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Last Updated : मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025 (22:28 IST)

वास्तविक सोमनाथ लिंग के पुनरुत्थान की रोचक कहानी : गुरुदेव श्रीश्री रविशंकर

1 हजार वर्ष पहले 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ भक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। यह केवल एक पूजा स्थल नहीं था बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का एक शक्ति भंडार था, जो पूरे देश से भक्तों, संतों और साधकों को अपनी ओर खींचता था।

वास्तविक सोमनाथ लिंग के पुनरुत्थान की रोचक कहानी : गुरुदेव श्रीश्री रविशंकर - Interesting story of the revival of the original Somnath Linga
Original Somnath Linga : भारत की आध्यात्मिक विरासत शाश्वत है और इतिहास इसकी दृढ़ता का साक्षी है। सदियों से हमारे मंदिरों, धर्मग्रंथों और परंपराओं पर कई आक्रमणकारियों द्वारा हमला किया गया है, फिर भी हमारी आस्था में कभी कोई कमी नहीं आई है। मैं आपके साथ ऐसी एक कहानी साझा करना चाहता हूं, जो हमारी सभ्यता और संस्कृति के लिए बहुत महत्व रखती है।
 
1 हजार वर्ष पहले 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ भक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। यह केवल एक पूजा स्थल नहीं था बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का एक शक्ति भंडार था, जो पूरे देश से भक्तों, संतों और साधकों को अपनी ओर खींचता था।ALSO READ: इस महाशिवरात्रि पहली बार करोड़ों लोग दुनियाभर में पाएंगे 1000 वर्षों बाद मिले मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के पवित्र शिवलिंगों के दर्शन
 
कहा जाता है कि सोमनाथ का शिवलिंग (Somnath Linga) अद्वितीय था, क्योंकि यह भूमि को स्पर्श न करके हवा में लटका हुआ था। इससे एक दैवीय शक्ति निकलती थी, जो निकट आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करती थी। यह पवित्र ऊर्जा केवल आस्था का विषय नहीं थी, यह एक अनुभव था।
 
हालांकि 1026 ईस्वी में इतिहास ने एक दुखद मोड़ ले लिया, जब महमूद गजनवी ने मंदिर में तोड़फोड़ की और शिवलिंग को अपवित्र कर दिया। किंतु विनाश होने के बाद भी लोगों में इसके प्रति अटूट भक्ति बनी रही। प्राचीन परंपराओं के समर्थक अग्निहोत्री ब्राह्मणों ने मूल सोमनाथ लिंग के टुकड़ों को संरक्षित किया और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले गए। उन्होंने इन अवशेषों को 1 हजार वर्षों तक सुरक्षित रखा और अत्यंत गोपनीयता के साथ पीढ़ियों तक उनका संरक्षण और उनकी पूजा की।ALSO READ: Mahashivratri 2025 : महाशिवरात्रि पर आज रात कब खोले जाएंगे महाकाल मंदिर के पट?
 
पवित्र शिवलिंग के संरक्षक
 
सदियों तक ये सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के टुकड़ों के बनाए गए ये पिंड उन महान संतों और आध्यात्मिक संरक्षकों द्वारा छिपाकर रखे गए जिन्होंने इनका महत्व समझा। इन पिंडों को एक पवित्र लिंगम् के रूप में आकार दिया गया और उसकी पूजा की गई। पिछले सदी के पहले हिस्से में स्वामी प्रणवेन्द्र सरस्वती ने अपने गुरु से ये पिंड प्राप्त किए। वे इसे कांची शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती के पास ले गए जिन्होंने इसे 100 साल तक छिपाकर रखने का निर्देश दिया।
 
इसके बाद ये पिंड श्री सीताराम शास्त्रीजी के परिवार के पास गए, जो 100 वर्ष के बाद इसे वर्तमान कांची शंकराचार्य स्वामी विजयेन्द्र सरस्वती के पास ले गए। शंकराचार्यजी के कहने पर उन्होंने यह पिंड पुन: स्थापित करने के उद्देश्य से मुझे लाकर दिए। जब ये पिंड कपड़े में लपेटकर आए तो मैंने पाया कि इन शिवलिंगों में एक विशेष चुंबकीय शक्ति थी।
 
