जर्रे-जर्रे में तुम
- शैफाली गुप्ता
हर कामयाबी अपने मायनेखो देती हैजब जेहन में तुम्हारानाम आता है!हर रास्ता अपनी मंजिलछोड़ देता हैजब दूर क्षितिज पर तुमखड़े मिलते हो!हर फूल अपनी रंगत परइठलाना भूल उठता हैजब तुम्हारे चेहरे कानूर सूरज चमका देता है।ऐसा नहींकामयाबी की मुझे चाह नहींया मंजिलों की तलाश नहींफूलों से भी कोई बैर नहीं मेरामैंने तो बसअपना हर कतरा तुम्हारे 'होने'पर वार दिया हैतुम नहीं तो कुछ भी और नहीं