जम्मू कश्मीर में 13 सालों में 105 नरसंहारों में आतंकियों ने की 1036 मासूमों की हत्या
जम्मू। जम्मू कश्मीर में नरसंहारों का इतिहास अधिक पुराना तो नहीं है लेकिन नरसंहारों का खास पहलू यह रहा है कि इससे कोई भी मुख्यमंत्री बच नहीं पाया था। अगर फारूक सरकार के समयकाल में 80 नरसंहार हुए थे तो मुफ्ती सरकार के खाते में 15 व राज्यपाल शासन के दौरान 8 नरसंहारों को आतंकियों ने अंजाम दे डाला। वैसे गुलाम नबी आजाद के खाते में भी 2 नरसंहार आए थे। जबकि राज्यपाल सत्यपाल मलिक के खाते में एक नरसंहार आ चुका है जो राज्य में करीब 13 साल के बाद हुआ है।
चौंकाने वाली बात यह है कि लोकतांत्रिक सरकार के शासन तले आतंकियों ने सबसे ज्यादा नरसंहारों को अंजाम दिया है। उन्होंने फारूक सरकार द्वारा सत्ता संभालने के उपरांत से लेकर आज तक 97 सामूहिक नरसंहारों को अंजाम दिया। इन 97 नरसंहारों में 945 लोग भी मारे गए। जम्मू कश्मीर में अभी तक हुए कुल 105 बड़े नरसंहारों में आतंकी 1030 लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं।
ऐसा भी नहीं है कि गुलाम नबी आजाद, मुफ्ती सरकार या फिर नेशनल कांफ्रेंस सरकार द्वारा सत्ता संभालने के पूर्व आतंकी लोगों की हत्याएं नहीं करते थे बल्कि पहले वे लोगों की हत्याएं करने के अलग-अलग तरीके अपना रहे थे। वैसे आतंकियों ने इससे पहले भी कुछ नरसंहारो को अंजाम दिया था मगर आंकड़ें दर्शाते हैं कि वे सिर्फ एक समुदाय विशेष के दिलों में भय पैदा करने के इरादों से ही अंजाम दिए गए थे। आंकड़ों के मुताबिक आतंकिदयों ने जम्मू कश्मीर में सामूहिक नरसंहारों की शुरुआत जम्मू के डोडा जिले से ही आरंभ की थी। पहला नरसंहार 14 अगस्त 1993 को किश्तवाड़ कस्बे में उस समय हुआ जब आतंकियों ने 17 हिन्दू यात्रियों को यात्री बस से उतार कर मार दिया। और ताजा नरसंहार कश्मीर के कुलगाम में हुआ है।
इतना अवश्य था कि पहले नरसंहार के उपरांत दूसरा नरसंहार उसके तुरंत बाद ही अंजाम नहीं दिया गया था बल्कि वह अढ़ाई सालों के उपरांत 5 जनवरी 1996 को घटित हुआ। इसके उपरांत तो नरसंहारों की संख्या बढ़ती गई। सिर्फ संख्यां ही नहीं मरने वालों का आंकड़ां भी दिनोंदिन बढ़ता गया। अब स्थिति यह है कि पिछले 13 सालों के भीतर आतंकी 105 बड़े नरसंहारों में 1036 मासूमों को मौत के घाट उतार चुके हैं।
आंकड़ों के मुताबिक सबसे अधिक नरसंहारों को वर्ष 2000 में अंजाम दिया गया। वर्ष 2000 में आतंकी 19 नरसंहारों को अंजाम दे चुके थे जिनमें से 9 कश्मीर में हुए थे तथा 10 जम्मू मंडल में। इसी प्रकार आतंकियों ने वर्ष 1998 तथा 1999 में आठ-आठ नरसंहारों को अंजाम दिया जबकि 1997 में जहां उन्होंने 3 तो 1996 में चार नरसंहारों को अंजाम दिया।
इन नरसंहारों में मरने वाले सभी हिन्दू नहीं थे बल्कि कई मुस्लिम परिवारों से भी संबंधित थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि आतंकियों का मकसद जहां हिन्दू समुदाय में दहशत फैलाना था वहीं प्रशासन को बदनाम करने के लिए मुस्लिमों की हत्याएं की गई थीं।
इन हत्याकांडों का चौंकाने वाला पहलू यह था कि 105 नरसंहारों में से 80 नेशनल कांफ्रेंस सरकार के सत्ता संभालने के उपरांत हुए तो 2 नरसंहार आजाद सरकार के शासन में हुए थे। सरकार का कहना है कि इन हत्याकाडों का मकसद लोकतांत्रिक प्रक्रिया को धक्का पहुंचाना है तो लोगों का मानना है कि आतंकियों ने इन हत्याकांडों को अंजाम देकर यह स्पष्ट किया है कि वे सभी सुरक्षा व्यवस्थाओं को भेद्य सकते हैं। जबकि ताजा नरसंहार के पीछे का मकसद प्रवासी श्रमिकों को कश्मीर आने से हतोत्साहित करना है।
इससे कोई इंकार नहीं करता कि आतंकियों ने सभी सुरक्षा व्यवस्थाओं को भेदा है। जिस तरह से उन्होंने एक ही दिन में सात नरसंहारों को अंजाम दिया था वे स्पष्ट करते थे कि सुरक्षा व्यवस्थाएं नाममात्र की ही थीं और उनके प्रति तत्कालीन फारूक सरकार के दावे सिर्फ और सिर्फ झूठ पर आधारित थे जिन पर से अब सबका विश्वास उठ गया है। यह सच भी है। आतंकियों को नरसंहारों को अंजाम देने से आज तक कभी रोकने में कामयाबी नहीं मिली है।
प्रत्येक नरसंहार के बाद हालांकि सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने की बात तो कही जाती रही है लेकिन वह सब कागजों में ही होता था। कभी धरातल पर वह सुरक्षा व्यवस्था नहीं दिखी जिसके प्रति लंबे चौड़े दावे किए जाते रहे हैं।