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Last Modified: नई दिल्ली , सोमवार, 27 अक्टूबर 2014 (20:30 IST)

चक्रवाती तूफान 'नीलोफर' को नाम दिया है पाकिस्तान ने

चक्रवाती तूफान
-सुनील जैन
 
नई दिल्ली। गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र के तटीय इलाकों की और बढ़ रहे  चक्रवाती तूफान 'नीलोफर'  का नामकरण पाकिस्तान ने किया है। मौसम विभाग द्वारा 'भीषण' गति वाले चक्रवाती तूफान की श्रेणी में रखे गए इस तूफान के अगले चौबीस घंटों में गुजरात के तट से टकराने के संकेत हैं, तब तक तूफान और तेज हो सकता है, जिससे समुद्र में भी काफी उफान आने का अंदेशा है।
हालांकि अरब सागर में उठे इस तूफान की तीव्रता इसी माह आए 'हुदहुद' जितनी नहीं होने की संभावना है, लेकिन फिर भी 'नीलोफर' के कारण गुरुवार को सौराष्ट्र के तटीय जिलों और उत्तरी गुजरात के  सौराष्ट्र और कच्छ के इलाकों में भारी बारिश होने की संभावना है। तूफान से पाकिस्तान और ओमान के तटीय क्षेत्र भी प्र्भावित होंगे। 
 
यह एक कड़वा सच है कि बरबादी और तबाही लाने वाले समुद्री चक्रवाती तूफानों का नामकरण क्रमानुसार तूफान आने से वर्षों पहले कर लिया जाता है और वह भी  विधिवत एक पूरी प्रक्रिया अपनाकर। इसी क्रम के अनुसार इनका नामकरण किया जाता है। इस बार तूफान के नामकरण का क्रम पाकिस्तान का था। पिछली बार पाकिस्तान ने नवंबर 2012 में जिस चक्रवात का नाम रखा था उसे 'नीलम' कहा गया था। गौरतलब है कि'हुदहुद' का नामकरण ओमान ने किया था।
 
प्राप्त जानकारी के अनुसार 1900 के मध्य में समुद्री चक्रवाती तूफान का नामकरण करने की शुरुआत हुई ताकि इससे होने वाले खतरे के बारे में लोगों को जल्द से जल्द सतर्क किया जा सके, संदेश आसानी से लोगों तक पहुंचाया जा सके, सरकार और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियां कर सकें, लेकिन तब नामकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित नहीं थी। 
 
विशेषज्ञों के अनुसार नामकरण की  विधिवत प्रक्रिया बन जाने के बाद से यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवाती तूफानों का नाम आसान और याद रखने लायक होना चाहिए। इससे स्थानीय लोगों को सतर्क करने, जागरूकता फैलाने में मदद मिलती है और मीडिया  में इसका जिक्र करने से आसानी होती है। इनके आसान नाम से इसे याद रखने में आसानी होती है। इसी संदर्भ में बता दें कि नर्गिस, लैला, कैटरीना, नीलम, फैलीन, हेलन, यह सब किसी महिला का नहीं बल्कि पिछले वर्षों में दुनियाभर में आए समुद्री तूफानों का नाम है।
 
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार तूफ़ानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम 1953 से मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर और संयुक्त राष्ट्रसंघ की एजेंसी वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) नाम रखता आ रहा है, लेकिन उन दिनों में उत्तरी हिन्‍द महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा गया था, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना था कि इस क्षेत्र में विशेष तौर पर ऐसा करना काफ़ी विवादास्पद था और इस काम में काफी सतर्कता की जरूरत है।
 
सांस्कृतिक विविधता वाले इस क्षेत्र में नामकरण करते वक्त काफ़ी सावधान और निष्पक्ष रहने की ज़रूरत थी ताकि यह लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए, मगर 2004 में  डब्लूएमओ की अगुवाई वाली अंतरराष्ट्रीय पैनल भंग कर दी गई और अपने-अपने क्षेत्र में आने वाले चक्रवात का नाम ख़ुद रखने को कहा गया।
 
इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड को मिलाकर कुल आठ देशों ने हिस्सा लिया। इन देशों ने 64 नामों की एक सूची तैयार की है। हर देश ने आने वाले चक्रवात के लिए आठ नाम सुझाए। यह सूची हर देश के वर्ण क्रम के अनुसार है। इस क्षेत्र में आने वाला आख़िरी चक्रवात जून में आने वाला 'नानुक' था, जिसका नाम म्यांमार ने रखा था। 
 
सदस्य देशों के लोग भी नाम सुझा सकते हैं, मसलन भारत सरकार इस शर्त पर लोगों की सलाह मांगती है कि नाम छोटे, समझ आने लायक, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और भड़काऊ न हों। पिछले साल भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर आए 'फैलीन' चक्रवात का नाम थाईलैंड ने रखा था। 
 
इस सूची में शामिल भारतीय नाम आसानी से जबान पर चढ़ने वाले नाम हैं, जैसे मेघ, सागर, और वायु, पाकिस्तान की तरफ से मंजूर नामों में फानूस, नर्गिस, श्रीलंका के तरफ से माला, प्रिया, रश्मि व बांग्‍लादेश की तरफ से अग्नि, निशा वगैरह शामिल हैं।
 
