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Written By भाषा
Last Modified: लंदन , सोमवार, 13 अगस्त 2012 (18:40 IST)

लंदन ओलिंपिक : याद रहेंगे सुशील के दांव

लंदन ओलिंपिक : याद रहेंगे सुशील के दांव -
BBC
सुशील कुमार के लगातार दो ओलिंपिक में पदक जीतने की ऐतिहासिक उपलब्धि और उनके साथ योगेश्वर दत्त को मिले कांस्य पदक के अलावा निशानेबाजी में मिले दो पदक से भारत 30वें ओलिंपिक खेलों में रिकॉर्ड छ: पदक जीतकर नई ऊंचाई पर पहुंचने में सफल रहा।

बीजिंग ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले सुशील ने लंदन में आखिरी दिन भारतीय खेमे को उत्साह और रोमांच से लबरेज कर दिया। दिल्ली के इस पहलवान ने 66 किग्रा भार वर्ग के फाइनल में जगह बनाकर कुश्ती में पहले स्वर्ण पदक की उम्मीद जगाई।

उन्हें आखिर में रजत पदक से संतोष करना पड़ा लेकिन इससे वे ओलिंपिक में भारत के सबसे सफल खिलाड़ी बन गए। सुशील की इस उपलब्धि के अलावा निशानेबाज विजय कुमार ने 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल में रजत पदक जीता।

इन दोनों के अलावा निशानेबाज गगन नारंग, बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल, मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम और पहलवान योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक हासिल किया। इससे कुछ स्टार खिलाड़ियों की नाकामी के बावजूद भारत छह पद लेकर काफी हद तक अपेक्षानुरूप प्रदर्शन करने में सफल रहा।

भारत ने बीजिंग ओलिंपिक में एक स्वर्ण और दो कांस्य पदक सहित तीन पदक जीते थे लेकिन इस बार वह पदकों की संख्या दोगुनी करने में सफल रहा। यह अलग बात है कि इस बार उसके हाथ सोने का तमगा नहीं लगा।

चार साल पहले निशानेबाज अभिनव बिंद्रा व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने थे। हॉकी खिलाड़ियों को आठ साल बाद ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई करने पर सिर आंखों पर बिठा दिया गया था लेकिन वे लंदन जाकर फिसड्डी साबित हुए।

भारतीय टीम ने अपना प्रत्येक मैच गंवाया और 12 टीमों के बीच सबसे आखिरी स्थान पर रही। यदि चार साल पहले बीजिंग ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाने को नजरअंदाज कर दिया जाए तो यह ओलिंपिक में भारतीय हॉकी टीम का सबसे बुरा प्रदर्शन रहा।

तीरंदाजों ने बहुत निराश किया। उन्होंने बहुत अच्छी फार्म के साथ ओलिंपिक में कदम रखा था तथा पुरुष टीम ने भी अच्छे प्रदर्शन के साथ क्वालीफाई किया था, लेकिन जब उनसे बेहतर प्रदर्शन की दरकार थी तब उनमें से कोई भी अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाया।

यह सही है कि यहां की हवादार, सर्द और बादलों से भरे आसमान की परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं थी लेकिन उन्होंने इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही अभ्यास किया था। सबसे अधिक निराश दुनिया की नंबर एक तीरंदाज दीपिका ने किया जो महिलाओं की व्यक्तिगत रिकर्व में पहले दौर में ही बाहर हो गई।

जहां तक भारत को मिले सबसे करारे झटके का सवाल है तो सबसे अधिक निराश हॉकी टीम ने किया। वह ग्रुप में अपने पांचों मैच हार गई। इनमें से कुछ मैच तो वह बहुत बुरी तरह हारी। दक्षिण अफ्रीका ने 11वें और 12वें स्थान के क्लासिफिकेशन मैच में भारत को 3-2 से हराकर ताबूत में आखिरी कील ठोक दी।

इससे पहले भारतीय हॉकी टीम कभी आखिरी स्थान पर नहीं रही थी। लंदन के लचर प्रदर्शन से पहले उसका खराब प्रदर्शन अटलांटा ओलिंपिक में रहा था। तब टीम आठवें स्थान पर रहा था। इस खराब प्रदर्शन से ऑस्ट्रेलियाई कोच माइकल नोब्स की क्षमता पर भी सवालिया निशान उठने लगा है जिन्होंने भारतीय हाकी में नयी जान फूंकने का वादा किया था।

अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या नोब्स को भी उनके पूर्ववर्ती विदेशी कोचों जोस ब्रासा, गेरहार्ड रॉक और रिक चार्ल्सवर्थ की तरह अपना बोरिया बिस्तर बांधना पड़ेगा। इस बदतर प्रदर्शन के लिए वैसे अकेले नोब्स को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि भारतीय खिलाड़ी रणनीति के अनुरूप खेल दिखाने में नाकाम रहे।

ऐसा क्यों हुआ इसका किसी के पास जवाब नहीं है। स्ट्राइकर पूरी तरह से नाकाम रहे जबकि मध्यपंक्ति और रक्षापंक्ति ने भी बहुत निराश किया। केवल सरदार सिंह ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने अच्छा खेल दिखाया लेकिन हाकी टीम गेम है और इसमें एक खिलाड़ी पूरी टीम का बोझ नहीं उठा सकता।

