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Last Modified: नई दिल्ली , सोमवार, 3 जुलाई 2023 (20:14 IST)

Manipur Violence : हिंसा रोकने के लिए क्या कदम उठाए, सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से मांगी रिपोर्ट

Supreme court
Supreme Court directions in Manipur violence case : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मणिपुर सरकार को जातीय हिंसा प्रभावित राज्य में पुनर्वास सुनिश्चित करने और कानून एवं व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी वाली एक अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
 
भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मुद्दे पर याचिकाओं को 10 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से पीठ ने अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। पीठ ने कहा, इसमें पुनर्वास शिविरों, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाए गए कदम और हथियारों की बरामदगी जैसे विवरण होने चाहिए।
 
एक संक्षिप्त सुनवाई में शीर्ष विधि अधिकारी ने सुरक्षाबलों की तैनाती और कानून व्यवस्था की हालिया स्थिति का विवरण दिया। उन्होंने कहा कि राज्य में कर्फ्यू की अवधि अब 24 घंटे से घटाकर पांच घंटे कर दी गई है। मेहता के मुताबिक, राज्य में पुलिस, इंडियन रिजर्व बटालियन और सीएपीएफ की 114 कंपनियां भी तैनात हैं। उन्होंने कहा कि कुकी समूहों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेज़ को चाहिए कि वह मामले को सांप्रदायिक रंग नहीं दें।
 
गोंजाल्वेज़ ने तर्क दिया कि उग्रवादी एक समाचार कार्यक्रम में आए और कहा कि वे कुकी समूहों का सफाया कर देंगे लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने आरोप लगाया कि कुकी समूहों के खिलाफ हिंसा राज्य द्वारा प्रायोजित थी। शीर्ष अदालत के पास मणिपुर की स्थिति को लेकर कई याचिकाएं हैं। इनमें सत्तारूढ़ भाजपा के एक विधायक द्वारा दायर याचिका शामिल है जिसमें मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है।
Manipur violence
एक अन्य याचिका में पूर्वोत्तर राज्य में हुई हिंसा की जांच एसआईटी (विशेष जांच दल) से कराने की मांग की गई है। यह याचिका एक आदिवासी गैर सरकारी संगठन की ओर से दायर की गई है। गैर सरकारी संगठनों में से एक, ‘मणिपुर ट्राइबल फोरम’ ने मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के लिए सेना सुरक्षा और उन पर हमला करने वाले सांप्रदायिक समूहों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है।
 
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली अवकाश पीठ ने 20 जून को याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि यह कानून और व्यवस्था का मुद्दा है जिसे प्रशासन को देखना चाहिए। एनजीओ की ओर से पेश गोंजाल्वेज़ ने कहा कि प्रदेश सरकार के आश्वासन के बावजूद राज्य में जातीय हिंसा में 70 आदिवासी मारे गए हैं।
सॉलिसीटर जनरल ने तत्काल सुनवाई के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा था कि सुरक्षा एजेंसियां हिंसा रोकने और सामान्य स्थिति बहाल करने की पूरी कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश से संबंधित मुख्य मामला शीर्ष अदालत द्वारा 17 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
राज्य में मेइती और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में 120 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की जब मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च आयोजित किया गया था।
मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं। जनजातीय नगा और कुकी आबादी का हिस्सा 40 प्रतिशत है और वे पहाड़ी जिलों में रहते हैं। मणिपुर उच्च न्यायालय के 27 मार्च को दिए गए आदेश में राज्य सरकार को बहुसंख्यक समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर चार सप्ताह के भीतर केंद्र के पास सिफारिश भेजने को कहा गया था।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)
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