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Written By Author अनिल जैन
Last Updated : गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019 (12:05 IST)

Kashmir : चाहत 'आजादी’ की है लेकिन 370 से भी लगाव कम नहीं!

Jammu and Kashmir |  चाहत 'आजादी’ की है लेकिन 370 से भी लगाव कम नहीं!
संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर (Kashmir) का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद से लेकर अब तक कश्मीर घाटी में हालात बेहद असामान्य बने हुए हैं। एक ओर जहां 'कश्मीर की आजादी’ चाहने वाले घाटी के ज्यादातर बाशिंदों का कहना है कि अनुच्छेद 370 अब उनके लिए कोई मुद्दा नहीं है, वहीं दूसरी ओर कई लोग ऐसे भी हैं जिनका अनुच्छेद 370 से गहरा लगाव है और वे मानते हैं कि सरकार ने कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर उनके साथ नाइंसाफी की है, यह दर्जा फिर से बहाल होना चाहिए।
 
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने से लोग किस कदर आहत है और उन्हें अनुच्छेद 370 से कितना गहरा लगाव है, इसकी मिसाल श्रीनगर में सौरा के करीब स्थिति अंचार इलाके में देखने को मिली। कश्मीर घाटी में आसामान्य हालात के चलते कई परिवारों में शादी और सगाई के पहले निर्धारित कई आयोजन रद्द करने पड़ रहे हैं या फिर जैसे-तैसे निबटाए जा रहे हैं।
 
शादी-ब्याह के आयोजनों में सब कुछ बाजार और परिवहन के साधनों पर निर्भर होता है। लेकिन सार्वजनिक परिवहन सेवाएं बंद होने से लोगों का न तो कहीं आना-जाना हो पा रहा है और बाजार बंद होने से वे आवश्यक खरीदारी भी नहीं कर पा रहे हैं। फिर भी कुछ लोगों ने अपने परिवार में पहले से मुकर्रर शादी के आयोजनों को जैसे-तैसे निबटाया।
 
अंचोर इलाके में फातिमा (बदला हुआ नाम) की शादी का कार्यक्रम इसी तरह संपन्न हुआ। फातिमा की शादी 24 सितंबर को हुई। 23 सितंबर को उसकी मेहंदी की रस्म थी। लेकिन फातिमा के घर में शादी के जश्न जैसा कोई माहौल नहीं था, बल्कि यूं कहा जाए कि मातम जैसा माहौल था। न तो रिश्तेदार जुट पाए थे और न ही कोई मेहंदी लगाने वाली मिल सकी, लिहाजा फातिमा ने हाथ में पारंपरिक तरीके से मेहंदी लगाने के बजाय अपने एक हाथ की हथेली पर मेहंदी से '370’ और दूसरे हाथ की हथेली पर अंग्रेजी में 'आर्टिकल’ लिखवा लिया।
 
इससे समझा जा सकता है कि अनुच्छेद 370 पर केंद्र सरकार के फैसले ने कश्मीरियों को कितने गहरे तक प्रभावित किया है। इस मौके पर शादी में पहना जाने वाला जोडा भी दुल्हन को नसीब नहीं हो सका। यहां तक कि बाजारों के बंद होने की वजह से बारातियों के स्वागत-सत्कार और खान-पान के जो इंतजाम होना चाहिए, वे भी नहीं हो सके।
नतीजतन 24 सितंबर को घरातियों ने बारातियों के सामने केवल राजमा, साग और अंडे परोसने का फैसला किया। इसके साथ ही सबके जेहन में सुरक्षा का सवाल भी बना हुआ था। बारात कैसे आएगी और कितने लोग आ पाएंगे और फिर शादी किस तरह से संपन्न होगी, इसको लेकर तमाम आशंकाएं बनी हुई थी, जो घरातियों के चेहरों पर साफ झलक रही थी। शायद गम और गुस्से से भरे इसी माहौल का नतीजा था कि दुल्हन ने स्थानीय पत्रकारों से कहा कि ऐसे में शादी के बजाय मौत आ जाती तो अच्छा होता।
 
दरअसल, अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा कहने भर को ही रह गया था, क्योंकि यह प्रावधान पिछले पांच-छह दशकों के दौरान घिसते-घिसते काफी हद तक घिस चुका था। इसके बावजूद मनोवैज्ञानिक तौर कश्मीरियों को लगता था कि इसकी वजह से ही उनकी विशिष्ट पहचान बनी हुई है और उनके हित काफी हद तक सुरक्षित हैं। इसी वजह से इस प्रावधान को खत्म करने के फैसले से कश्मीरी मानस बुरी तरह आहत है। यह अनुच्छेद 370 से कश्मीरियों का लगाव ही है कि अंचार में ही 5 अगस्त के पैदा हुए दो शिशुओं के नाम उनके माता-पिता ने '370’ रख दिए।
 
अनुच्छेद 370 किसी नवजात से जुडकर अगर जिंदगी की निशानी बन रहा है तो गोलियों से जख्मी होकर लोगों के मौत के रास्ते पर जाने की वजह भी। नौजवानों को पेलेट गन का निशाना बनाने के पीछे यह दलील दी जा सकती है कि वे पत्थरबाजी कर रहे थे लेकिन निहत्थे बुजुर्ग तो बेवजह ही सुरक्षा बलों की गोलियों का निशाना बन रहे हैं।
 
इसी इलाके के एक 70 वर्षीय बुजुर्ग 8 अगस्त को अपने किसी काम से घर से बाहर निकले थे कि तभी सुरक्षा बल के एक जवान की गोली ने उनके पैरों को को छलनी कर दिया। तब से वे बिस्तर पर पडे हैं। न तो उन्हें यह पता कि आखिर उनकी क्या गलती थी जो गोली का निशाना बन गए और गोली चलाने वाले सुरक्षा बल जवान के लिए भी शायद यह बता पाना मुश्किल होगा कि आखिर उस बुजुर्ग पर उसने गोली क्यों चलाई।
 
पुरुष तो पुरुष, बुजुर्ग महिलाएं तक इस त्रासदी से नहीं बच पा रही हैं। एक बुजुर्ग महिला भी इसी तरह सुरक्षा बलों की गोलियों का शिकार होकर बिस्तर पर है।
 
यह सारे वाकये बताते हैं कि पैदा होने से लेकर शादी और फिर मौत तक कश्मीरियों की जिंदगी में अनुच्छेद 370 और सरकार का फैसला अहम जगह बनाए हुए है।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
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