निशानेबाजों से भी बड़ी उम्मीदें लगाई गई थीं, लेकिन भारत का अब तक सबसे बड़ा निशानेबाजी दल केवल एक रजत और एक कांस्य पदक के साथ स्वदेश लौटा। भारतीय निशानेबाजी के बड़े नाम अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे लेकिन जिस विजय कुमार से अधिक उम्मीद नहीं की जा रही थी वह 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल में रजत पदक जीतने में सफल रहा।

इसके अलावा नारंग ने पुरुषों की दस मीटर एयर राइफल में कांस्य पदक जीता। इन दोनों के अलावा जायदीप करमाकर ने 50 मीटर राइफल प्रोन में अच्छा प्रदर्शन किया और वह मामूली अंतर से पदक से चूक गए।

करमाकर का यह पहला ओलिंपिक था। जब निशानेबाज लंदन पहुंचे थे तो बिंद्रा, नारंग और सोढ़ी को पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। इनमें से बिंद्रा और सोढ़ी ने अपने प्रदर्शन से खासा निराश किया।

कुल मिलाकर यह फिर से साबित हो गया कि भारतीय निशानेबाजों में ओलिंपिक जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन करने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास नहीं है। भले ही उनका रिकॉर्ड अच्छा रहा है लेकिन इनमें से अधिक दबाव सहने में नाकाम रहे।

महिला निशानेबाजों में से तो कोई भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। हीना सिद्धू और राही सरनोबत दोनों ने निराशाजनक प्रदर्शन किया। मुक्केबाजी में भी भारत को कुछ पदकों की उम्मीद थी लेकिन केवल मैरीकॉम महिला मुक्केबाजी में कांस्य पदक जीत पाई।

उन्होंने 51 किग्रा के सेमीफाइनल में पहुंचकर अपने लिए पदक पक्का किया था। अंतिम चार में वह हालांकि ब्रिटेन की निकोला एडम्स से हार गई थी। मुक्केबाजों को लेकर खेलों से पहले बड़ी हाइप बना दी गई थी, लेकिन सातों पुरुष मुक्केबाज नाकाम रहे। यह नहीं, कह सकते कि इन सभी मुक्केबाजों का भाग्य ने साथ नहीं दिया क्योंकि वे अपने प्रतिद्वंद्वियों की तरह तकनीकी रूप से बेहतर नहीं थे।

विजेंदर से उम्मीद की जा रही थी वे लगातार दो ओलिंपिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय बनेंगे लेकिन हरियाणा का यह मुक्केबाज क्वार्टर फाइनल में उज्बेकिस्तान के अबोस अतोव से 13-17 से हार गए। विजेंदर के अलावा केवल युवा देवेंद्रो सिंह ही क्वार्टर फाइनल में पहुंच पाए।

उन्होंने आयरलैंड के पैडी बर्न्‍स से हारने से पहले काफी अच्छा मुकाबला किया था। भारतीय दल हालांकि कुछ मुकाबलों में जजों के फैसले से संतुष्ट नहीं दिखा। साइना के ऐतिहासिक पदक के अलावा पुरुष वर्ग में पी. कश्यप ने क्वार्टर फाइनल में पहुंचकर नया इतिहास बनाया।

वे ओलिंपिक के अंतिम आठ में पहुंचने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। अन्य बैडमिंटन खिलाड़ी ज्वाला गुटा, वी. दीजू और अश्विनी पोनप्पा खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए। टेनिस एक और खेल रहा जिसमें भारत को बहुत निराशा मिली।

ओलिंपिक से पहले ही चयन विवाद के कारण ऐसी संभावना बन गई थी। भारत की युगल में प्रत्येक टीम दूसरे दौर से आगे नहीं बढ़ पाई। लिएंडर पेस और सानिया मिर्जा ने मिश्रित युगल क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई लेकिन उन्हें भी पदक नहीं मिला।

सबसे अधिक निराश महेश भूपति ने किया जिन्होंने पेस के साथ जोड़ी बनाने से साफ इनकार करके रोहन बोपन्ना के साथ जोड़ी बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। भूपति और बोपन्ना को यहां सातवीं वरीयता दी गई थी लेकिन पहले दौर में तीन सेट में जीत दर्ज करने के बाद दूसरे दौर में वे रिचर्ड गास्केट और जुलियन बेनातु से हार गए थे।

एथलेटिक्स में भी कोई यादगार प्रदर्शन नहीं रहा। कृष्णा पूनिया ने महिला और विकास गौड़ा ने पुरुष वर्ग में चक्का फेंक के फाइनल में जगह बनाई लेकिन वहां उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पूनिया सातवें और विकास आठवें स्थान पर रहे।

ये दोनों अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बराबर भी चक्का नहीं फेंक पाए। इनके अलावा टिंटु लुका ने महिलाओं की 800 मीटर के सेमीफाइनल में जगह बनाई लेकिन वे इससे आगे नहीं बढ़ पाईं। पुरुष त्रिकूद में रंजीत माहेश्वरी अपने तीनों प्रयास में फाउल कर गए।

अन्य एथलीटों का प्रदर्शन भी प्रभावशाली नहीं रहा। टेबल टेनिस में सौम्यजीत घोष और अंकिता दास ने भी निराश किया जबकि जूडो में गरिमा चौधरी पहले दौर में हार गई। नौका चालक भी किसी तरह का चौंकाने वाला परिणाम देने में नाकाम रहे। (भाषा)