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Written By नृपेंद्र गुप्ता

भारतीय राजनीति के दस ताकतवर परिवार...

भारतीय राजनीति
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देश की राजनीति में कुछ और नेताओं के पुत्रों के आ जाने से भारतीय राजनीति पूरी तरह परिवारिक राजनीति बनकर रह गई है। प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां हों या क्षेत्रीय स्तर की पार्टियां, सभी इन दिग्गज घरानों के सहारे मतदाताओं को रिझाने का प्रयास करती हैं।

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गांधी परिवार : मोतीलाल नेहरू के समय से ही भारतीय राजनीति पर नेहरू-गांधी परिवार की छाप पड़ी हुई है। उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू आजादी से पहले भी कांग्रेस के दबंग नेता थे। आजादी के बाद वे देश के पहले प्रधानमंत्री बने। वे आजीवन प्रधानमंत्री ही रहे।

नेहरू के निधन के बाद इंदिरा गांधी और इंदिरा के बाद राजीव गांधी ने भी देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इक्के-दुक्के अवसरों को छोड़ दिया जाए तो जवाहर से लेकर राजीव तक इस परिवार ने ही देश पर राज किया।

राजीव के निधन के बाद कांग्रेस ने अन्य नेताओं को भी मौका दिया, पर वे पार्टी को आगे ले जाने में विफल रहे। अंतत: राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी को कांग्रेस को संभालने के लिए आगे आना पड़ा। राजीव के भाई संजय गांधी भी राजनीति में रहे हैं। संजय की पत्नी मेनका गांधी भी भाजपा सांसद हैं।

राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी तथा संजय गांधी के पुत्र वरुण गांधी राजनीति में अपने पैर जमा चुके हैं। राहुल को तो कांग्रेसी देश का भावी प्रधानमंत्री भी मानते हैं।

इस परिवार के हाथ में है सत्ता की चाभी...अगले पन्ने पर...


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देश में सरकार किसी भी दल की बने, सत्ता की चाभी तो समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के हाथ में ही है। मुलायम तीन बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री और एक बार देश के रक्षामंत्री रहे हैं। राजनीति के मैदान में मुलायम का कुनबा खासा अनुभव रखता है।

संप्रग और राजग दोनों ही यूपी में सत्तारूढ़ मुलायम की पार्टी की अनदेखी नहीं कर सकते। यदा-कदा तीसरे मोर्चे की चर्चा दिल्ली के हल्कों में चलती रहती है। हर बार इन चर्चाओं के पीछे मुलायम की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है।

बेटा-बहू, भाई-भतीजा सभी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। मुलायम के बेटे अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं तो बहू डिम्पल यादव भी सांसद हैं। उनके भाई शिवपाल, रामगोपाल भी प्रदेश की राजनीति में खासा दखल रखते हैं। रामगोपाल का बेटा अक्षय भी राजनीति में प्रवेश कर चुका है। बदायूं से सांसद धर्मेंद्र यादव भी उनके ही परिवार से हैं।

देश की राज‍नीति में गहरी है इस राजपरिवार की पैठ...अगले पन्ने पर...


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सिंधिया परिवार देश का एकमात्र ऐसा शक्तिशाली राजघराना है जिसकी भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही तगड़ी पकड़ है। ग्वालियर की महारानी विजयाराजे सिंधिया ने अपना राजनीतिक सफर 1965 में कांग्रेस से शुरू किया था, पर जल्द ही वे पहले जनसंघ और फिर भाजपा की प्रभावशाली नेता बन गईं।

उनकी बेटियां वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया अब भी भाजपा में ही हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया ने मध्यप्रदेश और राजस्थान से 5 संसदीय चुनावों में जीत दर्ज की। वे वाजपेयी सरकार में कई अलग-अलग मंत्रालयों का प्रभार संभाल चुकी हैं। वे राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रही हैं। वसुंधरा का बेटा दुष्यंत भी सांसद हैं।

