नवरात्रि में कब और कैसे करें पूजन?
नवरात्रि में दुर्गा पूजा और उपवास का महत्व
वर्ष की 4 नवरात्रियों में 2 मुख्य चैत्र और अश्विन नवरात्रि हैं। इनमें भी चैत्र नवरात्रि की अपनी विशिष्टता और महत्ता है। इसकी विशिष्टता का कारण इस अवधि में सूक्ष्म वातावरण में दिव्य हलचलों का होना है।यह चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक 9 दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन की नवरात्रि ही मुख्य माने जाते हैं। इनमें भी देवीभक्त आश्विन माह की नवरात्रि अधिक करते हैं। इनको यथाक्रम वासंतीय और शारदीय कहते हैं। इनका आरंभ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है, अतः यह प्रतिपदा 'सम्मुखी’ शुभ होती है।
नवरात्रि के आरंभ में अमावस्यायुक्त प्रतिपदा अच्छी नहीं होती। आरंभ में घटस्थापना के समय यदि चित्रा और वैधृति हो तो उनका त्याग कर देना चाहिए, क्योंकि चित्रा में धन का और वैधृति में पुत्र का नाश होता है।घटस्थापना का समय प्रातःकाल ही सबसे श्रेष्ठ होता है, अगर उस दिन चित्रा या वैधृति रात्रि तक रहें तो या तो वैधृत्यादि के आद्य तीन अंश त्यागकर चौथे अंश में स्थापना करें या मध्याह्न के समय (अभिजीत मुहूर्त में) स्थापना करें।