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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , शनिवार, 28 दिसंबर 2013 (14:33 IST)

दंगा विरोधी कानून पर नाकाम रहा केन्द्र

दंगा विरोधी कानून पर नाकाम रहा केन्द्र -
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नई दिल्ली। केंद्र सरकार इस साल वक्फ संपत्तियों की हिफाजत और बेहतर प्रबंधन के लिए संशोधित विधेयक को पारित कराने में कामयाब रही तो देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बावजूद वह दंगों के खिलाफ सर्वसम्मति से एक सख्त कानून बनाने में नाकाम रही।

इस साल संसद के दोनों सदनों में वक्फ संशोधन विधेयक को पारित किया गया और इसे कानून की शक्ल देकर लागू भी कर दिया गया। इस संशोधित कानून में वक्फ संपत्तियों की हिफाजत तथा बेहतर प्रबंधन को लेकर प्रावधान किए गए हैं। गैर कानूनी कब्जों को हटाने को लेकर भी कड़े प्रावधान हैं।

केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री के. रहमान खान ने इसे सरकार की बड़ी कामयाबी करार देते हुए कहा कि वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और गैरकानूनी कब्जों को हटाने में इस नए कानून से काफी मदद मिलेगी।

केंद्र सरकार ने केंद्रीय वक्फ विकास निगम स्थापित करने की भी पहल की और इसका काम अंतिम दौर में चल रहा है। यह निगम वक्फ संपत्तियों को विकसित करने की दिशा में काम करेगा।

वक्फ पर कामयाब रहने वाली केंद्र सरकार अपने चुनावी वादे के मुताबिक सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ कानून नहीं बना पाई। सांप्रदायिक एवं सुनियोजित हिंसा (रोकथाम) विधेयक को लेकर मुख्य विपक्षी भाजपा तथा कुछ दूसरे दलों ने विरोध किया। उनका विरोध विधेयक के उस प्रावधान को लेकर है जिसमें दंगों की स्थिति में केंद्र के दखल की बात की गई।

भाजपा और कुछ दूसरे राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया कि यह विधेयक देश के संघीय ढांचे के खिलाफ है क्योंकि कानून-व्यवस्था पूरी तरह से राज्य का विषय होता है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने इस संबंध में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखा।

सांप्रदायिक हिंसा विरोधी कानून की मांग ने इस साल कई स्थानों पर दंगों के बाद जोर पकड़ लिया। सबसे ज्यादा सांप्रदायिक दंगे उत्तरप्रदेश में हुए जहां समाजवादी पार्टी की सरकार है। सबसे भीषण दंगा इस साल सितम्बर की शुरुआत में मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में हुआ जिसमें 60 से अधिक लोगों की जान गई और हजारों लोग बेघर हुए।

उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर और दूसरे स्थानों पर हुए दंगों को लेकर सियासी गलियारों में खूब बहस हुई और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चला। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने साल के आखिर में मुजफ्फरनगर जाकर उत्तरप्रदेश की अखिलेश यादव सरकार को जमकर कोसा तो इसके बाद मुलायम ने पलटवार किया और इसी क्रम में एक विवादास्पद बयान भी दिया।

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा, मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के लिए बनाए गए राहत शिविरों में अब कोई पीड़ित नहीं रह रहा है। आप चाहे पता लगा लें। ये वो लोग हैं जो षड्यंत्रकारी हैं। यह भाजपा और कांग्रेस ने षड्यंत्र किया है।

भाजपा और कांग्रेस के लोग रात में जाकर उनसे कहते हैं कि बैठे रहो, धरना दो, लोकसभा चुनाव तक यह मुद्दा बनाए रखो। मुलायम के इस बयान को लेकर सिर्फ राजनीतिक दलों ने नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं ने भी उन पर निशाना साधा।

राहुल ने विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों को लेकर एक विवादास्पद बयान दिया जिसको लेकर मोदी ने उन पर निशाना साधा और चुनाव आयोग ने भी उनसे जवाब मांगा। राहुल ने कहा कि कुछ दंगा पीड़ित युवकों से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लोग संपर्क में हैं।

इस साल अल्पसंख्यकों को 4.5 फीसदी के आरक्षण का मुद्दा भी कई बार उठा। अल्पसंख्यक कार्य मंत्री रहमान खान ने कई मौकों पर कहा कि यह मामला उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन है और केंद्र सरकार आरक्षण की इस व्यवस्था को मंजूरी मिलने को लेकर आशावान है।

केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने इस साल के आम बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को 3,511 करोड़ रुपए आवंटित किए। यह आवंटन वित्त वर्ष 2012-13 के मुकाबले 12 फीसदी अधिक रहा।

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली संस्था मौलाना आजाद शिक्षा प्रतिष्ठान को भी 160 करोड़ रुपए दिए गए जिससे उसका कुल कोष (कारपस फंड) करीब एक हजार करोड़ रुपए हो गया। प्रतिष्ठान को लंबे समय बाद इसी साल आईपीएस अधिकारी वजीर अंसारी के रूप में नया स्थाई सचिव मिला।

रहमान खान ने समान अवसर आयोग के गठन को लेकर भी प्रयास किया, हालांकि इससे जुड़े विधेयक को संसद में पेश नहीं किया जा सका। इस साल राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम के पुनर्गठन की प्रक्रिया भी चली और यह अंतिम दौर में है। इसका मकसद अल्पसंख्यकों के लिए सस्ते दर पर कर्ज की सुविधा को सरल बनाना है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में इस साल तीन नए सदस्य आए। मुस्लिम समुदाय से फरीदा अब्दुल्ला खान, बौद्ध समुदाय से सेरिंग नांगयाल सानू तथा ईसाई समुदाय से माबेल रेबोलो आयोग के साथ जुड़े। इस साल मुस्लिम और ईसाई दलितों को भी आरक्षण का रास्ता साफ करने की मांग की गई तो गुजरात में अल्पसंख्यक लड़कियों को छात्रवृत्ति नहीं दिए जाने का मुद्दा भी उठा।

गुजरात के सिख किसानों से जमीन वापस लिए जाने को लेकर भी जमकर बहस हुई, हालांकि बाद में राज्य सरकार ने इस बारे में कदम पीछे खींच लिए। 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों की इंसाफ की लड़ाई भी जारी रही। (भाषा)