच जाते हैं, तो उनको नुकसान होता है। बचे पुतलों को वे खुद जला देते हैं। (भाषा)