लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को कहा कि वास्तव में लोकतंत्र की सबसे जवाबदेह संस्था यानी विधायिका के सामने विश्वसनीयता का संकट खड़ा है मगर जहां सम्भावनाएं होती हैं, वहीं अंगुली भी उठ सकती है।
मुख्यमंत्री ने 17वीं विधानसभा के निर्वाचित विधायकों से कहा कि किसी लोकतंत्र में विधायिका का अपना महत्व है। जिन तीन स्तम्भों पर लोकतंत्र खड़ा है, उनमें विधायिका की भूमिका को कोई नकार नहीं सकता। हालांकि विधायिका के सामने विश्वसनीयता का संकट खड़ा है।
उन्होंने अपना एक अनुभव साझा करते हुए कहा, 'संसदीय लोकतंत्र में कोई एक संस्था ऐसी है जो सचमुच जवाबदेह है तो वह विधायिका ही है। जिस जनता ने हमें चुना है, पांच साल बाद हमें फिर उसी जनता के पास जाना होता है। निश्चित रूप से हमारी जवाबदेही होती है। क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि कोई न्यायाधीश या कार्यपालिका का कोई प्रतिनिधि अधिकारी पांच साल बाद जनता के बीच जाएगा.. बिल्कुल नहीं।'
योगी ने कहा, 'इस देश में न्यायपालिका, सेना या नौकरशाही से सेवानिवृत्त व्यक्ति बाद में सांसद या विधायक बनना चाहते हैं, लेकिन फिर भी सांसदों और विधायकों पर उंगली उठती हैं। मेरा मानना है कि जहां सम्भावनाएं हैं, वहीं उंगली भी उठ सकती है।'
उन्होंने कहा कि विश्वसनीयता का जो संकट हम सबके सामने हैं, उसमें कहीं ना कहीं सदन में हमारी अनुपस्थिति, मर्यादा से परे आचरण तथा जनप्रतिनिधियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगना भी कारण है। एक व्यक्ति द्वारा फैलायी गयी गंदगी से पूरी व्यवस्था बदनाम होती है। हम कैसे प्रत्येक जनप्रतिनिधि को विश्वसनीयता के प्रतीक के रूप में पेश कर सकें, यह प्रबोधन का कार्यक्रम इसीलिए आयोजित किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी हार्दिक इच्छा है कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा देश की सभी विधानसभाओं के लिये एक आदर्श बन सके।
योगी ने नवनिर्वाचित विधायकों से मुखातिब होते हुए कहा कि सदन खुद को निखारने का बहुत सुंदर मंच है। यहां आपकी कही गयी बात कई पीढ़ियों का मागर्दशन कर सकती है। आपने जो बात कही, वह आने वाले समय में इस विधानसभा की सम्पत्ति हो गई। आपके वचन और आचरण भविष्य में आपके कृतित्व का निर्माण करेंगे।
गोरखपुर के सांसद के रूप में अपने संस्मरण और अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि सदन में चिल्लाने या हंगामा करने के बजाय एक निश्चित दायरे में रहकर रखी गयी बात ज्यादा प्रभावी होती है और उससे हम बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान निकाल सकते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस विधानसभा की कार्यवाही वर्ष में कम से कम 90 दिन चलनी चाहिये थी, वह हाल के वष्रो में 20-25 दिन चलती थी। क्या हम कार्यवाही को फिर से 90 दिन चलाएंगे, यह एक चुनौती है।
उन्होंने कहा कि सदन की कार्यवाही 90 दिन चलने का मतलब है कि किसी थाने या तहसील में कोई गड़बड़ी नहीं होने पाएगी, क्योंकि तब वहां बैठे लोगों को पता होगा कि उनके क्षेत्र का जनप्रतिनिधि उस बात को सदन में रखेगा। सरकार किसी के साथ अन्याय नहीं होने देगी और ना ही प्रतिशोध की भावना से काम करने देगी। (भाषा)