यशोधरा राजे सिंधिया ने मध्यप्रदेश के शिवपुरी से विधानसभा चुनाव लड़ा और 1998 और 2003 में जीत दर्ज की। वे प्रदेश की पर्यटन, खेल और युवा मामलों के लिए राज्यमंत्री भी रही हैं।

दूसरी ओर विजयाराजे के बेटे माधवराव सिंधिया का नाम कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार किया जाता रहा है। वे 1971 में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और 2001 में मृत्यु तक लोकसभा के सदस्य रहे। वे भी केंद्र में मंत्री रहे हैं। उनका एक विमान हादसे में निधन हो गया। उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी ग्वालियर से सांसद है और केंद्रीय मंत्री भी हैं।

अगले पन्ने पर... शेर-ए-कश्मीर के परिवार की धाक...


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शेर-ए-कश्मीर के नाम से पहचाने जाने वाले शेख अब्दुल्लाका नाम आधुनिक जम्मू-कश्मीर के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में शुमार किया जाता है। शेख ने नेशनल कांफ्रेंस नामक राजनीतिक दल का गठन किया, जो कश्मीर की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। 1948 में वे जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री भी बने थे।

उनके बेटे फारुख और पोते उमर अब्दुल्ला भी राज्य की कमान संभाल चुके हैं। शेख की पत्नी बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला संसद सदस्य थीं तो बेटा मुस्तफा कमल विधायक।

फारुख अब्दुल्लातीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। वे मनमोहन सरकार में मंत्री हैं। फारुख के बेटे उमर भी केंद्र में मंत्री रहे हैं। उमर फिलहाल राज्य के मुख्यमंत्री हैं। उनकी बेटी की शादी कांग्रेस सांसद सचिन पायलट से हुई है।

शेख अब्दुल्ला के दामाद गुलाम मोहम्मद शाह भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं।

ये हैं पंजाब की राजनीति के सरताज... अगले पन्ने पर...


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पंजाब की राजनीति मुख्य रूप से मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह के इर्द-गिर्द घूमती है। राज्य की वर्तमान राजनीतिक स्‍थितियों पर गौर किया जाए तो आगामी कुछ वर्षों तक राज्य की कमान इन्हीं दोनों राजनीतिक दिग्गजों के परिवार का ही कोई सदस्य संभालेगा। बादल परिवार के तीन सदस्य राजनीति में सक्रिय हैं तो अमरिंदर परिवार के चार।

प्रकाशसिंह बादल के बेटे सुखबीर ने उनकी राजनीतिक विरासत को पूरी तरह संभाल लिया है। वे राज्य के उपमुख्यमंत्री होने के साथ ही शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष भी हैं। सुखबीर की पत्नी हरसिमरत कौर भटिंडा से लोकसभा सांसद हैं।

पटियाला घराने की राजमाता मोहिंदर कौर राज्यसभा सांसद रही हैं। उनके बेटे और पटियाला राजघराने के महाराजा कैप्टन अमरिंदर पंजाब के मुख्यमंत्री रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस की राजनीति में उनका दबदबा जगजाहिर है। अमरिंदर की पत्नी परणित कौर केंद्र सरकार में मंत्री हैं तो बेटा रणिंदर सिंह भी राजनीति में पैर जमा चुका है। रणिंदर को गत लोकसभा चुनाव में हरसिमरत कौर के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।

विवादों की बौछार, फिर है दमदार...अगले पन्ने पर...


