Article 370: करीब 3 साल बाद अनुच्छेद यानी आर्टिकल 370 एक बार फिर से चर्चा में है। दरअसल, मंगलवार को इसे खत्म करने के खिलाफ दायर की गई याचिका पर होगी सुनवाई। यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी। बताया जा रहा है कि न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ सिंह की बैंच इस मामले की जांच कर सकती हैं। अटकलें लगाई जा रही हैं कि जांच में बैंच यह देखेगी कि क्या बगैर नागरिकों की सहमति के संसद 370 खत्म कर सकती है।
इस मौके पर आपको बता दें कि आखिर क्या है अनुच्छेद यानी आर्टिकल 370, ये जम्मू कश्मीर में कैसे लागू हुई और इससे आखिर वहां क्या-क्या बदला।
दरअसल, 5 अगस्त 2019 वो तारीख, जिसने आर्टिकल 370 की लकीर को मिटाकर भारत के इतिहास की एक बेमिसाल गाथा लिख दी। भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा में संविधान के आर्टिकल 370 को हटाने का प्रस्ताव पेश किया गया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को पढ़ना एक इतिहास बनता नजर आ रहा था। इस प्रस्ताव के साथ जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 377 हटा दी गई। इसके बाद कश्मीर में शांति बहाल हुई, पत्थरबाजी की घटनाएं रूकीं और आतंकवाद लगभग खत्म हुआ। लेकिन अब एक बार फिर से इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई है।
क्या है इतिहास?
17 अक्टूबर 1949 को एक एक ऐसी घटना घटी जिसने जम्मू और कश्मीर का इतिहास बदल दिया। दरअसल, संसद में गोपाल स्वामी आयंगर ने खड़े होकर कहा कि हम जम्मू और कश्मीर को नया आर्टिकल देना चाहते हैं। उनसे जब यह पूछा गया कि क्यों? तो उन्होंने कहा कि आधे कश्मीर पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया है और इस राज्य के साथ समस्याएं हैं। आधे लोग उधर फंसे हुए हैं और आधे इधर।
वहां की स्थिति अन्य राज्यों की अपेक्षा अलग है तो ऐसे में वहां के लिए फिलहाल नए आर्टिकल की जरूरत होगी, क्योंकि अभी जम्मू और कश्मीर में पूरा संविधान लागू करना संभव नहीं होगा। अतत: अस्थायी तौर पर उसके लिए 370 लागू करना होगी। जब वहां हालात सामान्य हो जाएंगे तब इस धारा को भी हटा दिया जाएगा। फिलहाल वहां धारा 370 से काम चलाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि सबसे कम समय में डिबेट के बाद यह आर्टिकल पार्लियामेंट में पास हो गया। यह संविधान में सबसे आखिरी में जोड़ी गई धारा थी। इस धारा के फेस पर भी लिखा है कि 'टेम्परेरी प्रोविंजन फॉर द स्टेट ऑफ द जम्मू और कश्मीर'।
भारतीय संविधान के 21वें भाग का 370 एक अनुच्छेद है। 21वें भाग को बनाया ही गया अस्थायी प्रावधानों के लिए था जिसे कि बाद में हटाया जा सके। इस धारा के 3 खंड हैं। इसके तीसरे खंड में लिखा है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के परामर्श से धारा 370 कभी भी खत्म कर सकता है। हालांकि अब तो संविधान सभा रही नहीं, ऐसे में राष्ट्रपति को किसी से परामर्श लेने की जरूरत नहीं।
जब कोई आर्टिकल या धारा टेम्परेरी बनाई जाती है तो उसको सीज करने या हटाने की प्रक्रिया भी लिखी जाती है। उसमें लिखा गया कि प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया जब उचित समझें और उन्हें लगे कि समस्याओं का हल हो गया है या जनजीवन सामान्य हो गया तो वह उस धारा को हटा सकता है।
यहां यह समझने वाली बात यह है कि धारा 370 भारत की संसद लेकर आई है और वहीं इसे हटा सकती है। इस धारा को कोई जम्मू और कश्मीर की विधानसभा या वहां का राजा नहीं लेकर आया, जो हटा नहीं सकते हैं। यह धारा इसलिए लाई गई थी, क्योंकि तब वहां युद्ध जैसे हालात थे और उधर (पीओके) की जनता इधर पलायन करके आ रही थी। ऐसे में वहां भारत के संपूर्ण संविधान को लागू करना शायद नेहरू ने उचित नहीं समझा या नेहरू ने इस संबंध में शेख अब्दुल्ला की बात मानी हो।
लेकिन यह भी कहा गया कि इसी बीच वहां पर भारत के संविधान का वह कानून लागू होगा जिस पर फिलहाल वहां कोई समस्या या विवाद नहीं है। बाद में धीरे-धीरे वहां भारत के संविधान के अन्य कानून लागू कर दिए जाएंगे। इस प्रक्रिया में सबसे पहले 1952 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच एक एग्रीमेंट हुआ। जिसे 'दिल्ली एग्रीमेंट' कहा गया।
धारा 370 के विशेष अधिकार
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धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए।
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इसी विशेष दर्ज़े के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती।
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इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।
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1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
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इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं ख़रीद सकते।
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भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
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जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय करना ज्यादा बड़ी ज़रूरत थी और इस काम को अंजाम देने के लिये धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को उस समय दिए गए थे। ये विशेष अधिकार निचले अनुभाग में दिए जा रहे हैं।
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जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
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जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।
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जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
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जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।
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भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते हैं।
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भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के संबंध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।
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जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाएगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाएगी।
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धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई (RTI) और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते।
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कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।
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कश्मीर में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं है।
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धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
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धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।
Edited by navin rangiyal