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Last Modified: मंगलवार, 10 अगस्त 2021 (13:24 IST)

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सांसद-विधायकों पर दर्ज मामले हाईकोर्ट की अनुमति के बिना नहीं होंगे वापस

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सांसद-विधायकों पर दर्ज मामले हाईकोर्ट की अनुमति के बिना नहीं होंगे वापस - states can not withdraw cases against mps, mlas without hc permission
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को आदेश दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) के तहत आरोपी कानून निर्माताओं के विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामलों को लोक अभियोजक, उच्च न्यायालयों की अनुमति के बिना वापस नहीं ले सकते।
 
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने यह भी कहा कि वह नेताओं के विरुद्ध दर्ज मामलों की निगरानी करने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक विशेष पीठ की स्थापना पर भी विचार कर रही है।
 
पीठ ने आदेश दिया कि सांसदों और विधायकों के विरुद्ध मामले की सुनवाई कर रहे विशेष अदालतों के न्यायाधीशों का अगले आदेश तक स्थानांतरण नहीं किया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को निर्देश दिया कि वे कानून निर्माताओं के विरुद्ध उन मामलों की जानकारी, एक तय प्रारूप में सौंपें, जिनका निपटारा हो चुका है।
 
पीठ ने उन मामलों का भी विवरण मांगा है जो निचली अदालतों में लंबित हैं। न्यायालय की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया और वकील स्नेहा कालिता की रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद पीठ ने आदेश दिया।
 
सुप्रीम कोर्ट ने ये बड़ा कदम एमिक्स क्यूरी हंसारिया की रिपोर्ट पर उठाया है। इसके मुताबिक यूपी सरकार मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी भाजपा विधायकों के खिलाफ 76 मामले वापस लेना चाहती है। कर्नाटक सरकार विधायकों के खिलाफ 61 मामलों को वापस लेना चाहती है। उतराखंड और महाराष्ट्र सरकार भी इसी तरह केस वापस लेना चाहती हैं। 
 
पीठ, भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2016 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सांसदों और विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई तथा दोषी ठहराए गए नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
 
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