बुधवार, 9 अक्टूबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. व्रत-त्योहार
  4. »
  5. अन्य त्योहार
Written By ND

पुरुष भी करते हैं उपवास...!

पुरुष भी करते हैं उपवास...! -
- अखिलेश पटवारी

ND
त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है। हमारे देश में कई ऐसे त्योहार होते हैं जिनमें उपवास रखा जाता है। उपवास के अनेक रूप हैं। धार्मिक एवं आध्यात्मिक साधना के रूप में प्रागैतिहासिक काल से ही उपवास का प्रचलन रहा है। गीता जैसे धर्मग्रंथों में भी विषय-विकारों की तरफ से दृष्टि हटाने के लिए उपवास को साधन के रूप में इस्तेमाल करने की बात कही गई है। आजकल युवाओं में भी उपवास का एक ट्रेंड जैसा बन गया है। क्योंकि कई लोगों का मानना है कि इससे सेहत की भी देखभाल हो जाती है।

कुछ लोग मानते हैं कि यह वजन कम करने का भी साधन है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उपवास का अच्छा फलाहारी भोजन खाने के लिए भी उपवास करते हैं। पहले सिर्फ महिलाओं में ही इसका क्रेज था पर आज पुरुषों में भी काफी संख्या में उपवास रखने का चलन बढ़ गया है। कई तो ऐसे साधक भी हैं जो पूरे श्रावण मास उपवास करते हैं। आइए जानते हैं खासतौर पर युवकों की नजरों में उपवास का क्या महत्व है।

वे कहते हैं- 'ऐसा नहीं है कि उपवास केवल महिलाएँ ही रखती हैं। आजकल तो पुरुष भी रखने लगे हैं। पहले का दौर अलग था जब उपवास रखना केवल स्त्रियों का ही काम माना जाता था, पर अब वक्त बदल रहा है। इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं। इसके जरिए इच्छा शक्ति का हर सप्ताह परीक्षण हो जाता है। दूसरा इसके माध्यम से पाचन तंत्र को कुछ आराम भी मिल जाता है। पूरे सप्ताह स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है।

रही बात लड़का-लड़की के विषय में उपवास की भ्रांतियों की, तो यह जरूरी नहीं कि लड़कियाँ ही उपवास करें। जब कोई लड़की योग्य वर पाने के लिए उपवास कर सकती है तो लड़के क्यों नहीं रख सकते? उपवास में जब धर्म, प्रेम और भक्ति का समावेश हो जाए तो मन को काफी शांति मिलती है।'

ND
'जब हम छोटे थे तो तरह-तरह के फलाहारी पकवान खाने के लालच से उपवास कर लेते थे'- हँसते हुए कनिका कहती हैं। वे कहती हैं- 'उपवास का मूल उद्देश्य होता है पाचन तंत्र को आराम देना, लेकिन हम लोगों ने आज उपवास के असल स्वरूप को भुलाकर उसे सिर्फ जुबानी स्वाद तक सीमित कर लिया है। आजकल हम उपवास के नाम पर रोज से भी ज्यादा खा लेते हैं और फिर उसके परिणाम हमें देर-सवेर भुगतने पड़ते हैं। इसलिए जरूरी है कि उपवास के असल अर्थ को हम समझें और उसे अपनाएँ।

रही बात पुरुष तथा स्त्रियों के उपवास की तो यहाँ कोई असमानता नहीं है। मैंने तो कई पुरुषों को अपनी पत्नी के साथ करवाचौथ जैसे कड़क उपवास उसी श्रद्धा के साथ रखते देखा है। और यह चीज़ मुझे अंदर तक अभीभूत भी कर गई। सही बात है, यदि पत्नी पति के लिए उपवास रख सकती है तो पति क्यों नहीं?'

वाकई यदि उपवास रखने से शरीर के साथ मन को भी लाभ हो तो भला कौन नहीं करना चाहेगा? रही बात महिला-पुरुष के उपवास रखने संबंधी बातों की, तो जब प्रेम है तो एक-दूसरे की भलाई के लिए प्रार्थना और उपवास रखने में कोई बुराई नहीं है। (नायिका ब्यूरो)