विजेन्दर ने सात वर्ष पूर्व रखी थी पदक की नींव
ओलिम्पिक के इतिहास में भारत के लिए मुक्केबाजी में पहला पदक सुनिश्चित करने वाले तेजतर्रार मुक्केबाज विजेन्दर ने सात साल पहले 2001 में जर्मनी में सब जूनियर इंटरनेशनल चैम्पियनशिप का स्वर्ण जीतकर ओलिम्पिक पदक के अपने अभियान की शुरुआत कर दी थी।बीजिंग ओलिम्पिक के 75 किग्रा भार वर्ग के क्वार्टर फाइनल में इक्वाडोर के मुक्केबाज कार्लोस गोंगोरा को अंकों के आधार पर 9-4 से हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश करने वाले विजेन्दर ने कम से कम काँस्य पदक मिला सुनिश्चित कर लिया है।हरियाणा रोडवेज के ड्राइवर महिपालसिंह के यहाँ 29 अक्टूबर 1985 को जन्मे विजेन्दर ने मात्र 16 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतकर अपनी काबिलियत साबित कर दी थी। भिवानी के इस मुक्केबाज को इसके बाद अपने कौशल को निखारने के लिए अपने परिवार से दूर रहना पड़ा और पिछले आठ साल में उनका अधिकतर समय चैम्पियनशिप में खेलते हुए या शिविर में ही बीता।विजेन्दर के पिता ने कहा हम आठ साल से अपने बच्चे से अच्छी तरह नहीं मिल पाएँ हैं। अधिकतर उससे फोन पर ही बात होती है। उन्होंने कहा कि हम तो सीधे-सादे लोग हैं। मैं ड्राइवरी करता हूँ और विजेन्दर की माँ आज भी गाय-भैंस चराने जाती है। विजेन्दर ने हमें पहचान दिलाई है। टीवी और मीडिया वाले हमारे घर के बाहर खड़े हैं। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि टीवी पर नजर आऊँगा। विजेन्दर ने 2001 में अपना पहला सोने का तमगा हासिल करने के बाद हर साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई न कोई पदक जीता। उन्होंने 2002 में जूनियर वाईएमसीए इंटरनेशनल में सोने का तमगा हासिल किया, जबकि 2003 में उन्होंने इस उपलब्धि को दोहराया। विजेन्दर ने इसी साल गोवा कप इंटरनेशनल में भी स्वर्ण जीता जबकि हैदराबाद में हुए अफ्रो एशिया खेलों में वह फाइनल में हार गए। इस मिडिल वेट मुक्केबाज को 2004 में इस्लामाबाद में सैफ खेलों में भी फाइनल में शिकस्त झेलनी पड़ी, जबकि इसी साल कराची में आयोजित ओलिम्पिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में रजत पदक के साथ उन्होंने एथेंस ओलिम्पिक में खेलने का हक पाया। हालाँकि अनुभव की कमी के कारण वह एथेंस में कुछ खास नहीं कर पाए।विजेन्दर ने 2005 में स्काटलैंड में राष्ट्रमंडल मुक्केबाजी का रजत पदक जीता, जबकि अगले साल मेलबर्न में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में भी उन्हें रजत पदक मिला। उन्होंने इसी साल कोलंबो में सैफ खेलों में सोने का तमगा और दोहा में एशियाई खेलों में काँस्य पदक जीतकर सीनियर स्तर पर अपने मजबूत दावे के संकेत दिए।भिवानी ने इस मुक्केबाजी ने 2007 में अपना पूरा ध्यान ओलिम्पिक पर लगाते हुए बीजिंग में पदक को अपना लक्ष्य बनाते हुए कड़ी ट्रेनिंग की। उन्होंने एशियाई चैम्पियनशिप में काँस्य के साथ अपने दावे को और मजबूत किया और 20 अगस्त 2008 को गोंगोरा को हराकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया।