• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. India China border dispute in Ladakh
Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : बुधवार, 26 मई 2021 (20:03 IST)

चर्चा में गलवान घाटी, क्या फिर आमने-सामने हुए भारत-चीन के सैनिक?

चर्चा में गलवान घाटी, क्या फिर आमने-सामने हुए भारत-चीन के सैनिक? - India China border  dispute in Ladakh
जम्मू। हालांकि भारतीय सेना उन खबरों का खंडन कर रही है जिनमें कहा जा रहा है कि चीन सीमा पर उस गलवान वैली में इस महीने के शुरू में एक बार फिर भारतीय व चीनी सेनाओं के बीच खूनी झड़पें हुई हैं, जहां पिछले साल तथा वर्ष 2013 में भी दोनों के बीच खूनी झड़पें हुई थीं। पर इतना जरूर है कि इन खबरों के बाद एक बार फिर से गलवान वैली चर्चाओं में है क्योंकि सेनाधिकारी फिर से कहते हैं कि गलवान वैली को खोने का अर्थ होगा सामरिक महत्व के सड़क मार्गों को खतरे में डालना। 
 
वैसे भारतीय सेना की ओर से जारी किए गए आधिकारिक बयान में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच किसी भी प्रकार का कोई संघर्ष नहीं हुआ है। पर चीनी सेना की ओर से कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं आया है। अपुष्ट खबरों के अनुसार, मई की शुरुआत में गलवान में दोनों देशों के बीच संघर्ष हुआ था।
 
याद रहे पिछले साल जून महीने में भी भी गलवान में दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। इसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे। चीन के भी कई जवान मारे गए थे। भारत ने उसके बाद चीन ने बदला लेते हुए उसे कई जगहों से पीछे भी धकेला था।
 
ताजा चर्चाओं के बाद चाहे आप इसे माने या नहीं, लेकिन वह गलवान वैली अब भारतीय सेना के लिए किसी खतरे से कम नहीं है, जिस पर पिछले साल चीन ने अपना दावा पक्का कर लिया था। सच्चाई यह है कि गलवान वैली को खोने के खतरे का अर्थ ठीक वही होगा जो करगिल-लेह हाईवे पर कई पहाड़ों पर पाक कब्जे से पैदा हुआ था।
 
गलवान वैली के क्षेत्र में लाल सेना की मौजूदगी को ‘मान्यता’ देने का अर्थ होगा कि सामरिक महत्व की दरबुक-शयोक-डीबीओ रोड को चीनी तोपखाने के निशाने पर ले आना। यह बात अलग है की चीन हमेशा ही लद्दाख सेक्टर में बिना गोली चलाए पहले भी कई बार भारतीय सेना को कई किमी पीछे ‘खदेड़’ चुका है।
 
पिछले साल मई के पहले हफ्ते में ही चीन ने गलवान वैली पर कब्जे की योजना ठीक उसी प्रकार बना ली थी जिस तरह से वर्ष 1999 में पाक सेना ने कारगिल के पहाड़ों पर कब्जा कर लिया था और तब भी मई 1999 में उनसे सामना हुआ था। सूचना कहती है कि चीन की हरकतें एक बार फिर डीबीओ रोड के लिए खतरा पैदा कर रही है।
 
इसे भूला नहीं जा सकता कि वर्ष 2013 में दौलत बेग ओल्डी में टेंट गाड़ने वाली चीनी सेना ने अपने कदम पीछे हटाने की बात मानते हुए भारतीय सेना को भी 15 किमी पीछे अपने ही इलाके में बिना गोली चलाए वापस जाने पर मजबूर कर दिया था।
 
तब भी मई का ही महीना था। 5 मई 2013 को जब अचानक लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी इलाके में चीन की सेना ने अपने कदम पीछे हटाने की बात मानी थी तो भारतीय खेमे में कोई खुशी की लहर नहीं थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि भारतीय क्षेत्र में ही बनाए गए लाल सेना के ठिकानों से मात्र 300 मीटर की दूरी पर कैंप लगाए भारतीय जवानों को तब और 15 किमी पीछे बरस्ते के इलाके में जाने का आदेश सुना दिया गया था।
 
दरअसल तब, चीनी सेना इसी ‘शर्त’ पर इलाका खाली करने को राजी हुई थी कि भारतीय सेना बरस्ते से आगे अब कभी गश्त नहीं करेगी और न ही कोई सैन्य गतिविधियां चलाएगी। हालांकि सरकारी तौर पर इन मान ली गई शर्तों के प्रति कोई वक्तव्य आज तक नहीं आया है पर मिलने वाली सूचनाएं कहती हैं कि बरस्ते के आगे बनाए गए उन ढांचों को भी भारतीय सेना को हटाना पड़ा था जो इलाके में कभी कभार गश्त करने वाले जवानों को खराब मौसम में शरण देने के लिए खड़े किए गए थे।
ये भी पढ़ें
Corona काल में बदल रहे हैं समाज के रीति-रिवाज