प्रकृति होय बदरंग...
- डॉ. देवेंद्र मोहन मिश्रा
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकै कुसंग। संगत बुरी अगर मिलै प्रकृति होय बदरंग।। बड़े बढ़ाई ना करैं, बड़े न बोलें बोल। खुद की पब्लिसिटी ना करै तो हो जीरो मोल।। सत्ता थिर न कबहुं रहै यही जानत सब कोय। आज सोनिया हाथ है कल मोदी संग होय।। रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी का अब काम क्या, बीयर पियो हो टुन्न।। क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।काटो पैर तत्काल जो मारना चाहे लात।। तरुवर फल नहीं खात हैं, सरवर पियहिं न पान। खाएं-पिएं वो तो तभी, जब छोड़े इंसान।। जो बड़ेन को लघु कहे, नहीं रहीम घटी जाए। तुच्छ कहें यदि बोस को, तुरंत नौकरी जाए।। झूठ बराबर तप नहीं, सांच बराबर पाप।यह कलियुग का मंत्र है, ह्रदय संजोएं आप।।