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Written By WD

कालचक्र

कालचक्र -
- अनुराधा आमलेकर
GN
24 जून को यवतमाल, महाराष्ट्र में जन्म। नाग‍पुर विद्यापीठ से बी.एससी. और ओटोवा से बी. एडमिन पढ़ाई के साथ नृत्य, संगीत, नाट्य की भी शिक्षा चलती रही, जिसका प्रभाव कविता में भी दिखाई देता है। 1997 में अमेरिका आईं और सिएटल में रहती हैं

सुबह के धुँधलके में
अलसाया-सा आसमान
तिलमिलाकर भागने लगता है
कोहरा चीर के
सूरज की किरणों के प्रहार से

सूरज क्रोध से धधकता है
और आग उगलता आता है
देखते ही देखते तपती धूप का
पड़ जाता है डेरा
GN
सारी दुनिया पर
सख्ती से मींची हुई
आँखों में भी घुसता है
जलता हुआ उजाला
एक डरावना सन्नाटा रेंगता है
नस-नस में
और सरसराता है ‍मस्तिष्क की ओर
कल आज बन जाता है
'गुड मॉर्निंग', 'हाऊ आर यू'
'फाइन', 'थैंक यू'
कठपु‍तलियाँ मुखौटे चढ़ाकर
नाटक के लिए सज जाती हैं
कम्प्यूटर, फोन, कॉफी
फाइल्स उत्साह से
तैरते हैं आसपास
सूरज हँसता रहता है
अपनी छद्‍मी प्रबल हँसी
असुरी आनंद से
इस राज्य के गुलामों पर
चलाते हुए समय के चाबुक

अमानुष मन वातावरण में भरे हुए
लाखों भूखे जीवों की चीखें अनसुनी कर
भरे पेट सँवारते हैं अपनी दौलत
नई कारें, नए घर खरीदने के लिए
क्या... यह भी नाटक का एक अंक है?

सूरज उकता जाता है
यह खेल-खेल के दिनभर
उसे चाह होती है दूसरे राज्य की
इस शतरंज के प्यादों का
दम घुटा जाता है
वह अपने कोड़े फटकारते
बदलता है अपनी दिशा
चुपके से आती है
जीवन की शाम
साथ अपने मौत की परछाई लेकर
फिर आती है रात की रानी
अँधेरे का कफ़न लेकर
कुछ गुलाम दम तोड़ देते हैं
कुछ प्यादे मुखौटों के साथ
जम जाते हैं
बरफ की तरह बचे हुए
और ढूँढते हैं अपना अस्तित्व
रात्रि के अंधकार में
मुखौटे फेंक, आँखें फाड़-फाड़कर
सबको नहीं होती है
अनुमति इस राज्य में
पलकें मूँद के सपने देखने की
और कुछ भाग्यशाली
आँखें मींच लेते हैं
कभी न खोलने के लिए
सूरज हँसता है
अपनी खूँखार हँसी
दूसरे राज्य में
जलते कोड़े बरसाते समय के
कल को आज करने के लिए।

डॉ. अंजना संधीर द्वारा संपादित ' प्रवासिनी के बोल' से साभार। (साभार- गर्भनाल)