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Last Modified: मंगलवार, 25 सितम्बर 2018 (13:11 IST)

दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की दस प्रमुख बातें...

दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की दस प्रमुख बातें... - Ten Important Words of the Supreme Court's Points
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि आपराधिक मामलों में महज आरोप पत्र दायर होने के आधार पर किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता।


1. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय जनता पार्टी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे एम लिंगदोह तथा गैर-सरकारी संगठन 'पब्लिक इंटरेस्ट  फाउंडेशन' की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।
 
2. संविधान पीठ में न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल थे।
 
3. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति का गैरअपराधीकरण सुनिश्चित करने के लिए विधायिका से कानून बनाने पर विचार करने को कहा।
 
4. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों से जुड़े उम्मीदवारों के रिकॉर्ड का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से प्रचार करने का निर्देश दिया।
 
5. राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के संबंध में सभी जानकारी अपनी वेबसाइट्स पर दें।
 
6. सुप्रीम कोर्ट ने कहा नागरिकों को अपने उम्मीदवारों का रिकॉर्ड जानने का अधिकार है।
 
7. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि चुनाव लड़ने से पहले प्रत्येक उम्मीदवार अपना आपराधिक रिकॉर्ड निर्वाचन आयोग के समक्ष घोषित करे।
 
8. न्यायालय ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी 'मोटे अक्षरों' में देनी चाहिए।
 
9. मार्च 2016 में शीर्ष अदालत ने यह मामला संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था। याचिकाकर्ता ने गुहार लगाई थी कि जिन लोगों के खिलाफ आरोप तय हो गए हों और उन मामलों में पांच साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो, उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाए।
 
10. सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पूछा था कि क्या चुनाव आयोग ऐसी व्यवस्था कर सकता है कि जो लोग आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं उनके बारे में ब्योरा सार्वजनिक किया जाए। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि जहां तक सजा से पहले ही चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध का सवाल है तो कोई भी आदमी तब तक निर्दोष है जब तक कि न्यायालय उसे सजा नहीं दे देता और संविधान का प्रावधान यही कहता है।
 
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