अब तक भारत की 26 जनवरी की गणतंत्र परेड के बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में अबाइड विद मी गीत बजता रहा है, लेकिन इस 29 जनवरी को इस धुन की बजाए सुर कोकिला लता मंगेशकर का कालजयी गीत ऐ मेरे वतन के लोगों की धुन सुनाई देगी। अबाइड विद मी की धुन 29 जनवरी 22 से बजना हमेशा के लिए बंद हो जाएगी।
क्या आप जानते हैं कब और कैसे लता मंगेशकर का गाया यह गीत अस्तित्व में आया था और क्या है इसकी कहानी जिसे सुनकर पूरा देश भावुक हो उठता है। भारत में 6 दशकों से यह देशभक्ति गीत सबसे पसंदीदा गाना रहा है। शहीदों की स्मृति का प्रतीक बन गया
ये गाना देश की सेना को सम्मान देने वाला माना जाता रहा है। पहली बार इसे 26 जनवरी 1963 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने गाया गया था। जैसे जैसे इस गीत की धुन जवाहर लाल नेहरू के कानों में पड़ रही थी, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। इतना ही नहीं, देश के नागरिक जब भी इस गीत को सुनते हैं, कुर्बानी देने वाले उन शहीदों की स्मृति में उनका दिल भर आता है।
ऐसे जन्मा ऐ मेरे वतन के लोगों
बता दें कि देशभक्ति से ओपप्रोत इस कालजयी गीत को कवि प्रदीप ने लिखा था। इसे सबसे पहले लता मंगेशकर ने गाया था। जब लता इसे रिकॉर्ड कर रही थीं, तो माहौल इतना भावुक हो गया कि ज्यादातर लोगों की आंखों में आंसू छलक आए।
कवि प्रदीप ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ये गाना कैसे बना। यह बात 1962 की है, जब भारत-चीन युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी। पूरा देश गमगीन था, उदासी थी और हर किसी का मनोबल टूट चुका था। तब इस गीत का जन्म हुआ।
सरकार भी देश के कवियों और गीतकारों को देख रही थी कि कोई ऐसी रचना रची जाए कि देश के घाव पर मरमह की तरह काम करें।
उस जमाने में कवि प्रदीप ने देशभक्ति के कई गाने लिखे थे। उन्हें ओज का कवि माना जाने लगा था। जाहिर है उन्हीं से कहा गया कि कोई गीत लिखे। उस दौर में मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और लता मंगेशकर अपने ऊरज पर थे। गायकी में कोई उनके आसपास भी नहीं था।
क्यों लता जी ने ही गाया ये गीत?
उस वक्त सारे देशभक्ति गीत रफी साहब और मुकेश ही गाते थे, इसलिए लता की सुरीली और बेहद संवेदनशील आवाज में वीर रस का गाना कैसे अच्छा होगा, यही सोचकर कवि प्रदीप ने भावनात्मक गीत लिखने का फैसला किया।
इस तरह ऐ मेरे वतन के लोगों गाने का जन्म हुआ। सबसे पहले इसे दिल्ली के रामलीला मैदान में लता जी ने नेहरू के सामने गाया। तो नेहरू की आंखों से आंसू छलक आए। जहां कवि प्रदीप ने अपने बोल से इसे अमर कर दिया तो लता जी ने अपनी आवाज से महान बना दिया। आज लता जी को इस गाने के बगैर याद ही नहीं किया जाता है। कवि प्रदीप भी इसे लेकर बेहद भावुक थे, उन्होंने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष में जमा करा दिया।
कौन हैं प्रदीप कवि, कैसे बने गीतकार?
कवि प्रदीप का मूल नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। उनका जन्म मध्यप्रदेश के उज्जैन में बड़नगर में हुआ। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से बनी। हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत “दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है” के जरिए वो ऐसे महान गीतकार हो गए, जिनके देशभक्ति के तरानों पर लोग झूम जाया करते थे। इस गाने पर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार उनसे नाराज हो गई। उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए गए।
कवि प्रदीप शिक्षक थे। कविताएं भी लिखा करते थे। एक बार मुंबई गए तो एक कवि सम्मेलन में हिस्सा लिया। वहां उनकी कविताएं बॉम्बे टॉकीज़ के मालिक हिमांशु राय ने सुनी तो बहुत पसंद आईं। उन्हें तुरंत 200 रुपये प्रति माह पर गीत लिखने के लिए काम पर रख लिया।