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पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि का परिवार दक्षिण भारत के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार के रूप में जाना जाता है। गत लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी द्रमुक ने 28 सीटें जीती थीं और कई अवसरों पर वे संप्रग सरकार के तारणहार भी बने। बेटे अलागिरी और बेटी कनिमोझी सांसद हैं। अलागिरी केंद्र में मंत्री भी हैं। उनके छोटे बेटे स्टालिन तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री रहे हैं।

उनके भतीजे मुरासोली मारन का नाम भी पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार किया जाता है। मुरासोली के बेटे दयानिधि मारन केंद्र में मंत्री हैं।

करुणानिधि की राजनीतिक विरासत को लेकर उनके बेटे अलागिरी और स्टालिन में गहरा विवाद है। दोनों ही एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। कनिमोझी की भी अपने भाइयों से पटरी नहीं बैठती। एमके अलागिरी, एमके स्टालिन और कनिमोझी पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लग चुके हैं। करुणानिधि परिवार के सभी राजनीतिक सदस्य विवादों में घिरे रहे हैं।

महाराष्ट्र में बोलती है इस परिवार की तूती...


देश की राजनीति में एनसीपी नेता शरद पवार की भी तूती बोलती है। इस मराठा नेता ने प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी का विरोध करने के बावजूद मनमोहन मंत्रिमंडल में जगह बनाई।

उनके भतीजे अजीत पवार भी एक तेजतर्रार नेता माने जाते हैं। वे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री भी हैं। ऐसा माना जाता है कि अजीत ही शरद पवार की राजनीतिक विरासत को संभालेंगे। शरद की बेटी सुप्रिया सुले भी सांसद हैं।

हरियाणा में हैं चार राजनीतिक घराने... अगले पन्ने पर...


हरियाणा की राजनीति में देवीलाल, हुड्डा, भजनलाल और बंसीलाल के परिवारों का दबदबा है। इन चारों ही परिवारों ने राज्य को मुख्यमंत्री दिए हैं। भारत के पूर्व उपप्रधानमंत्री रहे देवीलाल की राजनीतिक विरासत उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने संभाली। वे राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। उनके दोनों बेटे अजय और अभय विधायक हैं। देवीलाल के दूसरे बेटे रणजीत भी कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने जा चुके हैं।

राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री भुपिंदर सिंह हुड्डा के पिता और बेटे दोनों ही राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। पिता रणबीर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही जगह पार्टी का नेतृत्व किया है। बेटे दीपेंदर सिंह भी लोकसभा सांसद हैं।

कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाने वाले भजनलाल भी राज्य की कमान संभाल चुके हैं। उनके बेटे कुलदीप हिसार से सांसद हैं तो बहू रेणुका आदमपुर से विधायक। भजनलाल के दूसरे बेटे चंद्रमोहन भी राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे हैं।

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल का राजनीतिक गढ़ भिवानी और उसके आसपास का क्षेत्र है। उनके बेटे सुरेंद्र और रणबीर सिंह महेंद्र दोनों ही राजनीति के मैदान में उतर चुके हैं। सुरेंद्र सांसद रह चुके हैं तो रणबीर विधायक चुने जा चुके हैं। बंसीलाल की बेटी श्रुति चौधरी भी लोकसभा सांसद हैं।

नेता ने दिखाया चमत्कार, पत्नी को बनाया मुख्यमंत्री...


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देशभर में लोगों को कुल्हड़ में चाय पिलवाने वाले पूर्व रेलमंत्री लालू यादव का नाम देश के बड़े नेताओं में शुमार किया जाता है। लालू अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए जाने जाते हैं। वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। अपने चुटीले अंदाज के कारण ही लालू संसद में सबका मन मोह लेते हैं। उनकी सक्रियता के भी सब कायल हैं।

इतना ही नहीं, चारा घोटाले में नाम आने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ीदेवी को भी मुख्यमंत्री बनवा दिया। वे बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं। लालू ने अपने सालों साधु यादव और सुभाष यादव को भी राजनीति में स्थापित करवाया।

बाप-बेटे ने संभाली इस राज्य की बागडोर...


उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक भी देश के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे। वे केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं। बीजू ने दो बार उड़ीसा की कमान भी संभाली। बीजू की राजनीतिक विरासत को नवीन ने संभाला। उन्होंने बीजू जनता दल के नाम से एक क्षेत्रीय दल का गठन भी किया। भाजपा से गठबंधन कर वे उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने।