'नमामि गंगे परियोजना' में ढिलाई पर एनजीटी नाराज
नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने गंगा नदी की सफाई के लिए 'नमामि गंगे परियोजना' शुरू किए जाने से पहले कोई भी अध्ययन न कराए जाने पर नाराजगी जताते हुए गुरुवार को कहा कि अब वक्त आ गया है कि इस मुद्दे पर सही दिशा में काम किया जाए और इस मामले में किसी भी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 'नमामि गंगे परियोजना' काफी महत्वपूर्ण है, जिस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी काफी जोर दिया है। न्यायाधीश कुमार ने कहा, प्रधानमंत्री ने पवित्र गंगा नदी की सफाई की राष्ट्रीय परियोजना को काफी महत्व दिया है।
वित्तमंत्री ने आगामी पांच वर्षों में गंगा की सफाई के लिए 20 हजार करोड़ रुपए का कोष दिया है। उन्होंने कहा, सरकार के इस उद्देश्य के बावजूद हमें इस परियोजना के लागू होने में ढिलाई बरते जाने का कोई कारण नहीं दिखता।
पीठ ने गंगा नदी में गिरने वाले गंदे पानी की मात्रा पर कोई ठोस आंकड़े उपलब्ध न होने पर नाराजगी जताते हुए कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण और खेदजनक है कि आंकड़ों के बगैर गंगा नदी को साफ करने की योजना तैयार की गई। पहले भी इस संबंध में कोई भी अध्ययन नहीं कराया गया।
एनजीटी ने कहा कि उन्होंने गंगा नदी की सफाई चरणों में कराने का निर्णय लिया है और इसी के तहत गंगा के 2500 किलोमीटर लंबे जल विस्तार को चार चरणों में विभाजित कर सफाई कराने का निर्णय लिया गया है।
पहले चरण के तहत गोमुख से कानपुर, दूसरे चरण में कानपुर के बाहरी इलाके से उत्तर प्रदेश की सीमा (मुखाना घाट), तीसरे चरण में मुखाना घाट से झारखंड की सीमा से लगती बिहार की सीमा तक और अंतिम चरण में झारखंड से पश्चिम बंगाल में बंगाल की खाड़ी तक सफाई कराई जाएगी। (वार्ता)