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Last Modified: शुक्रवार, 24 जून 2022 (20:44 IST)

2 महीने अमरनाथ यात्रा से जूझेगा कश्‍मीर प्रशासन, आतंकी हमले बन रहे चुनौती

2 महीने अमरनाथ यात्रा से जूझेगा कश्‍मीर प्रशासन, आतंकी हमले बन रहे चुनौती - Kashmir administration will struggle with Amarnath Yatra for 2 months
जम्मू। इस महीने की आखिरी तारीख यानी 30 जून से जम्मू-कश्मीर अब भक्तिमय होने जा रहा है। 2 महीनों तक राज्य प्रशासन सभी कामकाज छोड़कर उन धार्मिक यात्राओं से जूझने जा रहा है जो कई बार भारी भी साबित हुई हैं। इनमें सबसे अधिक लंबी और भयानक समझी जाने वाली अमरनाथ यात्रा है जिसको क्षति पहुंचाने के लिए अगर आतंकी कमर कस चुके हैं तो सुरक्षाबल भी।

अमरनाथ यात्रा समेत कई धार्मिक यात्राएं जुलाई और अगस्त के दौरान राज्य में संपन्न होती हैं। अधिकतर एक से 7 दिनों तक चलने वाली होती हैं मगर अमरनाथ यात्रा इस बार 43 दिनों तक चलेगी। मतलब 43 दिनों तक राज्य प्रशासन की सांस गले में इसलिए भी अटकी रहती है क्योंकि आतंकी उसे क्षति पहुंचाने का कोई अवसर खोना नहीं चाहते हैं।

6 दिनों के बाद अमरनाथ यात्रा का पहला आधिकारिक दर्शन होगा। सेना समेत अन्य सुरक्षाबलों ने एक माह पहले से ही सुरक्षा का जिम्मा संभाल लिया है। हजारों केरिपुब जवानों को भी तैनात किया जा चुका है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर डेढ़ लाख से अधिक सुरक्षाकर्मी अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा में जुट गए हैं फिर भी यह चिंता का विषय इसलिए बनी हुई है क्योंकि सूचनाएं और खबरें कह रही हैं कि आतंकी किसी भी कीमत पर इसे निशाना बनाना चाहते हैं।

सबसे अधिक खतरा 300 किमी लंबे जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर आतंकी हमलों और बारूदी सुरंगों का है। यात्रा से पूर्व हाईवे पर तैनात रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) की संख्या कई गुना बढ़ा दी गई है। आरओपी की 170 पार्टियों को हाईवे पर तैनात किया है और प्रत्येक पार्टी के दौ सैनिकों को 12 मीटर के हाईवे की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया है।

इन आरओपी को प्रशिक्षित डॉग स्‍क्‍वाड से सुसज्जित किया गया है ताकि हाईवे पर लगाई गई किसी भी आईईडी का पता लगाया जा सके। इन डॉग स्‍क्‍वाड के कुत्तों की खासियत है कि यह आईईडी मिलते ही बैठ जाते हैं जिससे सुरक्षाबलों को उस स्थान की निशानदेही करने में आसानी होती है।

सुरक्षा के चाक-चौबंद प्रबंध पिछले कुछ दिनों से पकड़े गए संदेशों और दक्षिण कश्मीर में भारी संख्या में आतंकियों की मौजूदगी के कारण किए गए हैं। हालांकि कई आतंकियों को दक्षिण कश्मीर में मार गिराया जा चुका है पर हाइब्रिड आतंकी अभी भी खतरा बने हुए हैं।

आतंकी हमलों की योजनाओं की सभी प्रकार की जानकारियों को विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां साझा कर रही हैं और सुरक्षा का मुख्य जिम्मा सेना को सौंपा गया है। पहलगाम से गुफा और बालटाल से गुफा तक के रास्तों पर आतंकी हमलों से बचाव का जिम्मा सही मायनों में भगवान भरोसे इसलिए है क्योंकि इन पहाड़ों में सुरक्षा व्यवस्था के दावे हमेशा झूठे पड़ते नजर आए हैं।

अब राजमार्ग पर सेना, यात्रा मार्ग पर उसका साथ अन्य सुरक्षाबल दे रहे हैं तो जम्मू के बेस कैंप में सभी सुरक्षाबलों को एकसाथ तैनात किया जाएगा। अधिकारी मानते हैं कि जम्मू के बेस कैंप में खतरा ज्यादा इसलिए है क्योंकि वहां से पाकिस्तान अधिक दूर नहीं है तो पुराना बेस कैंप शहर के बीचोंबीच होने के कारण पहले भी खतरे से जूझता रहा है।
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