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राज्यसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग असहाय

National news
मात्र कुछेक वर्षों पहले तक देश में राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव एक नियमित कार्यक्रम के तहत होने वाला सरकारी आयोजन सा होता था जिसमें सभी कुछ पहले से तय होता था और इन चुनावों में राजनीतिक पैंतरेबाजी की गुंजाइश नहीं होती थी। पहले प्रत्येक राजनीतिक दल को पता होता था कि संबंधित विधानसभा में उसकी ताकत कितनी है और वे कितनी सीटों पर आसानी से जीत हासिल कर सकते हैं। एक बार राज्यसभा प्रत्याशियों के नामांकन की घोषणा हो जाती तो चुनाव भी औपचारिकता बन जाते और बिना किसी बड़े उलटफेर के परिणाम सामने आ जाते थे।
लेकिन इस बार के 11 जून को सोलह राज्यों की 57 सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव एक बड़े दांव का खेल बन गए हैं। साथ ही, इन चुनावों ने कुछ मनोरंजक परिदृश्य पैदा कर दिए हैं। इस बार के चुनावों में कम से कम छह राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, कर्नाटक और हरियाणा) में अतिरिक्त प्रत्याशी खड़े हो गए हैं जिन्हें या तो भाजपा या कांग्रेस, क्षेत्रीय दलों या निर्दलियों का समर्थन हासिल है। इन राज्यों में एक अतिरिक्त प्रत्याशी की चुनाव मैदान में मौजूदगी ने विधायकों की खरीद-फरोख्त, प्रलोभन के साथ-साथ किसी भी प्रकार के दबाव बनाने के रास्ते खोल दिए हैं। 
 
राज्यसभा या राज्यों की विधान परिषदों के चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव हैं जिनमें निर्वाचक मंडल के सदस्य अर्थात विधानसभा के चुने गए विधायक वोट देते हैं। इन चुनावों में पार्टियां भले ही व्हिप जारी करती हों और मतदान गोपनीय नहीं होता है, इस कारण से क्रॉस वोटिंग (पार्टी नेतृत्व की इच्छा के विरुद्ध किसी भी उम्मीदवार) को वोट दिया जा सकता है, लेकिन इन चुनावों में दल-बदल रोधी कानून किसी भी मतदाता को अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता है। इन मतदाताओं के लिए अंतरात्मा की आवाज पर वोट का सीधा सा अर्थ भ्रष्टाचार होता है।
 
हाल ही में कुछ समाचार चैनलों ने स्टिंग ऑपरेशन किए हैं जिनमें दिखाया गया है कि किस तरह कर्नाटक के विधायकों को यह मौका प्रथम वरीयता मत के बदले करोड़ों रुपए कमाने का है। कुछ विधायकों ने अपने वोट की कीमत खुलेआम करोड़ों रुपयों की कीमत तय करना वास्तव में बहुत परेशान करने वाली बात है, लेकिन इस समय चुनाव आयोग के हाथों में इस पर लगाम लगाने के लिए कोई विशेष अधिकार नहीं हैं। आयोग केवल नैतिकता संबंधी प्रवचन दे सकता है या फिर समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों की शिकायतें सुन भर सकता है। इन सारी गड़बड़ियों से आयोग न तो चुनाव को रद्द कर सकता है, न ही इसे स्थगित कर सकता है। कहने का अर्थ है कि आयोग के सामने जिंदा मक्खी निगलने के अलावा कोई चारा नहीं है।  
 
कर्नाटक : 
अगले शनिवार को होने वाले चुनावों में ‍विभिन्न दलों ने कैसी बिसात बिछाई है, इसका अंदाजा संबंधित राज्यों की स्थिति से लग सकता है। कर्नाटक से राज्यसभा की खाली सीटों की संख्या 4 है जिसके लिए 5 उम्मीदवार मैदान में हैं। कुल विधायकों की संख्या 224 है और राज्यसभा में चुने जाने के लिए कम से कम मतों की संख्या 45 है। पहले तीन प्रत्याशियों, भाजपा की निर्मला सीतारमण, कांग्रेस के ऑस्कर फर्नांडीज और जयराम रमेश का चुना जाना तय है लेकिन चौथी सीट के लिए कांग्रेस के केसी राममूर्ति और जद (एस) के बीएम फारूक के बीच मुकाबला होगा। सदन में जहां कांग्रेस के 123 सदस्य हैं, वहीं उन्हें अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए बाहर से 12 विधायकों के मतों की जरूरत होगी जबकि जद (एस) को केवल बाहर के केवल पांच वोटों की जरूरत होगी क्योंकि सदन में जद (एस) के 40 विधायक हैं। 
 
टाइम्स नाऊ और इंडिया टुडे द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशनों से यह बात साफ है कि स्थिति कितनी अप्रिय हो सकती है और प्रत्येक सिंगल वोट के लिए करोड़ों का लेनदेन होगा। कांग्रेस ने अपने 11 विधायकों को बेंगलुरु से दूर मुंबई भेज दिया है ताकि उन्हें मतदान के दिन ही लाया जा सके। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने आयोग को शिकायत की है कि अगर इसे खरीद-फरोख्त की शिकायत मिले या ऐसी कोई बात इसके संज्ञान में लाई जाए तो चुनावों को रद्‍द कर दिया जाए या इन्हें टाल दिया जाए।  
 
