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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 11 अप्रैल 2024 (12:42 IST)

Saubhagya sundari vrat 2024: सौभाग्य सुंदरी व्रत कब रखा जाएगा, जानिए महत्व और कथा

सौभाग्य सुंदरी व्रत पर पढ़ें महत्व और कहानी

Saubhagya sundari vrat 2024: सौभाग्य सुंदरी व्रत कब रखा जाएगा, जानिए महत्व और कथा - Saubhagya Sundari
Saubhagya Sundari Vrat 
HIGHLIGHTS
 
• सौभाग्य सुंदरी व्रत 11 अप्रैल को। 
• सौभाग्य सुंदरी व्रत शिव-पार्वती के पूजन का पर्व।
• सौभाग्य सुंदरी व्रत का महत्व जानें।
Saubhagya Sundari Vrat Kya Hota Hai : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार गणगौर के त्योहार को सौभाग्य सुंदरी व्रत भी कहते हैं। भारत भर में गणगौर तीज/ सौभाग्य सुंदरी व्रत का त्योहार को बड़े ही उमंग, उत्साह और जोश से मनाया जाता है। सौभाग्य सुंदरी का व्रत करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। बता दें कि वर्ष 2024 में यह त्योहार 11 अप्रैल, दिन बृह‍स्पतिवार को मनाया जा रहा है। जिसे गौरी तीज, सौभाग्य सुंदरी पर्व और गणगौर तीज के नाम से जाना जाता है। 
 
महत्व : हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर साल होली के दूसरे दिन से ही गणगौर का त्योहार आरंभ हो जाता है, जो पूरे अठारह दिन तक लगातार चलता रहता है। इस पर्व में महिलाएं बड़े सवेरे ही होली की राख को गाती-बजाती अपने घर लाती हैं। मिट्टी गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाती हैं, शिव और पार्वती बनाकर सोलह दिनों तक बराबर उनका पूजा करती हैं। कुमकुम, मेहंदी और काजल तीनों ही श्रृंगार की वस्तुएं तथा सुहाग की प्रतीक होती हैं। अत: इस व्रत में दीवार पर कुमकुम की सोलह बिंदिया, मेहंदी की सोलह बिंदिया और काजल की सोलह बिंदिया प्रतिदिन लगाती हैं। 
 
शिव-पार्वती को आदर्श दंपत्ति माना गया है। दोनों के बीच अटूट प्रेम है। शंकर जी के जीवन और मन में कभी दूसरी स्त्री का ध्यान नहीं आया। सभी विवाहित महिलाएं भी अपने जीवन में पति का अखंड प्रेम चाहती हैं। किसी और की साझेदारी की वे कल्पना तक करना पसंद नहीं करतीं। इन दिनों कुंआरी कन्याएं भी शंकर को पूजती हुई प्रार्थना करती हैं कि उन्हें मनचाहा वर प्राप्त हो। इन दिनों कन्याएं भी एक समूह में सजधज कर दूब और फूल लेकर गीत गाती हुई बाग-बगीचे में जाती हैं। 
घर-मोहल्लों से गीतों की आवाज से सारा वातावरण गूंज उठता है। कन्याएं कलश को सिर पर रखकर घर से निकलती हैं तथा किसी मनोहर स्थान पर उन कलशों को रखकर इर्द-गिर्द घूमर लेती हैं। मिट्टी की पिंडियों की पूजा कर दीवार पर गवरी के चित्र के नीचे सोलह कुंकुम और काजल की बिंदिया लगाकर हरी दूब से पूजती हैं। साथ ही इच्छा प्राप्ति के गीत गाती हैं।
 
चैत्र शुक्ल तृतीया यानी तीज के दिन गणगौर की प्रतिमा एक लकड़ी की चौकी पर रख दिया जाता है, उसे आभूषण और वस्त्र पहनाए जाते हैं। फिर उस प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है। वर्तमान समय में भी इन परंपराओं को जीवंत रखने का भरपूर प्रयास किया जा रहा हैं। तीज पर महिलाएं गहनों-कपड़ों से सजी-धजी रहती हैं तथा नाच-गाने के साथ इस त्योहार को उमंग, उत्साह और पूरे जोश से मनाती है। यह व्रत सौभाग्य से जुड़ा होने के कारण इसे विवाहित महिलाएं और नवविवाहिताएं भी करती हैं। 
 
सौभाग्य सुंदरी व्रत की कथा : 
 
कथा के अनुसार एक बार महादेव पार्वती वन में गए चलते-चलते गहरे वन में पहुंच गए तो पार्वती जी ने कहा-भगवान, मुझे प्यास लगी है। महादेव ने कहा, देवी देखो उस तरफ पक्षी उड़ रहे हैं। वहां जरूर पानी होगा। 
 
पार्वती जी वहां गई। वहां एक नदी बह रही थी। पार्वती ने पानी की अंजुली भरी तो दुब का गुच्छा आया, और दूसरी बार अंजुली भरी तो टेसू के फूल, तीसरी बार अंजली भरने पर ढोकला नामक फल आया। इस बात से पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठे पर उनकी समझ में कुछ नहीं आया। महादेव जी ने बताया कि, आज चैत्र माह की तीज है। सारी महिलाएं अपने सुहाग के लिए गौरी उत्सव करती हैं। गौरी जी को चढ़ाए हुए दूब, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे हैं। 
 
पार्वती जी ने महादेव जी से विनती की, कि हे स्वामी, दो दिन के लिए आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें, जिससे सारी स्त्रियां यहीं आकर गणगौरी के व्रत उत्सव को करें, और मैं खुद ही उनको सुहाग बढ़ाने वाला आशार्वाद दूं।  
 
महादेव जी ने अपनी शक्ति से ऐसा ही किया। थोड़ी देर में स्त्रियों का झुंड आया तो पार्वती जी को चिंता हुई, और महादेव जी के पास जाकर कहने लगी। प्रभु, मैं तो पहले ही वरदान दे चुकी, अब आप दया करके इन स्त्रियों को अपनी तरफ से सौभाग्य का वरदान दें, पार्वती के कहने से महादेव जी ने उन्हें, सौभाग्य का वरदान दिया।  
 
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