शुक्रवार, 27 सितम्बर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Magnificent Madhya Pradesh : 95 poor children dies in 5 yrs
Written By विकास सिंह
Last Updated : बुधवार, 16 अक्टूबर 2019 (21:00 IST)

'मैग्नीफिसेंट' मध्यप्रदेश के 95 हजार 'गरीब' मासूम 5 साल में तोड़ चुके हैं दम, नवजात मृत्यु दर में देश में अव्वल...

'मैग्नीफिसेंट' मध्यप्रदेश के 95 हजार 'गरीब' मासूम 5 साल में तोड़ चुके हैं दम, नवजात मृत्यु दर में देश में अव्वल... - Magnificent Madhya Pradesh : 95 poor children dies in 5 yrs
मैग्नीफिसेंट मध्यप्रदेश (Magnificent Madhya Pradesh) यानी शानदार मध्यप्रदेश। यही नाम दिया है कि राज्य की कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इंदौर में होने वाली इन्वेस्टर्स समिट का। बड़े-बड़े उद्योगपति आएंगे, उद्योग लगाने के दावे किए जाएंगे। इनमें से कुछ जमीन पर उतरेंगे, कुछ फाइलों में दफन होकर रह जाएंगे। समिट पहले भी होती रही हैं, एमओयू भी साइन हुए, लेकिन आज भी कई साकार रूप नहीं ले पाए। 
 
लेकिन, 'आईना' है कि हकीकत बयां कर ही देता है। दर्पण में कुरूपता नजर आ ही जाती है। इस आयोजन के लिए नंबर वन शहर की सड़कें चमचमाएंगी, तीन दिन तक शहर में बिजली नहीं जाएगी (जैसा कि दावा किया जा रहा है)। फिर वही ढाक के तीन पात। वैसे भी बारिश के बाद शहर की ज्यादातर सड़कों में तो गड्‍ढे नजर आने ही लगे हैं। 
 
खैर! सड़कें अपनी जगह हैं, बिजली अपनी जगह है। लेकिन मप्र में हाल ही में दो शर्मनाक घटनाएं भी हुईं, जिन्होंने न सिर्फ सरकार बल्कि समाज के चेहरे पर भी कालिख मल दी। इंदौर संभाग स्थित बड़वानी में भूख से मासूम की मौत और पेट की आग बुझाने के लिए सागर के रहली में एक छोटी लड़की ने 'कन्या पूजन' के दौर में माता के मंदिर की दान पेटी से अपने परिजनों की भूख मिटाने के लिए कुछ रुपए चुरा लिए। 
वहीं नेताओं-अफसरों के भष्ट आचरण के 'हनी ट्रैप' में फंसी मीडिया में भी ये खबरें ज्यादा सुर्खियां नहीं बन पाईं। कुपोषण, गरीबी और भूख से जूझते मजबूरों की कहानी भीतर के पन्नों में खामोशी से दब गई।
 
कुपोषण ने निगली मासूम जिंदगियां : मध्यप्रदेश में बच्चों की मौत के मामले में पिछले 5 साल के आंकड़ों पर भी नजर डालें तो आप बुरी तरह चौंक जाएंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में पिछले 5 सालों में लगभग 95 हजार (94,699) सिर्फ नवजात बच्चों ने गरीबी और कुपोषण के चलते दम तोड़ दिया। यह उन बच्चों की संख्या है जो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाए। हालांकि इसके लिए सिर्फ वर्तमान सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, पुरानी सरकार इससे कहीं ज्यादा जिम्मेदार है। 
 
आंकड़ों के नजरिए से देखें तो प्रदेश में नवजात बच्चों की मौत का आंकड़ा 5 साल में 4 गुना बढ़ गया है। अगर बात करें तो 2013-14 में 7875, 2014-15 में 14109, 2015-16 में 23152, 2016-17 में 22003 और 2018-19 में 27560 नवजात बच्चे मौत का शिकार बन गए। दुखद पहलू यह है कि तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद साल-दर-साल यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। 
 
यह एक ऐसा आंकड़ा है जो किसी भी सभ्य समाज और अपने को जनहितैषी सरकार बताने वाले सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा है। मध्यप्रदेश नवजात शिशु मृत्यु में एक बार फिर पूरे देश में टॉप पर आ गया है। प्रदेश में एक हजार जीवित शिशु जन्म पर 47 शिशुओं की मौत हो रही है।
 
आक्सफेस की रिपोर्ट पर नजर डालें तो साल 2017-18 में देश के अरबपतियों ने 20,913 अरब रुपए कमाए जो कि भारत सरकार के बजट के बराबर है। भारत में ऊंचे ओहदे पर तैनात अधिकारियों को 8600 रुपए प्रतिदिन के मान से वेतन मिलता है, लेकिन गरीबों यानी मजूदरी करने वालों की मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं से मात्र 187 रुपए ही मिलते हैं। वह भी 365 दिन नहीं मिल पाते। 
 
कैसे बनेगा स्वर्णिम मध्यप्रदेश : गरीबी और कुपोषण को लेकर काम करने वाले एनजीओ विकास संवाद से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय के मुताबिक मध्यप्रदेश में गरीबी और कुपोषण दोनों एक दूसरे से जुड़े विषय हैं। एक ओर तो स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने की बात कहते हैं तो दूसरी ओर प्रदेश में भूख से मौत की खबरें सामने आती हैं। 
 
मालवीय कहते हैं कि नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश गरीबी में नीचे से दूसरे पायदान पर है। वह कहते हैं कि गरीबी दूर न होने का कारण जमीनी स्तर पर सपोर्ट सिस्टम का सही तरीके से काम नहीं होना है। हालात ये हैं कि प्रदेश के वंचित और पिछड़े लोगों को 2 से 3 महीने में अनाज मिल पा रहा है। मालवीय कहते हैं कि मनरेगा जैसी योजनाओं का जमीनी स्तर पर सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पाने से ऐसे हालात पैदा हो गए हैं। प्रदेश में पिछले दिनों दो बड़ी घटनाओं को हमारे सिस्टम के लिए एक अलार्म दे दिया है।
 
...और इधर देश की स्थिति भी ठीक नहीं : इस बीच, एक और चौंकाने वाली खबर सामने आई है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 102वें स्थान है, जबकि 117 देशों की इस सूची में बांग्लादेश और पाकिस्तान हमसे अच्छी स्थिति में हैं। सबसे शर्मनाक बात यह है कि 2015 के मुकाबले हमारी स्थिति और बिगड़ी है। तब भारत इस सूची में 93वें स्थान पर था।   
 
सबसे अहम बात तो यह है कि भूख किसी भी समाज, राज्य और देश की सबसे बड़ी बीमारी और बुराई है, जिसकी 'कोख' से दूसरी बुराइयां जन्म लेती हैं। चाहे फिर वह लूटपाट हो, हत्या हो या फिर चोरी, राहजनी आदि-आदि। यदि समाज में भूख जैसी बीमारी है तो फिर कैसे स्वस्थ और विकसित राज्य की कल्पना कर सकते हैं?
 
बाबा तुलसी बहुत पहले कह गए हैं- मुखिया मुख सो चाहिए खान पान कहुं एक, पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक।' अर्थात मुखिया ऐसा होना चाहिए जो सबका समान रूप से पोषण करे। हम लाख विकास के दावे कर लें, लेकिन बड़वानी और सागर की घटनाएं हमें आईना दिखा देती हैं। 
 
ये भी पढ़ें
एमपी के सीएम शिवराज सिंह तो फिर कमलनाथ कौन?