बुधवार, 18 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. नवरात्रि
  4. chinnamastika mandir
Written By

अत्यंत चमत्कारी है मां छिन्नमस्तिका सिद्धपीठ, पढ़ें पौराणिक महत्व और कथा

अत्यंत चमत्कारी है मां छिन्नमस्तिका सिद्धपीठ, पढ़ें पौराणिक महत्व और कथा - chinnamastika mandir
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का मंदिर है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है। असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिका या छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है। 
 
रजरप्पा का यह सिद्धपीठ केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है। छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं। पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के समीप ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है। मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है। 
 
मां छिन्नमस्तिके की महिमा की कई कथाएं प्रचलित हैं। प्राचीनकाल में छोटा नागपुर में रज नामक एक राजा राज करते थे। राजा की पत्नी का नाम रूपमा था। इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा, जो बाद में रजरप्पा हो गया।
 
एक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुंचे। रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुख मंडल वाली एक कन्या देखी।
 
उसने राजा से कहा- हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है। मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी।
 
राजा की आंखें खुलीं तो वे इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं। वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई। उसका रूप अलौकिक था। यह देख राजा भयभीत हो उठे।
 
राजा को देखकर देख वह कन्या कहने लगी- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिके देवी हूं। कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके हैं जबकि मैं इस वन में प्राचीनकाल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं। मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी।
 
देवी बोली- हे राजन, मिलन स्थल के समीप तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा। इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी। तुम सुबह मेरी पूजा करो। ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया।
 
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भी भोजन मांगा। देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा।
 
बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया। कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा व गले से 3 धाराएं निकलीं। वह 2 धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं। तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं।
 
रजरप्पा के स्वरूप में अब बहुत परिवर्तन आ चुका है। तीर्थस्थल के अलावा यह पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है। आदिवासियों के लिए यह त्रिवेणी है। मकर संक्रांति और नवरात्रि के मौके पर लाखों श्रद्धालु आदिवासी और भक्तजन यहां स्नान करने तथा चरण स्पर्श के लिए आते हैं। अब यह पर्यटन स्थल का मुख्य केंद्र है।
ये भी पढ़ें
भारतीय स्वतंत्रता के लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर विशेष