मध्यप्रदेश :
इसी तरह मध्यप्रदेश से खाली सीटों की संख्‍या तीन है। इसके चार प्रत्याशी मैदान में हैं। सदन के कुल विधायकों की संख्या 230 है और चुने जाने के लिए कम से कम 58 वोटों की जरूरत होगी। सदन में भाजपा के विधायकों की संख्या 165 है और इसके पहले प्रत्याशियों का चुना जाना तय है। एमजे अकबर और अनिल माधव दवे का राज्यसभा में पहुंचना तय है। इसने कांग्रेस प्रत्याशी और प्रसिद्ध वकील विवेक तन्खा का रास्ता रोकने के लिए एक निर्दलीय विनोद गोटिया को समर्थन देने का फैसला किया है। सदन में कांग्रेस के 57 विधायक हैं और इसे बाहर से मात्र एक वोट की जरूरत होगी। गोटिया के पास 49 खाली वोटों का समर्थन है और उन्हें बाहर से नौ मतों की जरूरत है। 
 
राजस्थान :
जबकि राजस्थान से राज्यसभा में खाली सीटों की संख्या चार है और इनके लिए पांच उम्मीदवार मैदान में हैं। विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 200 है और इस राज्य में किसी भी प्रत्याशी को जीतने या निर्वाचित होने के लिए कम से कम 41 वोटों की जरूरत है। राजस्थान विधानसभा में भाजपा के 161 विधायक हैं जो पहले तीन प्रत्याशियों को आसानी से चुन सकते हैं। इनमें वैंकेया नायडू, ओमप्रकाश माथुर और हर्षवर्द्धन सिंह शामिल हैं। चौथे प्रत्याशी रामकुमार वर्मा को जीतने के लिए भाजपा से बाहर के तीन वोटों की जरूरत है लेकिन यहां कांग्रेस ने एक स्वतंत्र उम्मीदवार, पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कारोबारी कमल मोरारका को समर्थन देने का फैसला किया है। 
 
कांग्रेस के पास केवल 23 विधायक हैं और मोरारका को जीतने के लिए 18 और वोटों की जरूरत होगी। सदन में निर्दलीय और अन्य स्वतंत्र विधायकों की संख्‍या 16 है, लेकिन प्राथमिकता के आधार पर प्रथम वरीयता के तौर पर मोरारका को सभी वोट मिलने में संदेह है इसलिए उनके प्रथम वरीयता वोटों के आधार जीतना मुश्किल है, लेकिन चुनाव में उनकी मौजूदगी ने संघर्ष को रोचक बना दिया है। 
 
उत्तर प्रदेश : 
उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में 11 सीटें खाली हैं जिनके लिए 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 229 है और उच्च सदन में चुने जाने के लिए कम से कम 34 वोट चाहिए। प्रत्याशियों की सूची के मुताबिक, दस प्रत्याशियों में भाजपा के शिव प्रताप शुक्ला, समाजवादी पार्टी के सात प्रत्याशियों, जिनमें अमर सिंह, बेनीप्रसाद वर्मा, सुरेन्द्र नागर, वीपी ‍‍निषाद, रेवनी रमण सिंह, सुखराम सिंह यादव और संजय सेठ शामिल हैं। बसपा के दो प्रत्याशियों, सतीश मिश्रा और अशोक सिद्धार्थ का चुना जाना तय है, लेकिन नामांकन के आखिरी दिन भाजपा ने सम्पन्न स्वतंत्र उम्मीदवार प्रीति महापात्र को मैदान में उतार दिया है। उनकी उम्मीदवारी कांग्रेस के प्रत्याशी कपिल सिब्‍बल की मुश्किलें बढ़ाने वाली हैं, हालांकि कागजों पर उन्हें केवल पांच अति‍‍रिक्‍त मतों की जरूरत है जबकि 29 वोट उनके पास पहले से ही हैं। मायावती के पास 12 अति‍‍रिक्‍त वोट हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। महापात्र की तुलना में सिब्‍बल की जीत की अधिक संभावनाएं हैं, लेकिन ऐसे में खरीद-फरोख्त की संभावनाएं अधिक हैं इसलिए कोई भी प्रत्याशी दावा नहीं कर सकता कि वह जीत ही जाएगा। 
 
हरियाणा :
हरियाणा से राज्यसभा के लिए सीटों की संख्या मात्र दो है लेकिन दावेदारों की संख्या तीन है। विधानसभा में कुल 90 विधायक हैं और जीतने के लिए कम से कम 31 मतों की आवश्यकता होगी। राज्य में भाजपा की 51 सीटें हैं लेकिन इसने केवल एक ही प्रत्याशी चौधरी वीरेन्द्र सिंह को मैदान में उतारा है। इसके पास 20 अतिरिक्त वोट हैं और इसने अपना समर्थन मीडिया बैरन और 'स्वतंत्र' उम्मीदवार डॉ. सुभाषचंद्र को दे रखा है। चंद्र को भाजपा से बाहर 11 मत जुटाने की जरूरत है, लेकिन उनके विकल्पों में आईएनएलडी के 19 वोट, हजकां के दो और शिरोमणि अकाली दल का एक वोट और बसपा का भी एक वोट है। 
 
