छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह नक्सलियों की हिटलिस्ट में सबसे ऊपर हैं।
इस बात का खुलासा कुछ दिन पहले बिहार की राजधानी पटना में पकड़े गए एक नक्सली से पूछताछ में हुआ है। पूछताछ के बाद सामने आई जानकारी के बाद बिहार पुलिस ने छत्तीसगढ़ पुलिस को सतर्क किया है। जिसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री डॉ. सिंह के अलावा नक्सल विरोधी अभियान के मुखिया और विधानसभा में विपक्ष के नेता महेन्द्र कर्मा, बलरामपुर जिले के पुलिस अधीक्षक शिवराम प्रसाद कल्लुरी तथा एक अन्य आदिवासी नेता नक्सलियों की हिटलिस्ट में हैं।
पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन ने चर्चा में इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि बिहार पुलिस ने डॉ. सिंह और कर्मा के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस को सतर्क किया है, जबकि कल्लुरी स्वयं पुलिस अधीक्षक हैं और चौथे जिस व्यक्ति का नाम बताया गया है। वह कोई नामचीन नहीं है, लेकिन पुलिस का ऐसा अनुमान है कि दंतेवाड़ा में नक्सल विरोधी अभियान से जुड़ा कोई आदिवासी नेता हो सकता है।
पुलिस महानिदेशक ने बताया कि उनके पास समय-समय पर जानकारी आती रहती हैं, जिसके आधार पर सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा होती रहती है। उन्होंने बताया कि पुलिस अपनी ओर से मुख्यमंत्री और कर्मा सहित ऐसे सभी लोगों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे रही हैं, जिन्हें नक्सलियों से खतरा है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार डॉ. सिंह नक्सलियों के खिलाफ लगातार मोर्चा खोलने और सलवा जुडूम आंदोलन को अपना समर्थन देने के अलावा भाजपा सरकार के कार्यकाल में नक्सलियों के खिलाफ की गई कार्रवाइयों के चलते हिटलिस्ट में टॉप पर हैं, जबकि कर्मा को सलवा जुडूम का नेतृत्व करने और नक्सलियों के खिलाफ लगातार रैलियाँ करने के कारण निशाने पर रखा गया है।
पुलिस अधिकारियों में बलरामपुर के पुलिस अधीक्षक एसआरपी कल्लुरी नक्सलियों की निगाह में सबसे बड़े दुश्मन हैं। कल्लुरी ही वह अधिकारी है, जिन्होंने प्रदेश के उत्तरी इलाके विशेष तौर पर सरगुजा जिले में नक्सलवाद को करीब-करीब जड़ से खत्म कर दिया है। यहाँ पर पिछले चार सालों में सबसे अधिक नक्सलियों की धरपकड़ की गई और मुठभेड़ में मारे गए।
पुलिस सूत्रों के अनुसार सलवा जुडूम आंदोलन और पुलिस के आक्रामक रुख की वजह से प्रदेश में नक्सल आंदोलन को काफी क्षति पहुँची है, जिसकी बौखहालट के रूप में वे आए दिन बारूदी सुरंग के विस्फोट सहित बड़ी संख्या में आदिवासियों और पुलिसकर्मियों को निशाना बना रहे हैं। करीब एक साल पहले अबूझमाड़ में जंगलों में नक्सलियों के शीर्षस्थ नेताओं के सबसे बड़े सम्मेलन में सलवा जुडूम को हर हालत में विफल करने का निर्णय लिया गया था।
बैठक में सलवा जुडूम को खत्म करने के लिए नक्सलियों ने वैचारिक स्तर पर उनकी विचारधारा के करीब लोगों के माध्यम से बुद्धिजीवियों के बीच भी अपनी पैठ बनाने के काम को तेज करने का निर्णय लिया था, जिसके बाद इस आंदोलन के खिलाफ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माहौल बनाने का काम शुरू हो चुका है।