'नीलोफर' संभवतः इस सूची का 35वां नाम है। इसका मतलब है कि अभी इस सूची में 30 नाम और हैं। चक्रवात विशेषज्ञों का पैनल हर साल मिलता है और ज़रूरत पड़ने पर सूची फिर से भरी जाती है। 1900 के प्रारंभ में ऐसे तूफानों के नाम महिलाओं के नाम पर रखे जाते थे। 
 
वर्ष 1950 के मध्य में नामकरण के क्रम को और भी सिलसिलेवार ढंग से करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों ने इसकी बेहतर पहचान के लिए इनके नामों को पहले से क्रमबद्ध तरीके से अंग्रेजी वर्णमाला के शब्दों के प्रयोग पर जोर दिया। इसी के तहत 1990 के शुरुआत में पहले इनका नाम 'ए' से 'एन्ने' रखा गया। 
 
ऐसा भी हुआ कि 1990 के दशक से पहले दक्षिणी गोलार्ध में आए सारे तूफानों का नाम पुरुषों के नाम पर रखा जाने लगा था, लेकिन  बाद में नेशनल हरिकेन सेंटर के द्वारा उष्ण कटिबंधीय तूफानों का नामकरण किया जाने लगा। इन तूफानों का नामकरण अब इंटरनेशनल कमेटी ऑफ मेटेरोलॉजिकल आर्गेनाइजेसन के हाथों में है। 
 
यह एक रोचक बात है कि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में आए तूफानों का नामकरण न ही किसी खास इंसान के नाम पर किया गया और न ही अंग्रेजी वर्णमाला के शब्दों की किसी सूची से, बल्कि इन जगहों पर लोगों के द्वारा नाम और क्षेत्रों की परिचित चीजों के आधार पर किया गया। 
 
अत: उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चक्रवाती या तूफानों का नामकरण केवल इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है ताकि इसके प्रति लोगों तक अधिक से अधिक और ज्यादा जागरूकता, सतर्कता फैलाई जा सके, ताकि सरकार और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियां कर सकें।      
 
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चक्रवाती तूफानों का नामकरण क्षेत्रीय स्तर के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए हरिकेन कमेटी ने पहले से ही हरिकेन के नामों की लिस्ट तैयार कर ली है। उत्तरी अटलांटिक सागर के आसपास के क्षेत्रों में नामों की छ: सूची तैयार की गई है जिसे प्रत्‍येक 8 सालों पर दोहराया जाता है। पूर्वी उत्तरी प्रशांत महासागर के तटों पर आने वाले हरिकेनो के नामों की यह सूची प्रत्‍येक छ: सालों में दोहराई जाती है।
 
कई बार इनके नामों को लेकर स्थानीय स्तर पर आपत्ति भी दर्ज की जाती है। वर्ष 2013 में श्रीलंका की ओर से रखे 'महासेन' नाम को लेकर श्रीलंका में कुछ वर्गों और अधिकारियों ने विरोध जताया था जिसे बाद में बदलकर 'वियारु' कर दिया गया। उनके मुताबिक़ राजा महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे, इसलिए आपदा का नाम उनके नाम पर रखना ग़लत है। 
 
भारतीय मौसम विभाग आम जनता से भी तूफानों के नाम सुझाने को कहता है, इस संबंध में निर्धारित बुनियादी मानकों के अनुसार बस यह ध्यान रखना चाहिए कि नाम छोटा हो, उससे किसी की सांस्‍कृतिक भावनाएं आहत नहीं हों। 
 
भारतीय मौसम विभाग की संभावना के अनुसार 'नीलोफर' अगले 24 घंटों में और तीव्र होकर चक्रवात का रूप ले सकता है इसलिए मछुआरों को तटीय इलाकों के पास न जाने की सलाह दी गई है कि क्योंकि इस तूफान के कारण गुजरात के तटीय इलाकों में स्थिति बहुत खराब हो सकती है।
 
नीलोफर के मंगलवार रात को बहुत ही तेज चक्रवाती तूफान में बदल जाने की संभावना है और इस दौरान 145 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलेंगी। इसकी यह स्थिति बुधवार रात तक जारी रहने की संभावना है।
 
विभाग के अनुसार, पश्चिम-मध्य और दक्षिण-पश्चिम अरब सागर के ऊपर बना उच्च दबाव थोड़ा उत्तर की तरफ बढ़कर और तीव्र होकर चक्रवाती तूफान में बदल गया है। अगले 48 घंटों के दौरान यह उत्तर-उत्तरपूर्व की ओर बढ़ेगा और फिर (ओमान के तट को छूने के बाद) उत्तरपूर्व उत्तरी गुजरात और पाकिस्तान के तटीय क्षेत्रों की तरफ मुड़ जाएगा। इसके अगले 24 घंटों में यह एक भीषण चक्रवाती तूफान का रूप ले लेगा।
 
हुदहुद उत्तरी आंध्रप्रदेश और दक्षिणी ओडिशा में 12 अक्टूबर को 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ज्यादा तेजी से आया था और भारी तबाही मचाई थी। इसकी वजह से अकेले आंध्रप्रदेश में 46 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 43 अन्य घायल हो गए थे और इसने 20.93 लाख परिवारों को प्रभावित किया था। (वीएनआई)