...जब कारों की बजाय दौड़ेंगी 'सड़कें'
नई दिल्ली। क्या कभी आपने ऐसी किसी परियोजना की कल्पना की है, जहां वाहन चलने के बजाय 'सड़कें' चलें? जी हां, एक भारतीय इनोवेटर ने सरकार को एक ऐसी परिवहन परियोजना सौंपी हैं जिस पर यदि अमल किया जाए तो कारों के बजाय 'सड़कें' दौड़ती नजर आएंगी।
देश में सबसे पहले अप्पूघर और एम्यूजमेंट पार्क की स्थापना करने वाले इनोवेटर सुरेश चावला ने 'ट्रैवलिंग रोड' परियोजना का पैटेंट कराकर इसे सरकार को सौंपा है। इस परियोजना पर यदि अमल होता है तो इससे न केवल डीजल-पेट्रोल की खपत में कमी आएगी, बल्कि वाहनों द्वारा उड़ाए जाने वाले धूल और धुएं से होने वाले वायु प्रदूषण, शोर-शराबे से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से निजात भी मिलेगी तथा पर्यावरण भी स्वच्छ रह सकेगा।
वस्तुत: इस परियोजना में एक निश्चित ऊंचाई पर तैयार लाइनों पर ऐसे करियर वाहन चल सकेंगे जिनमें कार एवं अन्य वाहन 1-1 करके फिट हो जाएंगे और वे शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक बिना धूल-धुआं उड़ाए पहुंच जाएंगे। कार एवं अन्य वाहनों को ढोने वाले ये कैरियर वाहन सौर ऊर्जा पर चल सकेंगे जिसका दोहरा लाभ मिलेगा। ये कैरियर वाहन एक बार में 200 कारें या अन्य छोटे वाहन लेकर चल सकते हैं।
इस परियोजना पर प्रति किलोमीटर 30 करोड़ रुपए की लागत आने की संभावना है, जबकि मेट्रो रेल के निर्माण में प्रति किलोमीटर 120 करोड़ रुपए लागत आती है। मेट्रो परियोजना की तुलना में 'ट्रैवलिंग रोड परियोजना' में लागत की रिकवरी भी अधिक होगी और भारत दूसरे देशों को भी यह परिवहन व्यवस्था उपलब्ध कराकर कमाई कर सकता है।
चावला ने प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह के माध्यम से यह परियोजना सरकार के पास भेजी है। उनके अनुसार यह परियोजना देश की परिवहन व्यवस्था के लिए वरदान साबित होगी। उन्होंने एक आंकड़े का हवाला देते हुए बताया कि 2025 तक जहरीली गैस के कारण हर साल 35,000 लोगों की मौत हो सकती है। दिल्ली की सड़कों पर रोजाना करीब साढ़े 10 लाख वाहनों का बोझ होता है जिससे जाम और प्रदूषण की समस्या बढ़ती है। (वार्ता)