स्पेस वॉर (Space War) यानी अंतरिक्ष में युद्ध अब कोरी कल्पना नहीं रहा। फिल्मी पर्दे पर दिखने वाली यह जंग अब हकीकत के करीब पहुंच चुकी है। आज के दौर में अमेरिका, रूस, चीन, भारत जैसे बड़े देशों के अलावा अन्य देश भी अंतरिक्ष में तरह-तरह के प्रयोग कर रहे हैं, ऐसे में भविष्य में स्पेस वॉर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जरा सी चूक एक बड़े युद्ध का कारण बन सकती है। किसी भी देश के सैटेलाइट्स को मार गिराने का अर्थ है संचार, नेविगेशन और निगरानी समेत कई सुविधाओं का बंद हो जाना।
हाल ही में अमेरिका द्वारा संदिग्ध चीनी गुब्बारे और फ्लाइंग ऑब्जेक्ट को मार गिराने की घटना को ऐसे ही युद्ध के छोटे स्वरूप में देख सकते हैं। इस बात की भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन-ताइवान के बीच जारी तनाव की परिणति भी स्पेस वॉर के रूप में हो सकती है।
किस बात का है डर : नवंबर 2021 में रूस ने एक एंटी सैटेलाइट मिसाइल लॉन्च कर अपने ही सैटेलाइट को नष्ट कर दिया था। सैकड़ों की संख्या में इसके टुकड़े अंतरिक्ष में फैल गए थे। अमेरिका 2008 में और चीन 2007 में ऐसा कारनामा कर चुके हैं। 2007 में जब चीन ने अपने ही मौसम उपग्रह को नष्ट किया था तब अमेरिका और दूसरे देशों ने चीन की इस हरकत की काफी आलोचना की थी। 2013 में भी चीन ने पृथ्वी की कक्षा में रॉकेट दागा था।
दरअसल, सैटेलाइट को नष्ट करने के बाद जो कचरा उत्पन्न होता है, वह अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। इसके साथ ही यदि किसी दूसरे देश के सैटेलाइट को नुकसान पहुंचता है, तो निश्चित ही स्पेस में वॉर की स्थिति बनते देर नहीं लगेगी।
आउटरनेट विशेषज्ञ एवं संयुक्त राष्ट्र में पॉलिसी अधिकारी सिद्धार्थ राजहंसवेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि भविष्य में बड़ा वॉर स्पेस के लेबल पर ही होगा। हमने स्पेस को ऑक्यूपाई कर लिया है। लियो और मियो ऑर्बिट को सैटेलाइट से भर दिया है। यह बहुत ही पेचीदा मसला है। अमेरिका ने अपनी खुद की स्पेस फोर्स बना ली है, जिसे 4 स्टार जनरल कमांड करता है। इससे जाहिर है कि यूएस ने इस मुद्दे को काफी गंभीरता से लिया है।
अंतरिक्ष में भारत : अंतरिक्ष में भारत की यात्रा की शुरुआत उस समय हुई जब 1975 में उसने 'आर्यभट्ट' नामक पहला सैटेलाइट लॉन्च किया। रोहिणी, एपल, भास्कर आदि उपग्रहों ने इस यात्रा को और आगे बढ़ाया। 1982 में भारत ने INSAT-1A के नाम से पहला बहुउद्देशीय संचार और मौसम विज्ञान उपग्रह (multipurpose communication and meteorology satellite) लॉन्च किया। 2022 में कल्पना-1 के नाम से भारत ने पहला ऐसा उपग्रह लॉन्च किया था, जिसे इसरो द्वारा बनाया गया था। इसके अलावा भारत एजुकेशन, मौसम, कम्युनिकेशन समेत विभिन्न उपग्रह लॉन्च कर लिया। चंद्रयान और मंगलयान भी इसी कड़ी का हिस्सा है।
हम किसी से कम नहीं : भारत ने 27 मार्च 2019 को अंतरिक्ष में मार करने वाली एंटी सैटेलाइट मिसाइल का भी सफल प्रयोग किया। इंडियन मिसाइल ने प्रक्षेपण के 3 मिनट के भीतर ही 300 किमी ऊपर लो अर्थ ऑर्बिट में अपने ही माइक्रोसैट-आर सैटेलाइट को मार गिराया। इतना ही नहीं 11 जून, 2019 में सरकार ने अंतरिक्ष युद्ध की तैयारी के तहत ही नई एजेंसी डिफेंस स्पेस रिसर्च एजेंसी (DSRO) बनाने की मंजूरी दी थी।
यह घटना अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते रुतबे को दर्शाती है साथ ही इससे भारत के इरादे भी जाहिर हो गए हैं कि वह इस तरह के किसी भी युद्ध का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह सक्षम है। सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत के ही पास ही है।
