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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: रविवार, 7 मई 2023 (11:50 IST)

राजौरी में जवानों पर हुआ था आतंकियों का ट्रिपल अटैक

स्टील बुलेट, स्नाइपर राइफलें और राकेट लांचर के साथ रिमोट कंट्रोल IED

soldiers martyred in operations against terrorists in Rajouri
Rajori Terrorist attack : जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir news) में राजौरी के कंडी क्षेत्र में 5 जवानों की शहादत पर हालांकि सेना अभी भी यही कह रही है कि आतंकियों ने भयानक विस्फोटक का इस्तेमाल किया था। पर मिलने वाले साक्ष्य और प्राथमिक जांच इस ओर इशारा कर रही है कि आतंकियों ने इस हमले में भाटा धुरियां हमले की ही तरह स्टील बुलेट, स्नाइपर राइफलों और राकेट लांचर का इस्तेमाल किया था। बस इस हमले में आईईडी को भी जोड़ लिया गया था।
 
2 दिन पहले राजौरी के कंडी इलाके के केसर क्षेत्र में हुए इस आतंकी हमले में 5 जवान शहीद हुए था। सेना का कहना था कि 2 जवानों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी और 3 ने बाद में दम तोड़ दिया था। सूत्रों के बकौल, जिन तीन जवानों ने बाद में दम तोड़ा था उनके सिर में गोलियां लगी थीं।
 
बताया जाता है कि आतंकियों ने स्नाइपर राइफलों का इस्तेमाल करते हुए स्टील की गोलियां दागी थी जो उनकी बुलेफू प्रूफ टोपियों को भी भेद गई थीं। जिस स्थान पर हमला हुआ उसके प्रति फिलहाल विस्फोटक को लेकर अलग अलग जानकारियां हैं।
 
सेना प्रवक्ता आतंकियों द्वारा आईईडी के इस्तेमाल किए जाने की बात कहते थे पर एक जानकारी यह भी कहती थी कि आतंकियों ने पहले राकेट लांचर का इस्तेमाल करते हुए स्नाइपर से गोलियां भी दागी थीं। इस कारण सेना के जवान संभल नहीं पाए और पीछे हटने के प्रयास में उनके पांव तले दबाई गई आईईडी को आतंकियों ने रिमोट से उड़ा दिया था।
 
इसी तरह का हमला पिछले महीने 20 अप्रैल को पुंछ के भाटा धुरियां में हुआ था। उसमें भी आतंकियों ने अमेरीकी हथियारों और राकेट लांचर का इस्तेमाल किया था। इसकी पुष्टि आतंकियों ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो सांझा करते हुए की थी। पीएएफएफ के आंतकियों का कहना था कि उसने इस हमले को अंजाम दिया था पर ताजा हमले के प्रति किसी भी आतंकी गुट ने जिम्मेदारी नहीं ली है।
 
अगर रक्षा सूत्रों पर विश्वास करें तो दोनों ही हमलों में एक जैसी रणनीति अपनाई गई थी। उनका कहना था कि यह रणनीति अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकी अपनाते रहे हैं। जिस कारण यह आशंका पैदा हो रही है कि क्या राजौरी व पुंछ में तालिबानी और अफगानी नागरिक एक्टिव हैं जो पिछले 30 महीनों से ऐसे हमलों को अंजाम दे रहे हैं।

हालांकि राजौरी के जंगलों में जिस मारे गए आतंकी का शव मिला है उससे कोई ऐसा दस्तावेज नहीं मिला है जिससे इस आशंका की पुष्टि हो सके। पर चिंता का विषय यही है कि 10 से 12 आतंकियों का यह गुट राजौरी व पुंछ में पिछले अढ़ाई सालों से खतरा बना हुआ है।
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