जीएसटी को 1 जुलाई को एक वर्ष पूरा हो जाएगा। 17 कानून खत्म करके जीएसटी लागू होने से व्यापारियों को अत्यधिक कंप्लायंस से छूट मिल गई है। अब मैनली दो ही डिपार्टमेंट से कंप्लायंस करना है। जीएसटी और इनकम टैक्स। इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता था। व्यापार की गति बहुत बढ़ गई है, अब 6 माह में गुड्स की उधारी का पैसा नहीं दे पाने से आईटीसी वापस करने की मजबूरी होने से व्यापारी पैमेंट तुरंत करने लगे हैं, जिससे व्यापारी का पैसा डूबना करीब-करीब बंद हो गया है।
पहले व्यापारी को सर्विस टैक्स अलग भरना होता था और सेल्स टैक्स अलग भरना पड़ता था। ज्यादातर केस में सर्विस टैक्स का इनपुट डूब जाता था। सेल्स टैक्स का ही इनपुट मिलता था। अब क्रॉस क्रेडिट उपलब्ध होने से व्यापारी और उपभोक्ता को कम टैक्स देना पड़ रहा है। यह एक व्यापारी और उपभोक्ता के लिए छुपी हुई बचत है। ऐसा लगता है कि आगे जाकर महंगाई कम होगी। सरकार को प्रोडक्ट कितने में मिल रहा था और अब क्या भाव है, इसका एनालिसिस उपभोक्ता के हित के लिए जरूर करना चाहिए, ताकि गुड्स के भाव कम हो सकें।
कई बड़ी कंपनियों ने प्लानिंग के तहत जीएसटी होने के पहले ही भाव बढ़ा दिए थे। जीएसटी की दर 18 प्रतिशत सर्विस सेक्टर पर होने से उपभोक्ता इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है। सर्विस सेक्टर का भार डायरेक्ट बहुत छोटे-छोटे उपभोक्ता पर पड़ रहा है। इसे छोटे सर्विस सेक्टर वालों पर तुरंत कम कर देना चाहिए। जीएसटी में 3B भरने पर थोड़ी-सी भी गलती जैसे एक जीरो कम हो गया तो एक बार टैक्स भरने के बाद उसका पैसा सरकार के पास होते हुए भी उसे ब्याज अगले माह 18 प्रतिशत की दर से देना होता है।
इसे व्यापारी ठगा-सा महसूस कर रहा है। इसमें सरकार को उसी रिटर्न में सुधार करने या कम से कम उसी वक्त टैक्स भरने की सुविधा देना चाहिए, ताकि व्यापारी पर जबरन ब्याज का बोझ न पड़े। भारत में सामान्यतया व्यापारी गुड्स के व्यापार के साथ दलाली या रिपेयरिंग की सर्विस भी करता है। चूंकि कम्पोजीशन की सुविधा सिर्फ गुड्स वालों को है तो लोग अभी कम्पोजीशन नहीं ले पा रहे हैं। कम से कम 5 लाख की सर्विस की आय होने पर भी कम्पोजीशन देना चाहिए।
इसमें अभी भी कई व्यापारी जानकारी के अभाव में कम्पोजीशन में हैं और सर्विस भी दे रहे हैं। 3B रिटर्न को मंथली GSTR-1 के साथ मैच न करें, इसे वार्षिक रिटर्न के साथ ही ग्रॉस करके मैच करें। इस वर्ष तो करीब-करीब सभी ने गलतियां की हैं। इसके कारण सरकारी काम बढ़ेगा और व्यापारी परेशान होगा और समय नष्ट होगा। सरकार को ऑप्शन देना चाहिए की ई-वे बिल को ऑनलाइन इनवॉइस के साथ जोड़कर एक ही कागज से काम हो जाए, ताकि ई-वे बिल बार-बार अलग से न बनाना पड़े।
व्यापारी का पूरा महीना एकाउंटेंट्स और सीए के चक्कर लगाते-लगाते निकल जाता है और कानून नया होने से गलती सभी से हो रही है, 50 करोड़ से कम वाले के लिए रिटर्न को तुरंत क्वार्टरली कर देना चाहिए। बड़ी कंपनी तो अपने ऑफिस में ही कार्य कर लेती है। छोटे व्यापारी परेशानी का सामना कर रहे हैं। टैक्स माहवारी चालान में ही विक्रय और खरीदी की ग्रॉस अमाउंट भरवाकर जमा कर लें, जिसका क्रय-विक्रय का मिलान न करें। कम ज्यादा हो तो ब्याज तो ले ही रहे हैं। सबसे ज्यादा जरूरत सरकार के ही विभिन्न डिपार्टमेंट में सुधार की है। सरकारी डिपार्टमेंट में अभी भी बिल नहीं लेते हैं।
बाबू लोग जीएसटी के नियम को समझने के लिए तैयार नहीं हैं। अपने हिसाब से पेमेंट काट कर करते हैं, व्यापारी जीएसटी का रिटर्न नहीं रोक सकता है, इसलिए व्यापारी का बहुत सारा पूंजी का पैसा टैक्स के रूप में सरकार के पास चला जाता है और आईटीसी नहीं मिलती है। वार्षिक रिटर्न भी मैच नहीं हो पाएंगे। खासकर छोटे कांट्रेक्टर बहुत परेशान हैं। इसमें तुरंत सुधार करना चाहिए। रिवर्स चार्जेज आने वाली बड़ी समस्या है क्योंकि इसे लागू करते ही बहुत ही छोटे-छोटे लोग जिनका विक्रय 20 लाख से कम है उनको रजिस्ट्रेशन लेना होगा और कंप्लायंस कास्ट व्यापारी की जीएसटी में सबसे ज्यादा हो गई है, क्योंकि प्रत्येक छोटे व्यापारी, जो कि अकाउंट्स और कंप्यूटर की जानकर के अभाव में हैं, उन्हें इस खर्चे को वहन करना भारी पड़ रहा है।
किराए की आय व अन्य आय पर रिवर्स चार्जेज लागू नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसमें छोटे-छोटे लोग खासकर महिलाएं जिनके नाम प्रॉपर्टी है, बहुत परेशान हो जाएंगे। रिफंड क्लेम करते ही व्यापारी के ITC में से अमाउंट नामे हो जाता है और रिफंड नहीं मिलता है तो व्यापारी ना तो उसका उपयोग टैक्स भरने में कर पा रहा है, न ही रिफंड राशि उसे आसानी से मिल पा रही है। इसमें प्रोविसिनल रूप से नामे करें और व्यापारी को छूट हो कि वह रिफंड का अमाउंट भी टैक्स पेमेंट में कर सके और उसका रिफंड क्लेम ऑटोमेटिक कम हो जाए।
मतलब बीच में वह स्विच कर सके। पोर्टल सॉफ्टवेयर को इम्प्रूव करने में छोटे-छोटे जानकार और परेशानी का सामना करने वाले व्यापारी और सलाहकार की मदद उपलब्ध कराना चाहिए ताकि वह मूल समस्या को समझ सके। इन सुधारों से सरकार का टैक्स कलेक्शन दोगुना भी हो सकता है। छोटे लोगों की कंप्लायंस लागत घटाना बहुत जरूरी है।