प्रवासी साहित्य : स्वागत है...
सूर्य-चंद्र और उड़िगन सारेइस संसार में अभी आए नए मेहमान काकरो तुम स्वागत, इसे है यहां रहनागाओ इसके लिए ज़ोर से तराना अपनास्वागत है, स्वागत हैबारिश और मेघ, वायु और धुंधतुम रुको अभी, आकाश को छोड़ो शुद्धइसे सर्दी नहीं, गर्मी ज़रूरी हैअंधेरा हट जाए, प्रकाश का राज रहेस्वागत है, स्वागत हैगगन के परिंदों, धरती के पशुओंबड़े, छोटे सभी जल्दी इधर आओपल भर ही के लिए इस पर नज़र डालोअपने-अपने स्वर में मेहमान को गीत गाओस्वागत है, स्वागत है।पर्वतों, वादियों, झीलों और नदियोंघास-पात, झाड़ियों, वृक्षों, वनस्पतियों नर्म कोमल डालें रखो इसके आगेताकि जब वह गिरे, इसको चोट न लगेतुम्हारा यह गीत यह कभी न भूलेस्वागत है संसार मेंतेरे लिए सब तैयार हैंसबको तेरा इंतजार है।