हम अक्सर आस्था की बात करते हैं, लेकिन ऐसे क्षण भी आते हैं, जब आस्था प्रत्यक्ष अनुभव में बदल जाती है। टुकड़ों को पकड़कर कोई भी उसी ऊर्जा को महसूस कर सकता है, जो कभी सोमनाथ के भव्य कक्ष में भरी रही होगी। ये मात्र पत्थर के टुकड़े नहीं हैं, वे मंत्रों की शक्ति, सदियों से की गई अनगिनत प्रार्थनाओं, ध्यान और अनुष्ठानों की सामूहिक शक्ति से युक्त हैं।ALSO READ: काशी में महाशिवरात्रि के अगले दिन निकलेगी शिव बारात, कांग्रेस नाराज
 
2007 में जब वैज्ञानिकों ने इन टुकड़ों की सामग्री संरचना का अध्ययन किया तो उन्हें कुछ आश्चर्यजनक तथ्य मिला जिसने इस लिंगम् के रहस्य को और गहरा कर दिया। उन्होंने पाया कि इसके केंद्र में एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र है, जो बहुत ही असामान्य है। वैज्ञानिकों ने कहा कि उस स्थिति में लटके रहने के लिए यह एक बहुत ही विशेष और दुर्लभ प्रकार का चुंबकीय पत्थर होना चाहिए। ऐसे चुंबकीय गुणों वाला पत्थर बहुत दुर्लभ है। हालांकि इसकी संरचना क्रिस्टलीय प्रतीत होती है, लेकिन यह किसी भी ज्ञात पदार्थ से मेल नहीं खाती है जिससे पता चलता है कि टुकड़े किसी नई या दुर्लभ चीज से बने थे।ALSO READ: शिव का धाम कैलाश पर्वत और मानसरोवर ही क्यों है, जानिए रहस्य
 
प्राचीन ग्रंथों में लिंग के बारे में कई उल्लेखों से संकेत मिलता है कि यह बाहरी अंतरिक्ष से आया उल्का पिंड हो सकता है। इन पवित्र टुकड़ों की पुन: खोज केवल इतिहास को पुन: प्राप्त करने जैसी नहीं है। यह हमारी सभ्यता की भावना को पुनर्जीवित करती है। जिस तरह 500 साल बाद राम मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ, उसी तरह अब हम 1,000 साल बाद मूल सोमनाथ लिंगम् की महिमा की वापसी देख रहे हैं। यह एक ऐसा क्षण है, जो सनातन धर्म की शाश्वत प्रकृति की पुष्टि करता है। यह अतीत का अवशेष नहीं है बल्कि एक जीवित और सांस लेने वाली परंपरा है, जो जन्म लेती है और समय के साथ विकसित होती रहती है।ALSO READ: शिवलिंग पर चंदन लगाने से क्या होता है? महाशिवरात्रि पर इसे चढ़ाने से कैसे प्रसन्न होंगे भोलेनाथ
 
हमारा अगला कदम इस आशीर्वाद को हर जगह भक्तों के साथ साझा करना है। इन टुकड़ों को देशभर में ले जाने की योजना है जिससे सोमनाथ में अंतिम रूप से प्रतिष्ठित होने से पहले लाखों लोगों को इनके दर्शन करने की अनुमति मिल सके। हम सभी यह सुनिश्चित करते हुए 12 ज्योतिर्लिंगों, मंदिरों और पवित्र स्थलों की यात्रा करेंगे कि भक्त इन लिंगों के रूप में शाश्वत उपस्थिति के साथ फिर से जुड़ सकें।
 
आध्यात्मिकता का वास्तविक सार आस्था के प्रतीकों से परे निहित है। चंद्रमा, जो वैदिक ज्योतिष में मन का प्रतिनिधित्व करता है, शिव से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसीलिए शिव को चंद्रमा का स्वामी 'सोमनाथ' कहा जाता है। जब मन परेशान हो तो उत्तर है शिव। जब हम इस पवित्र यात्रा पर निकल रहे हैं तो हमें याद रखना चाहिए कि शिव केवल एक मूर्ति या प्रतीक नहीं हैं बल्कि शिव एक अनुभव हैं। वह हमारे विचारों के पीछे का मौन, हमारी भावनाओं के पीछे की विशालता और वह चेतना है, जो पूरे अस्तित्व में व्याप्त है।
 
यह पुनर्खोज केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है बल्कि यह समस्त मानव जाति के लिए एक शक्तिशाली संदेश है। यह हमें याद दिलाती है कि सत्य, विश्वास और भक्ति को कभी मिटाया नहीं जा सकता।
 
Edited by: Ravindra Gupta