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Mahesh Navami 2022: महेश नवमी, कैसे करें पूजन, पढ़ें विधि, मंत्र, मुहूर्त एवं कथा

Mahesh Navami 2022: महेश नवमी, कैसे करें पूजन, पढ़ें विधि, मंत्र, मुहूर्त एवं कथा - Mahesh Navami
Mahesh Navami: हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी मनाई जाती है। इस बार 8 जून 2022 बुधवार को यह जयंती मनाई जाएगी। महेश नवमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करने से लेकर अपार सुख, धन संपदा, अखंड सौभाग्य और प्रसन्नता में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं इस पूजन के शुभ मुहूर्त, विधि और कथा के बारे में-
 
 
पूजा के मुहूर्त :
1. तिथि : अष्टमी तिथि प्रात: 08:30 तक उसके बाद नवमी।
 
2. विजय मुहूर्त : दोपहर 02:14 से 03:08 तक।
 
3. गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:34 से 06:58 तक।
 
4. अमृत काल मुहूर्त : रात्रि 09:06 से 10:45 तक।
 
5. निशीथ काल मुहूर्त : रात्रि 11:36 से 12:18 तक।
 
4. सिद्धि योग- 08 जून प्रात: 04:27 से अगले दिन दोपहर 03:26 तक।
 
पूजन विधि और मंत्र-
* महेश नवमी के दिन शिवलिंग तथा भगवान शिव परिवार का पूजन-अभिषेक किया जाता है।
 
* भगवान शिव को पुष्प, गंगा जल और बेल पत्र आदि चढ़ाकर पूजन किया जाता है।
 
* डमरू बजाकर भगवान शिव की आराधना की जाती है।
 
* मां पार्वती का पूजन एवं स्मरण करके विशेष आराधना की जाती है।
 
मंत्र-
* इं क्षं मं औं अं।
* नमो नीलकण्ठाय।
* प्रौं ह्रीं ठः।
* ऊर्ध्व भू फट्।
* ॐ नमः शिवाय।
* ॐ पार्वतीपतये नमः।
* ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
* ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।
 
महेश नवमी के दिन उपरोक्त किसी भी मंत्र का जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके 108 बार करना चाहिए। जप के पूर्व शिव जी को बिल्वपत्र अर्पित करना चाहिए। उनके ऊपर जलधारा अर्पित करना चाहिए। इन मंत्रों का जाप कर आप शिव को प्रसन्न कर सकते हैं।
 
कथा : एक खडगलसेन राजा थे। प्रजा राजा से प्रसन्न थी। राजा व प्रजा धर्म के कार्यों में संलग्न थे, पर राजा को कोई संतान नहीं होने के कारण राजा दु:खी रहते थे। राजा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कामेष्टि यज्ञ करवाया। ऋषियों-मुनियों ने राजा को वीर व पराक्रमी पुत्र होने का आशीर्वाद दिया, लेकिन साथ में यह भी कहा 20 वर्ष तक उसे उत्तर दिशा में जाने से रोकना। नौवें माह प्रभु कृपा से पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा ने धूमधाम से नामकरण संस्कार करवाया और उस पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। वह वीर, तेजस्वी व समस्त विद्याओं में शीघ्र ही निपुण हो गया।
 
एक दिन एक जैन मुनि उस गांव में आए। उनके धर्मोपदेश से कुंवर सुजान बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली और प्रवास के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। धीरे-धीरे लोगों की जैन धर्म में आस्था बढ़ने लगी। स्थान-स्थान पर जैन मंदिरों का निर्माण होने लगा।
 
एक दिन राजकुमार शिकार खेलने वन में गए और अचानक ही राजकुमार उत्तर दिशा की ओर जाने लगे। सैनिकों के मना करने पर भी वे नहीं माने। उत्तर दिशा में सूर्य कुंड के पास ऋषि यज्ञ कर रहे थे। वेद ध्वनि से वातावरण गुंजित हो रहा था। यह देख राजकुमार क्रोधित हुए और बोले- 'मुझे अंधरे में रखकर उत्तर दिशा में नहीं आने दिया' और उन्होंने सभी सैनिकों को भेजकर यज्ञ में विघ्न उत्पन्न किया। इस कारण ऋषियों ने क्रोधित होकर उनको श्राप दिया और वे सब पत्थरवत हो गए।
 
राजा ने यह सुनते ही प्राण त्याग दिए। उनकी रानियां सती हो गईं। राजकुमार सुजान की पत्नी चन्द्रावती सभी सैनिकों की पत्नियों को लेकर ऋषियों के पास गईं और क्षमा-याचना करने लगीं। ऋषियों ने कहा कि हमारा श्राप विफल नहीं हो सकता, पर भगवान भोलेनाथ व मां पार्वती की आराधना करो।
 
सभी ने सच्चे मन से भगवान की प्रार्थना की और भगवान महेश व मां पार्वती ने अखंड सौभाग्यवती व पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। चन्द्रावती ने सारा वृत्तांत बताया और सबने मिलकर 72 सैनिकों को जीवित करने की प्रार्थना की। महेश भगवान पत्नियों की पूजा से प्रसन्न हुए और सबको जीवनदान दिया।
 
भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य धर्म को अपनाया। इसलिए आज भी 'माहेश्वरी समाज' के नाम से इसे जाना जाता है। समस्त माहेश्वरी समाज इस दिन श्रद्धा व भक्ति से भगवान शिव व मां पार्वती की पूजा-अर्चना करते हैं।