लेकिन उनके लिए स्थिति कठिन इसलिए हो गई है कि कांग्रेस और लोकदल ने पूर्व सांसद और वकील आरके आनंद को समर्थन दिया है। सदन में कांग्रेस के 15 विधायक हैं। अगर कांग्रेस और आईएनएलडी के सारे वोट आनंद को मिल जाते हैं तो उनका जीतना तय है लेकिन फिलहाल मामला खरीद-फरोख्त और लेनदेन के लिए खुला है।  
 
झारखंड :
राज्य से राज्यसभा के लिए खाली सीटों की संख्या दो है लेकिन इनके लिए तीन उम्मीदवार मैदान में हैं। सदन में कुल विधायकों की संख्या 81 है और उच्च सदन के लिए चयनित होने के लिए प्रत्याशी को कम से कम 28 मतों की जरूरत होगी।  
 
यहां भाजपा के विधान सदन में 43 विधायक हैं और चार विधायक ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन के हैं। भाजपा ने यहां से मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार को अपना प्रत्याशी बनाया है, लेकिन यहां पहले जीतने वाले नकवी ही होंगे। पोद्दार के पास नौ वोटों की कमी है और उन्हें जेएमएम के बसंत सोरेन के साथ मुकाबला करना होगा। बसंत सोरेन के 19 वोट हैं और शिबू सोरेन के इस छोटे बेटे को भी नौ वोटों का इंतजाम करना होगा। सदन में कांग्रेस अपने सात वोटों के साथ भाजपा को हराने के लिए जेवीएम के बाबूलाल मरांडी का समर्थन कर रही है।
 
उत्तराखंड :  
उत्तराखंड से राज्यसभा के लिए एक सीट है, लेकिन यहां दावेदारों की संख्या तीन है। विधानसभा में 61 सदस्य हैं क्योंकि कुल 70 सदस्यों में से 9 को निष्कासित किया जा चुका है। यहां से चुने जाने के लिए कम से कम 31 मतों की जरूरत होगी।  
 
मुख्यमंत्री हरीश रावत के सामने चुनौती है कि वे कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी प्रदीप टमटा को दो निर्दलीय प्रत्याशियों के सामने जिताएं। ये दो निर्दलीय प्रत्याशी गीता ठाकुर और अनिल गोयल हैं। कांग्रेस के पास अपने 27 वोट हैं और इसे बाहर से केवल चार मतों की जरूरत है। विधानसभा में भाजपा के 28 विधायक हैं, इसलिए जिस प्रत्याशी को यह अपना समर्थन देती है, उसे कहीं से तीन वोटों का जुगाड़ करना होगा।
 
पिछले दिनों यहां हुए स्टिंग ऑपरेशनों से बात साफ हो गई है कि यहां चार कारणों से बड़े पैमाने पर लेनदेन होगा। पहला कारण यह है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में बड़े पैमाने पर धांधलियां होने पर चुनाव आयोग को चुनावों को रद्द करने का अधिकार होता है, लेकिन राज्यसभा के मामले में ऐसा नहीं है। जिन लोगों ने संविधान बनाया और जन प्रतिनिधित्व कानून को फ्रेम किया होगा, उन्होंने राज्यसभा चुनावों को लेकर ऐसी किसी स्थिति की कल्पना नहीं की होगी।  
 
दूसरा कारण यह है कि स्टिंग ऑपरेशनों से मात्र संकेत मिला है और वास्तविक रूप से रुपयों का लेन देन नहीं हुआ है। लोगों के बारे में एक राय बनाई जा सकती है लेकिन इसके आधार पर कोई अपराध सिद्ध नहीं होता। 
 
तीसरा कारण यह है कि संदिग्ध विधायकों के मतों का दावा मतदान के बाद ही संभव हो सकता है जबकि अभी तक मतदान नहीं हुआ है, तभी यह संदेह किया जा सकता है कि फलां विधायक ने रिश्वत या अन्य लालच में किसी विशेष प्रत्याशी को मत दिया। पहले से जांचना संभव ही नहीं है। 
 
चौथा कारण है कि चुनाव आयोग क्या रद्द कर सकता है? चूंकि इस मामले में अप्रत्यक्ष वरीयता क्रम की वोटिंग होती है इसलिए पहले, तीसरे, चौथे या पांचवें स्थान पर मत देने का ज्यादा अर्थ नहीं है। चुनाव आयोग ऐसे मामलों में सीटों के बारे में कैसे अंतर कर सकता है? क्या यह सभी चुनावों को रद्द कर सकता है या स्थगित कर सकता है? किन आधारों पर मात्र एक सीट के लिए चुनाव कराया जाए? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनके जवाब चुनाव आयोग के पास भी नहीं होंगे। इस कारण ऐसी हालत में यह भी असहायता का अनुभव कर रहा होगा।      
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