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Last Updated : गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019 (17:15 IST)

RBI का ब्याज दरों पर बड़ा फैसला, होम, पर्सनल और ऑटो लोन की घटेगी EMI

RBI का ब्याज दरों पर बड़ा फैसला, होम, पर्सनल और ऑटो लोन की घटेगी EMI - Reserve Bank of India's big decision
मुंबई। मुद्रास्फीति की नरमी को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बृहस्पतिवार को अपनी नीतिगत ब्याज दर ‘रेपो’ 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.25 प्रतिशत कर दी। इससे बैंकों को कर्ज का धन सस्ता पड़ेगा और वे आने वाले दिनों में मकान, वाहन तथा अन्य निजी वस्तुओं की खरीद और उद्योग-धंधे के लिए कर्ज सस्ता कर सकते हैं।

नए गवर्नर शक्तिकांत दास के नेतृत्व में रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीस) की पहली बैठक हुई। रिजर्व बैंक ने अपने नीतिगत दृष्टिकोण को भी नरम कर तटस्थ कर दिया है। अभी तक उसने मुद्रास्फीति के जोखिम के मद्देनजर इसे नपी-तुली कठोरता वाला कर रखा था। इससे संकेत मिलता है कि रिजर्व बैंक आगे चलकर रेपो दर में और कमी कर सकता है।

केंद्रीय बैंक ने मुद्रास्फीति के लगातार नीचे बने रहने के मद्देनजर बाजार में कर्ज सस्ता करने वाला यह कदम उठाया है। खुदरा मुद्रास्फीति दिसंबर 2018 में 2.2 प्रतिशत थी जो इसका 18 माह का निम्नतम स्तर है। रेपो दर वह दर होती है जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को एक दिन या इससे भी कम समय के लिए नकद धन उधार देता है। रेपो दर में 0.25 प्रतिशत कटौती के साथ ही रिवर्स रेपो दर भी इतनी ही घटकर 6 प्रतिशत रह गई। इसके साथ ही बैंक दर और सीमांत स्थाई सुविधा (एमएसएफ) 6.50 प्रतिशत पर आ गई।

छह सदस्‍यीय मौद्रिक नीति समिति की यह चालू वित्त वर्ष की छठी और अंतिम द्विमासिक समीक्षा बैठक थी। बैठक में छह में से चार सदस्यों ने रेपो दर में कमी किए जाने का समर्थन किया। हालांकि रिजर्व बैंक के रुख को नरम करने के मामले में सभी सदस्य एक राय रहे।

रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति के बारे में अपने अनुमान को भी कम किया है। उसका मानना है कि मार्च 2019 में समाप्त होने वाली तिमाही में यह 2.8 प्रतिशत रहेगी। वर्ष 2019-20 की पहली छमाही के लिए मुद्रास्फीति अनुमान 3.2- 3.4 प्रतिशत रहने और तीसरी तिमाही में 3.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।

मौद्रिक नीति समिति ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि निकट अवधि में मुद्रास्फीति की मुख्य दर नरम बने रहने का अनुमान किया गया है। मुद्रास्फीति का वर्तमान स्तर नीचे है और खाद्य मुद्रास्फीति भी शांत है। समिति ने कहा है कि सब्जियों और तेल की कीमत, वैश्विक व्यापार में तनाव, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के महंगा होने, वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव और मानसून की स्थिति के प्रति हमें सजग रहना होगा।

समिति के प्रस्ताव में कहा गया है कि नीतिगत ब्याज में यह कटौती आर्थिक वृद्धि में सहायक होने के साथ-साथ मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत पर सीमित रखने के मध्यावधिक लक्ष्य के अनुकूल है। मौद्रिक समिति की बैठक में डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य और सदस्य चेतन घाटे ने रेपो को 6.5 प्रतिशत पर ही बनाए रखने का पक्ष लिया, लेकिन गवर्नर दास और तीन अन्य सदस्यों ने इसमें कमी लाने के प्रस्ताव के पक्ष में सहमति जताई।

एमपीसी ने कहा है कि इस समय निजी निवेश और उपभोग को मजबूत करने और प्रोत्साहित करने की जरूरत है। प्रस्ताव में कहा गया है कि निवेश में तेजी आई है, पर यह मुख्य रूप से बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाए जाने का परिणाम है।

गौरतलब है कि कर्ज सस्ता होने से निजी निवेश और उपभोग प्रोत्साहित हो सकता है। आरबीआई ने 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.4% रहने का अनुमान लगाया है। चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने जीडीपी वृद्धि 7.2% रहने का अुनमान लगाया है।