राजहंस कहते हैं कि भारत का इसरो दुनिया का सबसे जुगाड़ू संस्थान है। हम एक ही रॉकेट से पेलोड छोड़ते हैं और श्रीहरिकोटा में फिर लैंड करवाकर इंडस्ट्रियल डिजाइन के बाद उसका रीयूज करते हैं। इसरो का मुख्य फोकस रडार डिटेक्शन, इन्फ्रारेड एंड माइक्रोवेब रिमोट सेंसिंग पर है। सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी भारतीय सेना ने एरियल रिमोट सेंसिंग की मदद ली गई थी।
सिद्धार्थ कहते हैं कि रिमोट एंटी सैटेलाइट डिटेक्शन टेक्नोलॉजी से सैटेलाइट की स्थिति बदल सकते हैं। यदि भारत के सैटेलाइन को खतरा हो तो इसरो के पास ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिससे 24 घंटे सैटेलाइट का सर्विलांस चलता रहता है। यदि सैटेलाइट लॉक होता है तो हम उसे डिटेक्ट भी कर सकते हैं।
दिनोदिन बढ़ रही है होड़ : एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार विभिन्न अर्थ ऑर्बिट में 5500 से ज्यादा सैटेलाइट चक्कर काट रहे हैं। इनमें सर्वाधिक 3135 कम्युनिकेशन से जुड़े हुए हैं, जबकि 1052 अर्थ ऑब्जर्वेशन के लिए हैं। इनमें सर्वाधिक 2926 सैटेलाइट अमेरिका के हैं। जबकि, भारत के 50 से ज्यादा सैटेलाइट स्पेस में मौजूद हैं।
अंतरिक्ष में जारी होड़ का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 21वीं सदी की शुरुआत में सिर्फ 14 देशों के सैटेलाइट ही अंतरिक्ष में थे, लेकिन मात्र 2 दशकों के भीतर सैटेलाइट संचालित करने वाले देशों की संख्या बढ़कर 100 से ज्यादा हो गई है। कई अन्य संस्थाएं भी यह काम कर रही हैं।
स्पेस सेनाएं भी तैयार हैं : दुनिया में कुछ समय पहले तक केवल रूस के पास स्पेस फोर्स थी। इसके बाद चीन और अमेरिका ने भी खुद को स्पेस वॉर के लिए तैयार किया। इस विषय की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि अमेरिका इस तरह के संभावित युद्ध से निपटने के लिए स्पेस फोर्स का गठन कर चुका है।
यूएस स्पेस फोर्स के प्रमुख जनरल जॉन रेमंड ने कहा था- अमेरिका अंतरिक्ष युद्ध में शामिल नहीं होना चाहता है, लेकिन सभी क्षेत्रों की तरह, यूएस आर्मी को इस तरह के संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए। इसके लिए बहुत सारी तैयारी और बदलाव की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात का भरोसा नहीं है कि हम अंतरिक्ष शक्ति बने बिना जीत हासिल कर सकते हैं या आधुनिक तरीके से लड़ी जाने वाली इस लड़ाई में मुकाबला कर सकते हैं।
कैसे होते हैं एंटी-सैटेलाइट हथियार : एंटी-सैटेलाइट हथियार (ASAT) 2 तरह के होते हैं। एक हथियार वे होते हैं जो सीधे सैटेलाइन से टकराते हैं, जिनमें मिसाइल, रॉकेट या ड्रोन आदि शामिल हैं। दूसरे तरीके में साइबर अटैक कर सैटेलाइन को निष्क्रिय किया जा सकता है। इस तरह के हमले धरती की निचली कक्षा या फिर जमीन से भी किया जा सकता है। हवा में भी इस तरह के हमलों को अंजाम दिया जा सकता है।
किस तरह के नुकसान : राजहंस कहते हैं कि यदि स्पेस में वॉर की स्थिति उत्पन्न होती है तो निश्चित ही नुकसान भी बड़े हो सकते हैं। चूंकि टेलीकम्यूनिकेशन, व्यापार, बैंकिंग, स्टॉक मार्केट, टीवी, टेलिफोन, सेना आदि सभी कुछ आज के दौर में सैटेलाइट के माध्यम से चलते हैं। यदि सैटेलाइन को नुकसान होता है तो ये सेवाएं भी स्वाभाविक रूप से ठप हो सकती हैं। यदि ऐसा होता है तो ये सभी सेवाएं ठप हो जाएंगी। ऐसे में इस टेक्नोलॉजी को समझना और इस दिशा में दूसरों से एक कदम आगे रहना काफी जरूरी है।