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Last Updated : मंगलवार, 26 जुलाई 2022 (19:16 IST)

कारगिल के जख्म, शहीद सौरभ कालिया के पिता को आज भी है न्याय का इंतजार

captain saurabh kalia
नई दिल्ली। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए कैप्टन सौरभ कालिया के पिता को आज भी न्याय का इंतजार है। युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने सौरभ कालिया और 5 अन्य सैनिकों को अमानवीय यातना दी थी। अपने शहीद बेटे को न्याय दिलाने के लिए 2 दशक से अधिक समय से संघर्ष कर रहे नरेंद्र कुमार कालिया उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब भारत, पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाएगा।
 
सेवानिवृत्त वैज्ञानिक नरेंद्र कुमार कालिया (75) ने उनके बेटे और 5 अन्य सैनिकों के खिलाफ की गई बर्बरता पर इंसाफ के लिए 2012 में उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने पाकिस्तान सरकार के खिलाफ उचित कार्रवाई को लेकर केंद्र सरकार को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के समक्ष इस मुद्दे को उठाने के लिए तत्काल और आवश्यक कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
 
अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि बर्बर कृत्य युद्ध बंदियों के साथ व्यवहार के लिए जिनेवा समझौते का उल्लंघन है जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों हस्ताक्षरकर्ता हैं। कालिया ने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर से कहा कि मैंने 2012 में उच्चतम न्यायालय का रुख किया और मेरी रिट याचिका को आखिरकार जनवरी 2016 में स्वीकार कर लिया गया। इस मामले पर कई बार सुनवाई हो चुकी है लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं हार मान लूं। मेरे बेटे के लिए पड़ोसी देश की सेना के कुकर्मों के खिलाफ मेरी लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करने की जरूरत है।
 
नरेंद्र कालिया का मानना है कि वे यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत हैं कि भारत, पाकिस्तान को आईसीजे में घसीटकर ले जाए और यह उनके बेटे के सर्वोच्च बलिदान के लिए उचित न्याय होगा। उन्होंने कहा कि कल मैं भी नहीं रहूंगा। मुझे कौन याद करेगा? लेकिन मेरा बेटा इस महान राष्ट्र के इतिहास में हमेशा हमेशा के लिए अमर रहेगा। कभी-कभी, मैं यह सोच-सोचकर बहुत परेशान हो जाता हूं कि मेरे बेटे और उनकी टीम ने क्या कुछ सहा होगा और उसके अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं।
 
पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया के शरीर को सिगरेट से जलाने, आंखें फोड़ने के बाद आंखें निकालने, उनके अधिकांश दांतों और हड्डियों को तोड़ने के अलावा उन्हें गोली मारने से पहले हर तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएं देने का सबसे जघन्य कृत्य किया था।
 
नरेंद्र कालिया ने कहा कि पाकिस्तान ने सौरभ को जिंदा पकड़ लिया और भारत को उनकी युद्धबंदी (पीओडब्ल्यू) की स्थिति के बारे में सूचित न करके सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया। कालिया ने कहा कि मेरे बेटे ने 22 दिनों तक दुश्मन की हिरासत में निहत्थे रहकर कारगिल की असली लड़ाई लड़ी। इस अतुलनीय शहादत ने पूरे देश को सोते से जगाया, देश में देशभक्ति की अलख जगाई और पूरे सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ाया।
 
देश ने मंगलवार को कारगिल संघर्ष में अपनी जीत की 23वीं वर्षगांठ मनाई। भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तानी सेना के सैनिकों को जबरदस्त शिकस्त दी थी, जो सर्दियों के दौरान कारगिल-द्रास सेक्टर में भारत की ओर हिमालय की चोटियों पर कब्जा करने के लिए नियंत्रण रेखा पार कर गए थे। अत्यधिक सर्दी और ऑक्सीजन की कमी के बीच 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित युद्ध क्षेत्र में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय दिया। आखिरकार 26 जुलाई को यह अभियान सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। संघर्ष में 527 सैनिक शहीद हुए।
 
सौरभ कालिया और उनकी टीम के लापता होने की पहली खबर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आस्कर्दू रेडियो पर प्रसारित की गई थी। सौरभ और सिपाहियों अर्जुन राम, बनवारी लाल, भीकाराम, मूल राम और नरेश सिंह के शव 9 जून को भारत को सौंपे गए। अगले दिन 10 जून को पाकिस्तान की बर्बरता की कहानी सामने आई। शवों के कई महत्वपूर्ण अंग गायब थे, उनकी आंखें फोड़ दी गईं और नाक, कान तथा जननांग काट दिए गए थे। इस तरह की बर्बरता दोनों देशों की सेनाओं के बीच संघर्ष में पहले कभी नहीं देखी गई थी। भारत ने अपने 6 सैन्यकर्मियों के साथ इस बर्बर सलूक पर आक्रोश जताया था और इसे अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करार दिया था।
 
कैप्टन कालिया के पिता ने भावुक होते हुए कहा कि विडंबना यह है कि अकादमी में समारोह को छोड़कर हमें उसे वर्दी में देखने का अवसर कभी नहीं मिला। अपने बैंक खाते में अपना पहला वेतन आने से पहले वह शहीद हो गया। कारगिल जाने से पहले उसके अंतिम शब्द थे कि 'मां तुम देखना, एक दिन ऐसा काम कर जाऊंगा कि सारी दुनिया में मेरा नाम होगा'। वह अपनी बात पर कायम रहा और अब समय आ गया है कि मैं अपने बेटे के लिए कुछ करूं।
 
कैप्टन कालिया को दिसंबर 1998 में सेना में कमीशन किया गया था और जनवरी 1999 के मध्य में कारगिल में 4 जाट रेजिमेंट के साथ तैनात किया गया था। वे कारगिल के काक्सर इलाके में 3 बार गश्त के लिए निकले और इलाके में बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ की सूचना दी।
 
एक युवा उत्साही सैनिक के नाते वह घुसपैठ पर निगरानी रखने के लिए अपनी इच्छा से 13,000-14,000 फुट की ऊंचाई पर बजरंग पोस्ट पर गए। इस दौरान उनके साथ 5 सैनिक थे। 15 मई, 1999 को भीषण संघर्ष के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने कैप्टन कालिया तथा गश्ती दल के 5 जवानों को जिंदा पकड़ लिया। उनके पिता ने कहा कि यह एकदम स्पष्ट है कि मेरे बेटे की टीम का कोई सैनिक पाकिस्तानी सैनिकों के रूह को कंपाने वाले अत्याचारों के बावजूद टूटा नहीं। यह उनकी देशभक्ति, उनके अदम्य साहस, मजबूत इरादों, दृढ़ता और वीरता का परिचायक है जिसके लिए राष्ट्र को उन पर गर्व है।(भाषा)
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