शुक्रवार, 7 मार्च 2025
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. What is the three language formula, why is there a language war between Tamil Nadu and the Centre
Last Updated : शुक्रवार, 7 मार्च 2025 (09:02 IST)

क्या है त्रिभाषा फॉर्मूला, तमिलनाडु vs केंद्र में क्यों छिड़ी भाषा पर जंग

एक्सप्लेनर : NEP, त्रिभाषा फॉर्मूला और तमिलनाडु का बवाल: जानिए क्या, क्यों, कहां और किस पर पड़ रहा असर

क्या है त्रिभाषा फॉर्मूला, तमिलनाडु vs केंद्र में क्यों छिड़ी भाषा पर जंग - What is the three language formula, why is there a language war between Tamil Nadu and the Centre
Opposition to three language formula in Tamil Nadu: इन दिनों भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर तगड़ा बवाल मचा हुआ है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर हुआ क्या है? मामला तब शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को समग्र शिक्षा अभियान के 2152 करोड़ रुपए रोक दिए। तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन भड़क गए और PM नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख दी कि ये पैसा शिक्षा का अधिकार लागू करने के लिए चाहिए, इसे जल्दी रिलीज करो! लेकिन केंद्र का कहना है कि जब तक तमिलनाडु त्रिभाषा नीति (हिंदी, अंग्रेजी, तमिल) को नहीं मानता, फंड नहीं मिलेगा।

अब ये सीन उत्तर बनाम दक्षिण की जंग बन गया है और X पर #StopHindiImposition ट्रेंड कर रहा है। यूं तो 1937 से ही तमिलनाडु में हिन्दी को लेकर विरोध है, लेकिन 1965 में जब दूसरी ओर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की कोशिश की गई तो यह आंदोलन और ज्यादा हिंसक हो गया। तमिलनाडु ने हिंदी थोपने के खिलाफ आंदोलन किया था, जिसके बाद दो भाषा नीति अपनाई गई। दरअसल, तमिलनाडु में हिंदी को लेकर विरोध 1937 से ही है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था।

उस समय द्रविड़ कषगम (डीके) ने इसका विरोध किया था। इसका 'पेरियार' ईवी रामासामी, सोमा सुंदर भारथियार और विपक्षी जस्टिस पार्टी द्वारा विरोध किया गया था। तीन साल तक चला यह आंदोलन बहुआयामी था और इसमें उपवास, सम्मेलन, मार्च, धरना और विरोध प्रदर्शन शामिल थे। इस दौरान 2 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। 1939 में सरकार के इस्तीफा देने के बाद, 1940 में अनिवार्य हिंदी शिक्षा वापस ले ली गई। साल 1965 में दूसरी बार जब हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की कोशिश की गई तो एक बार फिर से तमिलनाडु समेत गैर हिंदी भाषी राज्यों में बवाल शुरू हो गया। 1965 में प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में 70 लोगों की मौत हुई थी। 
 
कहां हुआ? (Where) : हिन्दी के विरोध में यह ड्रामा तमिलनाडु से शुरू हुआ, जहां तमिल भाषा और संस्कृति का गजब का स्वैग है। लेकिन अब ये आग पूरे देश में फैल गई है। स्टालिन ने X पर लिखा, 'हमने कभी उत्तर भारत पर तमिल थोपी नहीं, तो आप हम पर हिंदी क्यों थोप रहे हो?' दिल्ली से चेन्नई तक, नेता, शिक्षाविद, और एक्टिविस्ट्स इस पर अपनी-अपनी राय दे रहे हैं। ये सिर्फ तमिलनाडु की बात नहीं, बल्कि पूरे भारत की भाषाई आइडेंटिटी का सवाल है। 
 