एमपीसी का अनुमान है कि अंतरिम बजट के प्रावधानों से लोगों के पास खर्च करने को ज्यादा पैसा बचेगा और सकल मांग बढ़ेगी, लेकिन इसका असर दिखने में अभी समय लगेगा। अंतरिम बजट 2019-20 में सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों को साल में छह हजार रुपए की आय समर्थन योजना लागू करने के साथ-साथ पांच लाख रुपए तक की कर योग्य आय को छूट देकर कर मुक्त करने की घोषणा की है।

किसानों के लिए आय हस्तांतरण योजना पर इस साल 20,000 करोड़ रुपए और अगले वित्त वर्ष में 75000 करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान है। इससे ग्रामीण बाजार में उपभोग मांग बढ़ने की उम्मीद है लेकिन इससे चालू वित्त वर्ष का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 प्रतिशत के बजट अनुमान से बढ़कर संशोधित अनुमान में 3.4 प्रतिशत पर पहुंच गया है।

राजकोषीय अनुशासन लक्ष्यों से पीछे रहने को कुछ विश्लेषक मुद्रास्फीति बढ़ाने वाला मान रहे हैं और इसीलिए एक अनुमान यह भी था कि रिजर्व बैंक नीतिगत दर में अभी शायद ही कटौती करे पर रिजर्व बैंक के गवर्नर दास ने कहा कि मुद्रास्फीति की मुख्य दर रिजर्व बैंक के सामने रखे गए 4 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है और इसके सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद ही रेपो में कटौती का यह निर्णय किया गया है।

स्वास्थ्य और शिक्षा के हाल में असाधारण रूप से महंगा होने के बारे में समिति का कहना है कि यह एकबारगी की बात हो सकती है। समिति की राय में कच्चे तेल के बाजार का परिदृश्य दिसंबर जैसा ही बना हुआ है। रिजर्व बैंक ने इससे पहले गत वर्ष जल्दी-जल्दी दो बार जून और अगस्त में रेपो दर में वृद्धि कर दी थी और नीतिगत रुख को तटस्थ से बदल का नाप-तोल कर कठोरता बरतने का कर दिया था। रिजर्व बैंक को उस समय मुद्रास्फीति के बढ़ने का जोखिम लग रहा था।

शक्तिकांत दास को गत वर्ष डॉ. उर्जित पटेल के समय से पहले इस्तीफा देने के बाद 12 दिसंबर 2018 को गवर्नर नियुक्त किया गया। डॉ. पटेल से नीतिगत विषयों पर सरकार व केंद्रीय बैंक के बीच खुले तौर पर विवादों के बीच इस्तीफा दे दिया था। आरबाईआई की ताजा घोषणाओं से पहले किए गए सर्वेक्षणों में अधिकतर विशेषज्ञों की राय थी कि नीतिगत ब्याज दर में कमी हो सकती है या रिवर्ज बैंक अपने नीतिगत रुख को नरम कर सकता है।

सरकार को उम्मीद है कि रिजर्व बैंक उसे इस वित्त वर्ष में 28,000 करोड़ रुपए का अंतरिम लाभांश दे सकता है। आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल की इसी माह बैठक हो सकती है। इसमें अंतरिम लाभांश का मुद्दा रखा जा सकता है। रिजर्व बैंक ने वित्तीय बाजार की आवश्यकताओं को देखते हुए बुधवार को कुछ नियमों में संशोधन भी किए हैं।

केंद्रीय बैंक ने दिवाला प्रक्रिया के तहत रखी गई कंपनियों को स्थानीय बैंकों/वित्तीय संस्थाओं का बकाया चुकाने के लिए विदेश से ॠण जुटाने की छूट देने का प्रस्ताव किया है। इसी तरह एक अन्य निर्णय में थोक जमा की परिभाषा में बदलाव किया गया है। इससे अब एक बार में 2 करोड़ रुपए से अधिक की जमा को थोक जमा माना जाएगा। अभी यह राशि एक करोड़ रुपए थी।

नकदी संकट से गुजर रहे गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी क्षेत्र को राहत देते हुए उनको दिए जाने वाले बैंक ॠणों पर भारित जोखिम के प्रावधानों को उनकी वित्तीय साख के साथ जोड़ दिया है। अभी तक इसे सब प्रकार की इकाइयों के लिए 100 प्रतिशत रखा गया था।