प्रवासी साहित्य - शोक-सभा
आमिर वेहाबोविक की शोक-सभा
-
शरत कुमार मुखोपाध्याय अधेड़ व्यक्ति नेसोचा थाउसकी मौत के बाद शोक-सभा मेंकितने लोग आएंगे, देखा जाए न-चारों ओर इतने प्रशंसकमित्र, आत्मीय, स्वजन हैं।अंत में उत्तर बॉसेनिया केछोटे शहर गैडिस्का मेंएक शोक-सभा आयोजित हुई।एक शोक-सभा आयोजित हुईवहां लंगड़ाती-लंगड़ातीकेवल एक औरत आईउसकी बूढ़ी मां।अमित तो क्रोध से लालउसने कहा, इतना खर्च करएक जाली सर्टिफिकेट जुगाड़ कियाघूस-घास देकर घुसाया कब्र मेंएक खाली कोफिन-सब बेकार हुआ।वे तो कहते थे कि वे मुझे प्यार करते हैंमेरी बात उन्हें हमेशा याद रहेगी।बूढ़ी मां ने कहा,यह काम तुम्हें नहीं करना चाहिए था,वे सब स्वयं को लेकर ही व्यस्त हैं, बेटे।सारे झूठों के ढक्कननहीं हटाना चाहिए, बेटे।-
बांग्ला से हिन्दी अनुवाद गंगानन्द झा