तीन तलाक पर देशभर में जारी बहस के बीच ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की रविवार को इस मुद्दे और अयोध्या विवाद पर अहम बैठक हुई। बैठक में तीन तलाक के मुद्दे पर एक आचार-संहिता जारी की गई जिसमें कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति बिना शरिया वजहों के तलाक देता है तो उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। जबकि अयोध्या विवाद पर पारित प्रस्ताव में कहा गया कि बोर्ड इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही मानेगा।
बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने संस्था की कार्यकारिणी की बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस्लामी शरीयत में मर्द और औरत दोनों को बराबर के अधिकार दिए गए हैं और महिलाओं को वे हुकूक दिलाना हम सबकी जिम्मेदारी है। उन्होंने एक सवाल पर कहा कि बोर्ड किसी व्यक्ति द्वारा एक ही बार में तीन तलाक देने की स्थिति में तलाक मुकम्मल होने की व्यवस्था पर कायम है लेकिन बोर्ड ने फैसला किया है कि अगर कोई शख्स किसी शरई वजह के बगैर अपनी बीवी को तीन तलाक देता है तो उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाए।
अयोध्या मामले में रहमानी ने बताया कि बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि बोर्ड बाबरी मस्जिद के सिलसिले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को ही स्वीकार करेगा। वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने इस मौके पर कहा कि बोर्ड ने तलाक के सिलसिले में एक 'कोड ऑफ कंडक्ट' (आचार संहिता) जारी की है और तलाक जैसे मामलों में उसी पर अमल किया जाए।
उन्होंने बताया कि बोर्ड ने अपने पारित प्रस्ताव में तमाम उलमा और मस्जिदों के इमामों से अपील की है कि वे इस आचार संहिता को जुमे की नमाज के खुतबे (भाषण) में नमाजियों को जरूर सुनाएं और उस पर अमल करने पर जोर दें।
बोर्ड की दो दिनी लखनऊ बैठक में तलाक और अयोध्या के मामले के अलावा कॉमन सिविल कोड, बेटियों की संपत्ति में हिस्सा देने सहित अन्य अन्य मुद्दों पर भी अहम फैसला लिया।
मौलाना रहमानी ने कहा कि जब मुसलमानों को अपने मजहबी आदेश दूसरों पर जबरन थोपने की इजाजत नहीं है तो मुसलमानों को भी पूरा हक है कि उन पर भी दूसरे धर्मो की रस्मों को ना थोपा जाए।
बोर्ड ने 'नदवा' में आयोजित कार्यकारिणी की बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा है कि जिन महिलाओं के साथ तलाक के बेजा इस्तेमाल के कारण नाइंसाफी हुई है, बोर्ड उनकी हर मुमकिन मदद के लिए हमेशा तैयार है। बोर्ड तमाम मुस्लिम संगठनों से अपील करता है तो वे मुस्लिम महिलाओं को उनके शरई अधिकार दिलाने के लिए तलाकशुदा औरतों, विधवाओं और बेसहारा महिलाओं की हरसंभव सहायता करें।
बोर्ड ने कहा कि मुसलमान लोग अपनी बेटियों को दहेज देने की जगह उनको जायदाद में वाजिब हिस्सा दें और शरई कानूनों से संबंधित मामलों को 'दारल कजा' में ही हल कराएं। इसके अलावा मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ पर पूरी तरह अमल कर उसकी हिफाजत सुनिश्चित करें। बोर्ड सोशल मीडिया का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर अपनी बातों को लोगों तक अच्छे ढंग से पहुंचाएगा और इस्लाम तथा शरीयत से संबंधित भ्रमों को दूर करने की हर मुमकिन कोशिश करेगा।
बोर्ड की महिला शाखा की प्रमुख डॉक्टर असमां जहरा ने इस मौके पर कहा कि मुस्लिम महिलाओं के तलाक का मामला धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक मसला है। भारत के पूरे समाज में महिलाओं के मुद्दे एक ही जैसे हैं। ऐसे में सिर्फ मुस्लिम को ही निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बोर्ड ने तलाक के मुद्दों को लेकर हेल्पलाइन नम्बर 18001028426 जारी किया है, जिस पर अब तक 15500 मामलों की सुनवाई हुई है। यह हेल्पलाइन हिन्दी, उर्दू और बंगला समेत सात भाषाओं में संचालित की जा रही है।
असमां ने कहा कि देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर बोर्ड द्वारा चलाए गए देश के सबसे बड़े हस्ताक्षर अभियान में पांच करोड़ 81 लाख लोगों ने शरई कानूनों में कोई भी बदलाव ना किए जाने के बोर्ड के पक्ष का समर्थन किया है। इनमें दो करोड़ 71 लाख महिलाएं भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ और खासकर तलाक के कानून के बारे में बड़े पैमाने पर गलतफहमी पायी जा रही है। सही जानकारी ना होने के कारण ऐसा हो रहा है। सही बात यह है कि तलाक औरत को खतरे से बचाने के लिए रखा गया है। अगर कुछ लोग इसका गलत इस्तेमाल करते हैं तो कानून में बदलाव की नहीं, बल्कि ऐसे लोगों को सुधारने की जरूरत है। बोर्ड इस सिलसिले में पहले से काम कर रहा है। (एजेंसी)