पाकिस्तान में भी विक्रम बहुत पॉपुलर हैं। पाकिस्तानी आर्मी उन्हें शेरशाह कहा करती थी।
विक्रम बत्रा जब दुश्मनों पर टूटते थे तो साथी सैनिकों से कहा करते थे तुम हट जाओ तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं। कारगिल वॉर में एक-एक कर चोटियों पर तिरंगा फहराते हुए विक्रम कहते थे ये दिल मांगे मोर
विज्ञापन की यह पंच लाइन जब उन्होंने कारगिल वॉर में बोली तो पूरे देश में सेना की आवाज बनकर गूंज गई।
20 जून 1999 की आधी रात। जब भारत की आधी से ज्यादा आबादी गहरी नींद में सो रही थी। समुद्री सतह से हजारों फीट ऊपर बर्फ से ढंके पहाड़ गोला-बारुद और मोटार्र की आवाजों से गूंज रहे थे।
चारों तरफ बर्फ थी और गोला बारुद का धुंआ ही धुंआ। भारत माता की जय और भारतीय सेना जिंदाबाद के नारों से ये घाटियां कांप सी गई थी।
Love story of kargil hero: जब कारगिल के इस शहीद ने अपने खून से भर दी थी प्रेमिका की मांग
दरअसल इंडियन आर्मी के जवान श्रीनगर-लेह मार्ग पर स्थित एक बेहद अहम चोटी 5140 को दुश्मनों से आजाद कराने के लिए गोला-बारुद से खेल रहे थे।
पाकिस्तानी दुश्मनों से भिड़ते जवानों की गोली और बम के धमाकों के बीच उस समय जो नाम देश में सबसे ज्यादा गूंज रहा था वो नाम था कैप्टन विक्रम बत्रा का।
यूं तो हर जवान और उसकी शहादत को भारत में नमन किया जाता है, लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा के पराक्रम ने उन्हें देश का हीरो बना दिया था। भारत-पाकिस्तान के युद्ध में वे कारगिल के हीरो बनकर उभरे थे।
1996 में विक्रम बत्रा ने इंडियन मिलिटरी एकेडमी ज्वॉइन की थी। एकेडमी में विक्रम का सिलेक्शन हुआ था। वो देश की सेवा करना चाहते थे इसलिए उन्होंने लाखों रुपए की मर्चेंट नेवी में जाने के अवसर को ठोकर मारकर आर्मी का रास्ता अपनाया था। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने प्यार को इस देशभक्ति में आड़े नहीं आने दिया।
सख्त ट्रेनिंग के बाद 13 जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर विक्रम को तैनात कर दिया गया था।
पाकिस्तान से हुए कारगिल वॉर में 1 जून 1999 को उनकी टुकड़ी को हम्प व राकी नाब जैसे ठिकानों को जीतने की जिम्मेदारी सौंपी गई। विक्रम और उनकी टीम ने ये दोनों ही ठिकानों को हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली। इसके बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। फिर उन्हें श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से आजाद करवाने का मिशन सौंपा गया।
बेहद तेज और साहसी विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह साढे 3 बजे इस चोटी पर कब्जा जमाकर वहां तिरंगा फहरा दिया।
विक्रम का पराक्रम और साहस को देखकर भारतीय सेना को भरोसा हो गया कि यह जवान पूरे पाकिस्तान में हंगामा मचा देगा। शायद इसीलिए उन्हें चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का मिशन सौंप दिया गया। मिशन मिलते ही लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर के साथ विक्रम ने कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। मिशन लगभग सफल हो चुका था, लेकिन ठीक इसी वक्त जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक विस्फोट होता है।
'ये दिल मांगे मोर' कहकर कैप्टन विक्रम बत्रा बन गए थे कारगिल युद्ध का चेहरा
इस धमाके में नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो जाते हैं। जैसे ही कैप्टन बत्रा की नजर नवीन पर जाती है, वो उसे बचाने के लिए दौड़ पड़ते हैं। नवीन को बचाने के लिए वो उन्हें पीछे घसीटने लगे, तभी पाकिस्तानी सेना की गोलियां उनके सीने पर आकर लगती हैं। 7 जुलाई 1999 को भारत का यह सपूत शहीद हो जाता है।
लेकिन चोटी पर तिरंगा फहराते हुए बोली गई उनकी पंच लाइन ये दिल मांगे मोर पूरे देश में उनकी देशभक्ति की गूंज बनकर बिखर जाती है।
पालमपुर में जीएल बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को जन्में विक्रम बत्रा चंडीगढ़ में पढ़ाई के बाद इंडियन आर्मी में चले गए और देश के लिए शहीद हो गए।