ये झगड़ा कब शुरू हुआ? (When): ये लेटेस्ट बवाल 4 मार्च 2025 को तब छिड़ा, जब स्टालिन ने केंद्र को ललकारा। लेकिन दोस्तो, ये कहानी पुरानी है। तमिलनाडु 1952 से ही दो भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) पर चल रहा है। 1968 की नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में त्रिभाषा फॉर्मूला आया, जिसे तमिलनाडु ने ठुकरा दिया। तब से लेकर अब तक, हर बार जब हिंदी की बात आती है, तमिलनाडु 'No Way' कहता है। इस बार फंड रोकने की वजह से मामला फिर से गरमा गया। स्टालिन ने हाल ही में कहा कि हम बच्चों को ऐसा भविष्य नहीं दे सकते, जहां उनकी अपनी भाषा दब जाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बाद यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आया है। 
 
इस पूरे मसले में कौन शामिल है? (Who) : इस स्टोरी के हीरो हैं तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन, जो अपनी भाषा और हक के लिए लड़ रहे हैं। विलेन (केंद्र के लिए) हैं शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो कहते हैं कि त्रिभाषा नीति संविधान का हिस्सा है। तमिलनाडु के IT मंत्री पलानीवेल त्यागराजन ने कहा कि हमारी दो भाषा नीति टॉप क्लास है, हमें थर्ड लैंग्वेज का ड्रामा नहीं चाहिए। फिर  बहुत से लोग इस बहस में कूद पड़े हैं। इतिहास में भी CN अन्नादुरई जैसे नेता थे, जिन्होंने 1960 में हिंदी के खिलाफ मोर्चा खोला था।
 
क्यों हो रहा है ये सब? (Why): अब असली ट्विस्ट ये है कि ये फाइट क्यों चल रही है? तमिलनाडु को लगता है कि केंद्र हिंदी और संस्कृत थोपकर उनकी तमिल आइडेंटिटी को कुचलना चाहता है। स्टालिन का मानना है कि हिंदी एक बहाना है, असली मकसद संस्कृत को पुश करना है। उनका लॉजिक है कि हिंदी ने उत्तर प्रदेश में अवधी, ब्रज जैसी बोलियां खत्म कर दीं और अब राजस्थान में उर्दू की जगह संस्कृत लाई जा रही है। केंद्र का तर्क है कि त्रिभाषा नीति देश को जोड़ेगी। लेकिन पलानीवेल ने चैलेंज किया कि यूपी, बिहार में त्रिभाषा नीति से क्या मिला? वहां बच्चे एक भाषा भी ढंग से नहीं बोलते!
 
योगेंद्र यादव ने स्टालिन का सपोर्ट करते हुए कहा कि केंद्र फंड को हथियार बनाकर राज्यों को दबा रहा है। मृणाल पांडे ने उल्टा हिंदी वालों को टारगेट किया कि वो अंग्रेजी के पीछे क्यों भागते हैं। 1965 का केस स्टडी देखो- तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ इतना बड़ा आंदोलन हुआ कि केंद्र को पीछे हटना पड़ा। स्टालिन का लेटेस्ट स्टेटमेंट है, 'हम बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़ेंगे, न कि थोपी हुई भाषा से।'
 
तो अब यह कैसे सुलझेगा? (How) : अब बड़ा सवाल- इसका सॉल्यूशन क्या है? तमिलनाडु का कहना है कि हमें हमारी दो भाषा नीति से मत छेड़ो। पलानीवेल ने डेटा दिया कि 70 साल से हमारी नीति ने बेस्ट रिजल्ट दिए हैं। योगेंद्र सुझाते हैं कि त्रिभाषा को चॉइस बेस्ड बनाओ—तमिलनाडु तमिल, मलयालम, और अंग्रेजी पढ़ सकता है। लेकिन केंद्र अड़ा है कि एनईपी मानना पड़ेगा। पुराने केस में, 1967 में DMK की जीत के बाद केंद्र ने तमिलनाडु को दो भाषा नीति की छूट दी थी। अब एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बातचीत या कोर्ट से रास्ता निकलेगा। 
 
अब क्या ये भाषा वॉर आगे बढ़ेगा या धीरे-धीरे ठंडा हो जाएगा? दोस्तों, ये कोई ड्राई न्यूज़ नहीं है—ये एक राज्य की आइडेंटिटी और फ्यूचर का गेम है। तमिलनाडु का रुख हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमें कोई चीज़ थोपनी चाहिए? या अपनी चॉइस की फ्रीडम मिलनी चाहिए?