अफजल की फांसी के बाद भी कश्मीर उबाल पर
श्रीनगर। 13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद पर हुए आतंकियों के आत्मघाती हमले के षड्यंत्रकर्ताओं में से एक वादी के सोपोर के रहने वाले पेशे से डॉक्टर मुहम्मद अफजल गुरु को वर्ष 2013 में फांसी दिए जाने के बाद से ही कश्मीर अभी भी उबाल पर ही है।
कश्मीर का उबाल पर होना स्वाभाविक ही है। 33 साल पहले भी एक कश्मीरी को आतंकी गतिविधियों के लिए फांसी पर लटका दिया गया था। 11 फरवरी 1984 को फांसी पर लटकाए गए मकबूल बट की फांसी ने कश्मीर को नए मोड़ पर ला खड़ा किया था। आतंकवाद की ज्वाला विस्फोट बनकर सामने आ खड़ी हुई। इस फांसी के परिणामस्वरूप जो ज्वाला कश्मीर में सुलगी थी आज पूरा देश अभी भी उसकी चपेट में है तो अफजल गुरु की फांसी के बाद क्या होगा के सवाल का जवाब, अब सबके सामने है।
इसके प्रति कोई दो राय नहीं है कि 33 साल पूर्व मकबूल बट को दी गई फांसी के 5 सालों के बाद ही कश्मीर जल उठा था और अब कश्मीर फिर से धधक रहा है। यह सच है कि कश्मीर में छेड़े गए तथाकथित आजादी के आंदोलन को लेकर जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है उसमें मुहम्मद अफजल दूसरा ऐसा व्यक्ति है जिसे 33 सालों के अरसे के बाद पुनः 'शहीद' बनाए जाने की कवायद में कश्मीर अपनी रंगत दिखा चुकी है। इससे पहले 11 फरवरी 1984 को जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक मकबूल बट को तिहाड़ जेल में फांसी की सजा सुनाई गई थी। कुछेक की नजरों में स्थिति विस्फोटक हो चुकी है। ऐसा सोचने वालों की सोच सही भी है।
वर्ष 1984 में बारामुल्ला जिले में एक गुप्तचर अधिकारी तथा बैंक अधिकारी की हत्या के आरोप में मकबूल बट को फांसी की सजा दी गई थी तो तब की स्थिति यह थी कि उसकी फांसी वाले दिन पर कश्मीर में हड़ताल का आह्वान भी नाकाम रहा था। लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। लोगों की नजर में मकबूल बट की फांसी के पांच सालों के बाद 1989 में कश्मीर जिस दौर से गुजरना आरंभ हुआ था वह अब मुहम्मद अफजल की फांसी के बाद धधक उठा है। उनकी आशंकाएं भी सही हैं। अलगाववादी संगठन जहां फांसी को भुना रहे हैं तो दूसरी ओर आतंकी गुट इसका बदला लेने की खातिर हमलों को तेज कर चुके हैं।
कश्मीर में पिछले 28 सालों में एक लाख के करीब लोग मारे गए हैं। अधिकतर को कश्मीरी जनता ‘शहीद’ का खिताब देती है, लेकिन कश्मीरी जनता की नजरों में पहले सही और सच्चे ‘शहीद’ मकबूल बट थे तो अब दूसरे ‘शहीद’ मुहम्मद अफजल हैं। उसकी फांसी क्या रंग लाएगी, इस सोच मात्र से लोग तभी से सहमने लगे थे जब उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी क्योंकि मकबूल बट की फांसी 28 सालों से फैले आतंकवाद को परिणाम में दे चुकी है। 18 दिसम्बर 2002 में फांसी की सजा सुनाने से पूर्व तक, न ही कोई अफजल गुरु के परिवार से इस कद्र शोक तथा संवेदना प्रकट करने के लिए जा रहा था और न ही कोई उनके प्रति कोई खास चर्चा कर रहा था। लेकिन उसके बाद रातोरात मुहम्मद अफजल ‘हीरो’ बन गया। कश्मीर की ‘तथाकथित आजादी’ के तथाकथित आंदोलन में उसे ‘हीरो और शहीद’ का सम्मान दिया जाने लगा।
चिंता यह नहीं है कि फांसी दिए जाने वाले को क्या नाम दिया जा रहा है बल्कि चिंता की बात यह मानी जा रही है कि कश्मीर की परिस्थितियां अभी और क्या रुख अख्तियार करेंगी। कश्मीर के आंदोलन की पहली फांसी के बाद जो आतंकवाद भड़का था वह क्या दूसरी फांसी के साथ ही समाप्त हो जाएगा या फिर यह धधक उठेगा? अगर यह धधक उठेगा तो इसकी लपेट में कौन-कौन आएगा?
इतना जरूर है कि अफजल की फांसी क्या रंग लाएगी, इस पर मंथन ही आरंभ नहीं हुआ था कि धमकियों और चेतावनियों का दौर भी आरंभ हो गया था। मगर राजनीतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि अफजल गुरु की फांसी कश्मीर को नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर चुकी है तो आतंकी गुटों की धमकी देशभर को सुलगाने की दिशा की ओर लेकर जा रही है।