मुंबई देश का सबसे बडा शहर और आर्थिक राजधानी है। यहां दुनियाभर के लोग काम करते हैं। लेकिन यहां मौजूदा तापमान में गर्म और उमस भरे मौसम के कारण प्रति घंटे लगभग 4-5 मिनट की कमी दिख रही है।
इसका मतलब यह हुआ कि काम के 12 घंटों (वर्किंग आवर्स) के दौरान करीब एक घंटे का नुकसान हो रहा है। इसके बाद अब अनुमान लगाया जा रहा है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण मुंबई में काम के घंटे प्रभावित हो सकते हैं।
रिसर्च जर्नल नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में एक डिग्री की भी वृद्धि हुई तो प्रत्येक घंटे में होने वाली 4-5 मिनट की कमी दोगुनी होकर 10 मिनट तक पहुंच सकती है।
इस स्टडी से यह भी पता चला है कि अहमदाबाद में प्रति घंटे करीब 12 मिनट का नुकसान हो रहा है, जबकि चेन्नई और हैदराबाद में भी करीब-करीब मुंबई जैसी स्थिति है।
अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी में हुई इस रिसर्च स्टडी में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग अंततः न केवल उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में श्रमिकों को नुकसान पहुंचाएगी बल्कि मध्य अक्षांश वाले भौगोलिक क्षेत्रों को भी तेजी से प्रभावित करेगी।
इस स्टडी में खुलासा हुआ है कि गर्मी और आर्द्रता के संयोजनों की एक शारीरिक सीमा हैं, जिन्हें आदमी सहन कर सकता है। बड़े आकलन के तौर पर देखें तो दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्तमान में जो गर्मी और आर्द्रता के बीच श्रमिकों के संघर्ष की स्थिति में हर साल 280-311 बिलियन डॉलर यानी करीब 21,33,964 से 23,70,224 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।
वर्तमान में जो स्थिति है, उसमें 2 डिग्री सेल्सियस (जो पूर्व-औद्योगिक स्तरों से करीब 3 डिग्री अधिक है) तक की भी वृद्धि हुई, तो यह नुकसान बढ़कर 1.6 ट्रिलियन डॉलर यानी 1,29,59,185 करोड़ रुपये हो जाएगा।
ऐसे में जाहिर है कि मुंबई में काम के प्रचलित तरीके में भी बदलाव होगा। यह ऐसा पहला अध्ययन है जो यह आकलन करता है कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के रूप में दिन के ठंडे हिस्सों में भारी काम को स्थानांतरित करना कितना प्रभावी है। जैसे कि भरी दोपहर के हिस्से का काम सुबह (Early Morning) या फिर शाम से रात के बीच करवाना।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण जो स्थिति बनती नजर आ रही है, उसमें दिन के सबसे गर्म तीन घंटों में होने वाले काम को अगर बाहर यानी ठंडे घंटों में ले जाया जाए तो यह करीब 30 फीसदी की भरपाई कर सकता है। हालांकि ऐसा करने के और भी नुकसान हो सकते हैं। जैसे कि तेज गर्म और आर्द्र मौसम के कारण नींद खराब होना।
गर्मी से भरी दोपहर के हिस्से के काम को ठंडे घंटों यानी सुबह या शाम में ले जाकर जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की संभावना प्रत्येक अतिरिक्त डिग्री वार्मिंग के साथ लगभग 2 फीसदी कम हो जाती है। इस रिसर्च स्टडी में कहा गया है कि भविष्य में अतिरिक्त 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा तो वर्तमान में दिन के सबसे गर्म 12 घंटों में होने वाला काम, अपेक्षाकृत दिन के सबसे ठंडे घंटों के दौरान किया जा सकेगा। हालांकि धूप-छांव वाली स्थिति दर्शाने के कारण अध्ययन के निष्कर्ष कंजर्वेटिव हैं। पूरी धूप के दौरान स्थितियां और बुरी हो सकती है।