भगवान शिव को महाकाली के पैरों तले क्यों आना पड़ा?
भगवती की दस महाविद्याओं में से एक हैं महाकाली जिनके काले और डरावने रूप की उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी। यह एकमात्र ऐसी शक्ति है जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है। उनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है कि संपूर्ण संसार की शक्तियां मिलकर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। उनके इस क्रोध को रोकने के लिए स्वयं उनके पति भगवान शंकर उनके चरणों में आकर लेट गए थे।
इस संबंध में शास्त्रों में बहुत सारी कथाएं वर्णित हैं। दैत्य रक्तबीज ने कठोर तप के बल पर वर पाया था कि अगर उसके खून की एक बूंद भी धरती पर गिरेगी तो उससे अनेक दैत्य पैदा हो जाएंगे। उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग निर्दोष लोगों पर करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसने अपना आतंक तीनों लोकों पर मचा दिया।
देवताओं ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। भयंकर युद्ध का आगाज हुआ। देवता अपनी पूरी शक्ति लगाकर रक्तबीज का नाश करने को तत्पर थे, मगर जैसे ही उसके शरीर की एक भी बूंद धरती पर गिरती, उस एक बूंद से अनेक रक्तबीज पैदा हो जाते।
सभी देवता मिलकर महाकाली की शरण में गए। मां काली असल में सुन्दरी रूप भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप है जिनकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिए हुई थी। महाकाली ने देवताओं की रक्षा के लिए विकराल रूप धारण कर युद्ध भूमि में प्रवेश किया। मां काली की प्रतिमा देखें तो देखा जा सकता है कि वे विकराल मां हैं जिसके हाथ में खप्पर है, लहू टपकता है, तो गले में खोपड़ियों की माला है। मगर मां की आंखें और हृदय से अपने भक्तों के लिए प्रेम की गंगा बहती है।
महाकाली ने राक्षसों का वध करना आरंभ किया, लेकिन रक्तबीज के खून की एक भी बूंद धरती पर गिरती तो उससे अनेक दानवों का जन्म हो जाता जिससे युद्धभूमि में दैत्यों की संख्या बढ़ने लगी। तब मां ने अपनी जिह्वा का विस्तार किया। दानवों का एक खून धरती पर गिरने की बजाय उनकी जिह्वा पर गिरने लगा।
वे लाशों के ढेर लगाती गईं और उनका खून पीने लगीं। इस तरह महाकाली ने रक्तबीज का वध किया, लेकिन तब तक महाकाली का गुस्सा इतना विकराल रूप ले चुका था कि उनको शांत करना जरूरी था, मगर हर कोई उनके पास जाने से भी डर रहा था।
तब सभी देवता भगवान शिव के पास गए और महाकाली को शांत करने के लिए प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने उनको बहुत प्रकार से शांत करने की कोशिश की। जब सभी प्रयास विफल हो गए, तो वे उनके मार्ग में लेट गए। जब उनके चरण भगवान शिव पर पड़े तो वे एकदम से ठिठक गईं। उनका क्रोध शांत हो गया।
मां प्रकृतिस्वरूपा हैं। बंगाल और असम में महाकाली की विशेष पूजा होती है। वास्तव में आदिशक्ति मां दुर्गा के विविध रूपों का वर्णन मार्कंडेय पुराण में वर्णित है। महासरस्वती, महाकाली और महालक्ष्मी रूपों में मां दुर्गा का विस्तार है।