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Last Updated : शुक्रवार, 6 सितम्बर 2024 (16:27 IST)

कांग्रेस ने सेबी प्रमुख पर फिर लगाया हितों के टकराव का आरोप, पीएम से किया सवाल

कांग्रेस ने सेबी प्रमुख पर फिर लगाया हितों के टकराव का आरोप, पीएम से किया सवाल - Congress again accuses SEBI chief Madhabi Buch of conflict of interest
नई दिल्ली। कांग्रेस (Congress) ने सेबी अध्यक्ष माधबी बुच (Madhabi Buch) पर नए सिरे से हितों के टकराव का आरोप लगाते हुए शुक्रवार को दावा किया कि उन्हें एक ऐसी कंपनी से संबद्ध इकाई से किराए की आय प्राप्त हुई जिसके बारे में पूंजी बाजार नियामक इनसाइडर ट्रेडिंग सहित विभिन्न आरोपों की जांच कर रहा है।
 
कांग्रेस महासचिव एवं पार्टी के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि यह सवाल किसी और से नहीं बल्कि वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पूछा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां तक ​​पूंजी बाजार नियामक का सवाल है तो पारदर्शिता और निष्ठा के पतन को दिखाने के लिए और कितने सबूतों की जरूरत है।

 
रमेश ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर जारी पोस्ट में कहा कि एनएसई के आंकड़ों के अनुसार अब 10 करोड़ भारतीय ऐसे हैं जिनके पास विशिष्ट पैन हैं और जिन्होंने इस बाजार में किसी न किसी रूप में निवेश किया हुआ है। क्या वे इससे बेहतर के हकदार नहीं हैं? वे आगे क्यों नहीं बढ़ते? उन्हें किस बात का डर है?
 
कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि 2018 से 2024 के बीच बुच को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्णकालिक सदस्य और बाद में अध्यक्ष के रूप में वॉकहार्ट लिमिटेड से संबद्ध कंपनी कैरोल इन्फो सर्विसेज लिमिटेड से 2.16 करोड़ रुपए की किराए के रूप में आय हुई।

 
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वॉकहार्ट लिमिटेड की 2023 के दौरान इनसाइडर ट्रेडिंग सहित विभिन्न मामलों में सेबी द्वारा जांच की जा रही है। खेड़ा ने कहा कि यह भ्रष्टाचार का एक स्पष्ट मामला है, जो हितों के टकराव से जुड़ा है और सेबी के बोर्ड के सदस्यों के लिए हितों के टकराव पर लागू 2008 की संहिता की धारा 4, 7 और 8 का उल्लंघन करता है।
 
कांग्रेस नेता ने सवाल किया कि सेबी अध्यक्ष की नियुक्ति 2 मार्च, 2022 को कैबिनेट की नियुक्ति समिति द्वारा की गई थी जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। क्या उनकी नियुक्ति इस शर्त पर की गई कि वे अपने पिछले वित्तीय संबंधों को बनाए रख सकती हैं, बशर्ते वे प्रधानमंत्री और उनके करीबी सहयोगियों की इच्छा के अनुरूप काम करें? उन्होंने बताया कि सेबी के पूर्व अध्यक्षों ने इस पद पर रहते अपनी भूमिकाओं तथा अपने पूर्ववर्ती पदों पर हितों के टकराव की आशंका को भी टालने के प्रयास किए।

 
खेड़ा ने कहा कि उदाहरण के लिए एम. दामोदरन ने 2001 में यूटीआई का अधिग्रहण करते समय अपने 50 एसबीआई शेयर बेच दिए थे और सीबी भावे ने नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) से जुड़े सभी मामलों से खुद को अलग कर लिया था, जहां वे पहले अध्यक्ष थे। इसके विपरीत श्रीमती बुच ने केवल अपने निवेश को अपने पति को हस्तांतरित किया, जो विश्वसनीयता के बारे में चिंता पैदा करता है।
 
खेड़ा ने पूछा कि यह सत्यापित करने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया गया कि क्या बुच इन स्थापित मानकों का पालन करेंगी? या फिर क्या जांच नहीं करना पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यवस्था का हिस्सा था? कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि यदि नियामक संस्था के प्रमुख से समझौता कर लिया जाता है तो वह लचीला हो जाता है। शायद यही उद्देश्य था।
 
खेड़ा ने कहा कि वे सेबी प्रमुख को चुनौती देते हैं कि वे सामने आएं और अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत साबित करें। कांग्रेस ने गुरुवार को इस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की थी और कहा था कि जांच राष्ट्रीय हित में है, क्योंकि विदेशी निवेशक चिंतित हो रहे हैं और भारत के प्रतिभूति बाजारों की शुचिता पर संदेह है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta